कैमकुस लॉ कॉलेज में जिला जज ने की वैकल्पिक विवाद निवारण (एडीआर) तंत्र को अपनाने की अपील

गाजियाबाद। भागीरथ सेवा संस्थान द्वारा संचालित कैमकुस कॉलेज ऑफ़ लॉ द्वारा रविवार को अदालतों में लंबित मामलों की बढ़ती संख्या, वैकल्पिक विवाद निवारण (एडीआर) तंत्र और परिवारों के लिए एकल कानून प्रावधान (यूसीसी) विषय पर एक सेमिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में विषय पर एक्सपर्ट्स ने अपनी राय रखी। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ मार्कण्डेय राय, चेयरमैन जीपीएफ इंडिया एवं चांसलर, ग्लोबल ओपन यूनिवर्सिटी ने की। मुख्य अतिथि के रूप में जिला जज अनिल कुमार ने कार्यक्रम में शिरकत की। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ जीवी राव, प्रभु राजदान और एडीशनल जिला जज रीता सिंह ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाते हुए विषय पर अपना पक्ष रखा। उसके पहले कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ मार्कण्डेय राय और मुख्य अतिथि जिला जज अनिल कुमार एवं अन्य अतिथियों ने दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत की।

जिला जज अनिल कुमार ने अदालतों में लंबित पड़े मामलों की संख्या पर चिंता जताई और कहा कि प्रतिदिन मामलों में गुणात्मक वृद्धि हो रही है। कुछ मामले ऐसे होते हैं जो कोर्ट के बाहर भी निपट सकते हैं। लेकिन वादियों की व्यक्तिगत ईगो के कारण मुकदमे दर्ज हो जाते हैं, जो कि नहीं होना चाहिए। जिला जज ने कहा कि एक मुकदमा कई मुकदमों को जन्म देता है। दहेज का एक मुकदमा 5-5 मुकदमे कोर्ट में खड़े कर देता है। दहेज प्रताड़ना यानी आईपीसी की धारा-498 ए के प्रावधान का पति के रिश्तेदारों के खिलाफ अपना स्कोर सेटल करने के लिए टूल की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह के क्रिमिनल केस जिसमें बरी होना संभावित भी क्यों न हो फिर भी आरोपी के लिए यह गंभीर दाग छोड़ जाता है।

इस तरह के किसी प्रयोग को हतोत्साहित करने की जरूरत है। उन्होंने कहा भारत की अदालतों में मामलों की पेंडेंसी की स्थिति से निपटने के लिए, एडीआर अपनी विविध तकनीकों द्वारा भारत में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र भारतीय न्यायपालिका को वैज्ञानिक रूप से विकसित तकनीक प्रदान करता है जो अदालतों पर बोझ को कम करने में मदद करता है। कैमकुस कॉलेज ऑफ लॉ के डायरेक्टर करुणाकर शुक्ला ने कहा कि वैकल्पिक विवाद निवारण (एडीआर) तंत्र को और अधिक मजबूत तथा व्यावहारिक करने की जरूरत है। जिससे विवादों का निवारण वाद बनने से पहले कोर्ट के बाहर वैकल्पिक रूप से हल किए जा सकें।