राजभाषा बने, राष्ट्र भाषा, देश में हिंदी का प्रयोग बढना चाहिए

अनिल तोमर/ राहुल सिंह/ नरेन्द्र तोमर
हापुड़/पिलखुवा/धौलाना (उदय भूमि ब्यूरो)
हिंदी दैनिक समाचार पत्र उदय भूमि के ब्यूरो चीफ अनिल तोमर के साथ उनके सहयोगी नरेंद्र तोमर व विशेष संवाददाता राहुल सिंह ने हिंदी दिवस पर प्रशासनिक अधिकारियों, शिक्षाविद, चिकित्सकों, कवियों, शिक्षकों, अधिवक्ताओं, पत्रकारों, प्रबुद्धजनों ने हिंदी को लेकर उनके विचार साझा किए।  

एसडीएम धौलाना अरविंद कुमार द्विवेदी का मानना है कि सही मायने में हिंदी को सम्मान नहीं दिया जाता, यदि सही मायने में हिंदी को बढ़ावा देना है। तो हिंदी में सर्कुलर जारी होने के साथ- साथ सरकारी व निजी कार्यालयों में हिंदी अनिवार्य किया जाना चाहिए। मातृभाषा को गौरव दिए जाने हेतु सरकार व जनता दोनों को मिलकर इच्छा शक्ति से काम करना चाहिए। जिससे हिंदी विश्व की भाषाओं में अपनी अलग पहचान बना सके। हिंदी हमारी राजभाषा है, मातृभाषा हिंदी एक समृद्ध भाषा है, यह सभी भाषाओं की जननी है।

तहसीलदार संजय सिंह कहते हैं कि हमारे देश मे जहाँ लाखों भाषाएं व बोलियां हैं। हिन्दी देशवासियों के बीच में एक जुडाव वाली भाषा का कार्य करती है। हिंदी बोलने और लिखने वाले को शर्म नही, बल्कि गौरव का अनुभव करना चाहिए।हिंदी को बढ़ावा देने के लिए सभी विद्यालयों में हिंदी को पढ़ाना अनिवार्य बनाना चाहिए। इसके साथ साथ सभी विभागों, न्यायालयों आदि में हिंदी भाषा के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाए।मेरा मानना है कि  राजभाषा राष्ट्र भाषा बने, हिंदी की प्रगति राष्ट्रवाद एवं राष्ट्र प्रेम को भी बढ़ाती है। अत: आओ हम सब मिलकर संकल्प लें कि राजभाषा हिंदी को न केवल अपनाएंगे ,बल्कि इसके प्रचार प्रसार में भी अपना योगदान करेंगे। मेरा मानना है कि विभिन्न प्रतियोगिताओं गोष्ठियों, निबंध लेखन आदि के माध्यम से भी हिंदी भाषा के प्रयोग को बढ़ा सकते हैं।

नायब तहसीलदार वैशाली अहलावत कहते हैं हिन्दी देश की स्वयं सिद्ध राष्ट्रभाषा है। देशभर में 65 फीसदी हिंदी बोलने वाले है। इसका प्रमुख कारण हिन्दी भाषा की सरलता, सुगमता तथा स्पष्टता है। हिन्दी हमारी संस्कृति है, इस विरासत को बढाने के लिए हिन्दी सीखो, सिखाओ पढ़ो और पढ़ाओ मूलमंत्र है। चीन जैसा देश आज भी अपनी भाषा को प्राथमिकता देता है किसी अन्य भाषा को नहीं। हमारे समाज का बहुसंख्यक वर्ग इसलिए पिछड़ रहा है क्यूंकि उसे अंग्रेज़ी नहीं आती। जबकि रोजगार देने का माध्यम भाषा नहीं बल्कि टैलेंट होना चाहिए। अंग्रेजी का जानना विकलांगता नहीं है इस बात को समझना चाहिए।

सहायक बेसिक शिक्षा अधिकारी मुंशी लाल पटेल कहते हैं कि हिन्दी हमारी मातृभाषा है अत: हमें इसे पढऩे, बोलने, सीखने में कोई संकोच नही करना चाहिए। हमें जहां भी मौका मिले अपनी मातृभाषा के उपयोग पर गर्व महसूस करना चाहिए।

सपनावत स्थित विद्या पब्लिक स्कूल के संस्थापक डा अर्जुन सिसोदिया बताते हैं कि आज हिन्दी विश्व पटल पर अपनी गहरी छवि अंकित कर रही है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी अपने भाषणों में हिन्दी को जिस प्रकार महत्व देते हैं उस कारण  वैश्विक स्तर पर भी हिन्दी की स्वीकार्यता बढ़ रही है। भले ही हम हिन्दी प्रयोग ,हिन्दी विकास ,राष्ट्रभाषा उत्थान आदि के नाम पर हम प्रपंच करते रहते हैं लेकिन जिस भाषा को देश के प्रत्येक राज्य में बोलने ,समझने, जानने और पढऩे वाले लोग हो ,उसी देश मे हिन्दी सरकार और नागरिकों की उदासीनता के कारण अपने उचित स्थान के लिये संघर्षरत है । ये खेद का विषय है ।

जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ जिला कोषाध्यक्ष एवं शिक्षाविद सतेन्द्र सिसोदिया कहते हैं कि आज विश्व में सबसे अधिक बोले जाने वाली हिंदी भाषा का स्थान दूसरे नंबर पर आता है फीजी, सूरीनाम ,ट्रिनीडाड, मद्धेशिया आदि देशों में भी हिंदी बोली जाती है। हिंदी विश्व की एकमात्र वैज्ञानिक भाषा है जो बोलने और लिखने में समान है। भारत में हिंदी का प्रयोग राजभाषा तथा संपर्क भाषा के रूप में किया जाता है, लेकिन इस को बढ़ावा देने के लिए सरकार की नीतियां यदि सुचारू रूप से लागू की जाए तो हिंदी को विश्व की भाषा बनाया जाए जा सकता है। जिस प्रकार अपना परिवार अपना गांव अपना प्रदेश और देश प्रिय है और बेसिक शिक्षा परिषद के कुछ प्राथमिक और जूनियर स्कूलों को उत्तर प्रदेश सरकार अंग्रेजी माध्यम में बदल रही है, इस प्रकार सरकार को विचार करना चाहिए कि हमारी राजभाषा हिंदी है हिंदी भाषा अपनी संस्कृति से जुडऩे और समझने में मददगार है। इतनी विशेषताएं शायद किसी अन्य भाषाओं में दिखाई दे ,अत: हमें हिंदी का प्रयोग करते समय गौरव का अनुभव करना चाहिए।

रुपवती इंटर कॉलेज सिखाया की प्रिंसीपल मोनिका शर्मा कहती है कि हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, यही वह भाषा है जो हमें एक मौलिक सम्मानित अपर प्रत्येक पहचान दान करती है । आज हमें से कौन-कौन इस बात को गौरवान्वित होकर कह सकता है कि हां मैं हिंदी में निपुण हूं। जिस भूमि पर कभी कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक गुजरात से लेकर अरुणाचल तक हिंदी भाषा का ही बोलबाला था। कहां गया वह हिंदी का शोर ,क्यों हमारी मन स्थिति आज हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी को और विदेशी भाषा को पूछने लगी  क्यों आज हिंदी बोलने वाले लोगों को तुच्छ और विद्या हिना इंसानों की श्रेणी में डाला जाता है। वह भाषा जिसने हमें पहला शब्द बोलने सिखाया क्यों आज उसी भाषा को समझने के लिए हमें इंटरनेट की आवश्यकता पड़ती है। भारत में आजादी का सूरज तो 73 साल पहले ही उदय हो गया था परंतु अंग्रेजों का अभी तक के हमारे ऊपर अभी भी विद्यमान है। आवश्यकता है लोगों की मानसिकता को परिवर्तित करने की, हिंदी के प्रति लोगों के मन में सम्मान और जागरूकता उत्पन्न करने की, हिंदी को उपाधि देने की जो उसे 14 सितंबर 1949 को कार्यों में तो मिली। लेकिन हमारे दिलों तक वह स्थान नहीं बना पाई। यह सभी कदम हमें शीघ्र अति शीघ्र उठाने होंगे। वरना हमारी राष्ट्रभाषा में इतिहास के कुछ पन्नों तक ही सीमित रह जाएगी।

एसडी गल्र्स विद्यालय की प्रिंसीपल मंजू शर्मा का कहना है कि हम हिंदी भाषा के प्रयोग से अपने राष्ट्र को अनंत ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं। अत: हमें अपनी मातृभाषा की किसी भी परिस्थितियों में उपेक्षा नहीं बल्कि बढ़ावा देना चाहिए और गर्व महसूस करना चाहिए।

शिक्षक वकील चौधरी मानते हैं कि हिंदी हमारी बचपन से बोलने वाली लोकप्रिय भाषा है। अत: इस भाषा के माध्यम से हम सभी लोग एक दूसरे के विचारों, भावों को अच्छी तरह से समझ सकते हैं। हिंदी ही एक ऐसी भाषा है जिसमें हर रिश्ते के लिए अलग शब्द है, जो अन्य भाषाओं में नही है।

शिक्षिका एवं ग्राम प्रधान सौलाना रीता सिसोदिया का कहना है कि हिंदी हमारी मातृभाषा और राजभाषा है।अपनी मातृभाषा की उन्नति में ही सभी उन्नतियों का सार वर्णित है।हम सबको अपनी भाषा का प्रचार, प्रयास  करना बहुत आवश्यक है।मातृभाषा से ही हम अपने ह्रदय की पीड़ा, और अपनी बात बहुत अच्छी प्रकार से कह सकते हैं।

वरिष्ठ कवि एवं समीक्षक सतीश वर्धन का कहना है कि हिन्दी अपनों की भाषा के साथ साथ सपनों की भी भाषा है। हिन्दी संविधान द्वारा स्वीकृत 18 भाषाओं में सर्वाधिक ,प्रचलित,लोकप्रिय और स्वीकार्य भाषा है। हिन्दी से रोजी रोटी खाने वाले लोग ही हिन्दी के साथ दोहरा व्यवहार अपनाते हैं।सर्वव्यापकता के आधार पर हिन्दी को राष्ट्रभाषा का स्थान मिल जाना चाहिए। किन्तु राजनीतिक झमेलों में फंसकर हिन्दी केवल राजभाषा का दर्जा ही प्राप्त कर सकी है। हिन्दी पूर्णत: वैज्ञानिक भाषा है जिसे उच्चारण के अनुसार ही लिखा और पढा जाता है। राष्ट्रभाषा के सारे गुण और सारी विशेषताएं हिन्दी मे विद्यमान हैं किंतु खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि हमारी कथनी और करनी में अंतर होने के कारण हिन्दी अपने ही घर मे महारानी होकर नौकरानी सी दिखती है। फिल्म उद्योग के कलाकार ,निर्माता, निर्देशक ,गीतकार और संगीतकार हिन्दी से कमाकर हिन्दी में बात करना अपना अपमान समझते हैं। सरकारी,अर्द्धसरकारी संस्थायें भी हिन्दी के नाम पर साल में एक दो कार्यक्रम कराकर इतिश्री कर लेती हैं। हिन्दी दिवस पर अनेक संस्थायें हिन्दी उत्थान के नाम पर बड़े बड़े ढोल पीट कर साल भर के लिये शांत बैठ जातीं है। इस सब के उपरान्त देखने मे ये आ रहा है कि अब हिन्दी ने अपने पैर पसारने प्रारम्भ कर दिये हैं। टेलीविजन ,रेडियो और एफ एम चैनल पर हिन्दी कार्यक्रमों ने धूम मचा रखी है। फेसबुक, व्हाट्स एप,ट्विटर ,इंस्टाग्राम जैसी सोसियल साइट्स पर भी हिन्दी का प्रभुत्व बढ़ता दिखता है। विदेशों में बसे भारतीय बन्धु भी बधाई के पात्र हैं जो विदेशों में भी हिन्दी महोत्सव जैसे बड़े आयोजन करा कर हिन्दी की प्रामाणिकता सिद्ध कर रहें हैं। जिस भाषा मे देश का सर्वश्रेष्ठ साहित्य लिखा गया हो उसके साथ सरकार और नागरिक दोनों ही भेदभाव कर रहें हैं।

कवि राजकुमार सिसोदिया बताते हैं कि दु:ख यह है कि अनेकों साहित्यकारों, कविर्यो के अथक प्रयासों से भी हिंदी को राष्ट्रभाषा का स्थान नहीं मिल पाया है। भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने भी कहा है, बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे ना हिए के शूल। हमें अपनी भाषा की उन्नति के लिए अपने विचार, धर्म, कर्म, सम्मान, व्यवहार और ज्ञान आदि को हिंदी भाषा मे ही समाहित करना होगा। कवि इस धर्म को बखूबी निभा रहे हैं।

पूर्व बार अध्यक्ष विनोद सिसोदिया का मानना है कि हमारे समाज का बहुसंख्यक वर्ग इसलिए पिछड़ रहा है क्यूंकि उसे अंग्रेज़ी नहीं आती। जबकि रोजगार देने का माध्यम भाषा नहीं बल्कि टैलेंट होना चाहिए। हिन्दी भाषा की सरलता, सुगमता तथा स्पष्टता है। हिन्दी हमारी संस्कृति है। इसकी विरासत को बढाने के लिए हिन्दी सीखो,सिखाओ पढ़ो और पढ़ाओ मूलमंत्र है।

पूर्व उपाध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता गजेन्द्र पाल सिंह का कहना है कि वर्तमान परिवेश में युवा पीढ़ी को हिंदी शब्दों का ज्ञान कम है ,आधे अधूरे शब्दों के प्रयोग को ही महत्व दिए जाने लगा है। समूचे विश्व में अनेक देशों में अपनी भाषा में ही विज्ञान चिकित्सा एवं अन्य तकनीकी विषयों के साहित्य उपलब्ध है,तथा उनकी अपनी भाषा ही राजकीय कार्यों में प्रयुक्त होती है।इसी तरह देश में हिंदी भाषा का प्रयोग बढना चाहिए।

अधिवक्ता वीरेन्द्र तोमर कहते हैं कि भारत में आजादी का सूरज तो 73 साल पहले ही उदय हो गया था परंतु अंग्रेजों का अभी तक के हमारे ऊपर अभी भी विद्यमान है। आवश्यकता है लोगों की मानसिकता को परिवर्तित करने की, हिंदी के प्रति लोगों के मन में सम्मान और जागरूकता उत्पन्न करने की, हिंदी को उपाधि देने की।

युवा अधिवक्ता राहुल राणा का कहना है कि हिन्दी मानवीय मूल्यों की भाषा के रूप में विकसित हुई है। उसमें मानवीय संस्कृति के उदार मूल्यों और प्रेम, करुणा और उदारता के गीत गाने की वृत्ति रही है।मानवता के कल्याण के लिए उसका प्रचार प्रसार आज अकेले भारत के लिए नहीं, विश्व के अपने हित में है।

अधिवक्ता अभिषेक तोमर का कहना है कि हिन्दी का इतिहास बताता है कि सरकारी मशीन की भाषा बनकर विकसित वहीं हुई, लोक जीवन की भाषा बनकर बढ़ी है। हिन्दी की उन्नति का सारा जिम्मा सरकार पर डालना  ठीक नहीं, देश के प्रत्येक नागरिक का दायित्व है कि वह राजभाषा को राष्ट्रभाषा बनाने में योगदान करें।

शिक्षाविद निशांत सिसोदिया का कहना है कि देश में आधी से ज्यादा आबादी हिंदी भाषी है। यह हमारी स्वाभाविक भाषा है, भारत के अतिरिक्त नेपाल एवं मॉरीशस में भी हिंदी काफी प्रचलित है। परंतु आजकल सोशल मीडिया के प्रचलन एवम अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई ने हिंदी भाषा के उच्चारण एवं लेखन में विकृतियां उत्पन्न की हैं। हिंदी शब्दों का ज्ञान कम हो रहा है ,आधे अधूरे शब्दों के प्रयोग को ही महत्व दिए जाने लगा है। समूचे विश्व में अनेक देशों में अपनी भाषा में ही विज्ञान चिकित्सा एवं अन्य तकनीकी विषयों के साहित्य उपलब्ध है,तथा उनकी अपनी भाषा ही राजकीय कार्यों में प्रयुक्त होती है। हमारे देश में भी इसी प्रकार तकनीकी साहित्य को हिंदी में विकसित किया जाना जरूरी है। समय की आवश्यकता है कि हिंदी को लिखने समझने एवं विकसित करने  के लिए समुचित प्रयास किए जाएं।

मित्र गाजियाबादी के नाम से चर्चित धौलाना निवासी वरिष्ठ कवि मित्रपाल सिंह बताते हैं। अलफाज-ए-गजल समूह के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार में जुटे हैं। इस समूह में 9 हजार सदस्य हैं। अनेकानेक पुस्तकों का संपादन कर चुके मित्र गाजियाबादी  बताते हैं कि वह हिंदी में गजल कहने की विधा को पुनर्जीवित करने में कई वर्षों से प्रयासरत है। पिछले 5 वर्षों में हिंदी में 12 हजार गजल कहने वाले एक मात्र गजल कार है।उन्होंने हिंदी के प्रचार-प्रसार का अलग ही तरीका अपना रखा है। वह हिंदी के प्रति आकर्षण पैदा कर रहे हैं।

पंकज सक्सेना, प्रबंधक जनसंपर्क, एनटीपीसी का कहना है कि हिंदी को बढ़ावा देना निश्चित रूप से मातृभाषा के उत्थान की ओर एक सार्थक व सराहनीय कदम है। जिसके संचालन से हिंदी को बहुत फायदा होगा। वह मानते हैं कि हिंदी को सरल और सहज बनाकर ही सर्वप्रिय बनाना संभव है। लेकिन संस्कृतनिष्ठ हिंदी लोगों के मन-मस्तिष्क में अपनी जगह नहीं बना पा रही है। इसके लिए सहज और सरल हिंदी को अपनाना होगा। दूसरी भाषाओं के बोलचाल वाले शब्द ग्रहण करने में भी कोई बुराई नहीं है। उन्होंने कहा कि हिंदी को सम्मान दिलाने के लिए जरूरी है कि हम दूसरी क्षेत्रीय भाषाओं का भी आदर करें।

आरएसएसपी कालेज के प्राचार्य एवं वर्ष कवि डॉ. वागीश दिनकर का कहना है कि आज देश में हिंदी प्रेमी मातृभाषा हिंदी को मान दिलाने के लिए संघर्ष शील है। हिंदी को मान दिलाने के लिए बहुत से लोग लंबे समय से अपने-अपने तरीके से प्रयास में जुटे हैं। कोई हिंदी को संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा की मान्यता दिलाने के लिए संघर्ष कर रहा है तो कोई जिलों में घूम-घूमकर हिंदी के प्रचार प्रसार में जुटा हैैै तो कोई हिंदी सेवी विलुप्त होती जा रहीं हिंदी काव्य की विधाओं को पुनर्जीवित करने में जुटा है।