पूर्व नगर आयुक्त के खिलाफ दर्ज मुकदमा खारिज

कोर्ट ने कहा बिना किसी ठोस साक्ष्य के नगर आयुक्त के खिलाफ दर्ज कराया गया था अवमानना का मुकदमा

उदय भूमि ब्यूरो
गाजियाबाद। नगर निगम हित में पूर्व नगर आयुक्त द्वारा लिये एक फैसले के खिलाफ विज्ञापन कंपनी द्वारा दर्ज कराये गये अवमानना के मुकदमे को कोर्ट ने खारिज कर दिया। दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने कहा कि दस्तावेजी साक्ष्य से यह स्पष्ट होता है कि नगर निगम द्वारा अनुबंध विधिक प्रक्रिया के अनुसार निरस्त किया गया। दस्तावेजी साक्ष्य, मौखिक साक्ष्य तथा विधिक व्यवस्थाओं के आधार पर वादी प्रकीर्ण वाद को साबित करने में असफल रहे। सिविल जज सिनीयर डिवीजन मृत्युंजय कुमार की कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाया। नगर निगम की तरफ से मोहित त्यागी ने इस केस की पैरवी की और नगर निगम का पक्ष मजबूती से रखा।

विदित हो कि इंदिरापुरम क्षेत्र में जीडीए द्वारा विज्ञापन को लेकर मैसर्स लोर्ड कृष्णा एंड कंपनी से करार किया गया था। चूंकि नगर निगम सीमा क्षेत्र में विज्ञापन करने का अधिकार नगर निगम के पास होता है। ऐसे में नगर निगम ने कंपनी को नोटिस भेजकर विज्ञापन करने से रोका। मैसर्स लोर्ड कृष्णा ने इस मामले में नगर निगम को पार्टी बनाते हुए कोर्ट में मुकदमा दायर किया और स्टे हासिल किया। तत्कालीन नगर आयुक्त महेंद्र सिंह तंवर ने इस मामले में कोर्ट में पैरवी कराई और स्टे खारिज हो गया। कोर्ट से स्टे खारिज होने के बाद नगर निगम ने कार्रवाई करते हुए मैसर्स लोर्ड कृष्णा एंड कंपनी द्वारा लगाये गये विज्ञापन के पोल को काट दिया। मैसर्स लोर्ड कृष्णा एंड कंपनी ने एक मुकदमा जीडीए के खिलाफ भी किया था और उसमें भी स्टे हासिल किया था। जीडीए के खिलाफ दर्ज कराये गये मुकदमे में हासिल स्टे को आधार बनाते हुए मैसर्स लोर्ड कृष्णा एंड कंपनी ने नगर आयुक्त महेंद्र सिंह तंवर को व्यक्तिगत रूप से पार्टी बनाते हुए कोर्ट में अवमानना का मुकदमा दर्ज कराया। जिस दौरान अवमानना का मुकदमा दर्ज हुआ उस समय महेंद्र सिंह तंवर गोरखपुर विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष बन गये थे। महेंद्र सिंह तंवर ने वकील के माध्यम से अपनी बातों को कोर्ट के समक्ष रखा। जिससे संतुष्ट हुए कोर्ट ने मुकदमा खारिज कर दिया।

दरअसल महेंद्र सिंह तंवर को नगर निगम का हित सर्वोपरि रखने वाले नगर आयुक्त के रूप में जाना जाता है। गाजियाबाद के नगर आयुक्त के रूप में काम करते हुए उन्होंने कई ऐसे फैसले लिये जिससे नगर निगम को आर्थिक रूप से काफी फायदा पहुंचा। नगर निगम के हितों की अनदेखी कर अपना हित साधने में लगे लोगों को यह कई तरीके से चुभ रहा था। बात चाहे नगर निगम की बेशकीमती दुकानों से किराया वसूली की हो या फिर विज्ञापन से निगम की आमदनी बढ़ाने की। हर मामलों में महेंद्र सिंह तंवर ने कड़े निर्णय लिये। बीओटी विज्ञापन से नगर निगम को सालाना महज दो से ढाई करोड़ रुपये की आमदनी होती थी। विज्ञापन माफिया का दबदबा इस कदर था कि वह कोर्ट के दांव पेंच में फंसाकर मनमाना विज्ञापन करते थे और नगर निगम में विज्ञापन शुल्क भी नहीं जमा कराते थे। महेंद्र सिंह तंवर ने विज्ञापन माफिया के नेटवर्क को ध्वस्त किया। महेंद्र सिंह तंवर के प्रयासों का असर है कि अब नगर निगम को विज्ञापन के एवज में सालाना लगभग 15 करोड़ रुपये मिलेंगे। पार्किंग माफिया पर भी कमरतोड़ प्रहार किया। कोर्ट के फैसले के बाद एक बार फिर साबित हो गया है कि महेंद्र सिंह तंवर द्वारा लिया गया निर्णय सही था।