नगर निगम की टेंडर प्रक्रिया में नहीं है गड़बड़ी, अड़ंगेबाजी से अटक सकते हैं विकास कार्य ?

महाभारत में अश्वत्थामा मारा गया प्रकरण जैसी है त्रृटि, कमेटी की जांच रिपोर्ट आने का करना होगा इंतजार

उदय भूमि ब्यूरो
गाजियाबाद। नगर निगम की टेंडर प्रक्रिया में लगातार हो रही अड़ेगीबाजी शहर की विकास प्रक्रिया को बाधित कर सकता है। जिस रफ्तार से दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है और ग्रैप सिस्टम लागू है। ऐसे में यदि टेंडर निरस्त कर दोबारा से प्रक्रिया शुरू की गई तो इस बात की प्रबल संभावना है कि सर्दियों में काम नहीं हो पाएगा। चार राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो जाएगी। ऐसे में यदि उस दौरान भी किसी प्रकार की कोई लेटलतीफी हुई तो सभी काम अगले वित्त वर्ष के लिए टल जाएंगे। ऐसे में शासन से मिलने वाला फंड भी लैप्स हो सकता है और गाजियाबाद नगर निगम की किरकिरी होनी तय है। बहरहाल नगर निगम के निर्माण विभाग के जिस टेंडर में गड़बड़ी की बात की जा रही है वह महाभारत के अश्वत्थामा प्रकरण जैसा है। जिस तरह महाभारत में अश्वत्थामा मारा गया एक सच भी था और एक झूठ भी था। अश्वत्थामा हाथी मारा गया यह सच था, लेकिन गुरु द्रोण का पुत्र अश्वत्थामा मारा गया यह एक झूठ था। ऐसा ही विवाद नगर निगम के एक टेंडर को लेकर है। दरअसल निर्माण विभाग से संबंधित एक टेंडर में भाग लेने वाली एक फर्म द्वारा लगाए गए डॉक्यूमेंट को लेकर विवाद है। जिस डॉक्यूमेंट को लेकर विवाद है वह ना तो पूरी तरह गलत है और ना ही पूरी तरह सही है। फर्म ने जो डॉक्यूमेंट लगाये हैं वह टेंडर प्रक्रिया के दौरान वैध था क्योंकि उस तारीख तक डॉक्यूमेंट की वैलिडिटी (वैधता) बनी हुई थी, लेकिन जब टेंडर खोले गये तब तक उसकी वैलिडिटी खत्म हो गई थी। यानि इस डॉक्यूमेंट को सही भी माना जा सकता है और गलत भी माना जा सकता है। जिस बिंदु को लेकर विवाद है इसको लेकर कोई स्पष्ट शासनादेश भी नहीं है। ऐसे में अमूमन टेंडर कमेटी के पास यह अधिकार होता है कि वह अपनी विवेक के अनुसार निर्णय करे। कमेटी ने इस प्रकरण में डॉक्यूमेंट को वैध मानते हुए टेंडर को पास किया। इसके बाद आरोपों का दौर शुरू हो गया। विवाद और आरोपों को देखते हुए म्युनिसिपल कमिश्नर विक्रमादित्य सिंह मलिक ने मुख्य नगर लेखा परीक्षक विवेक सिंह के नेतृत्व में तीन सदस्यीय कमेटी गठित कर जल्द जांच पूरा कर रिपोर्ट देने को कहा है। ऐसे में पूरा दारोमदार जांच कमेटी की रिपोर्ट पर टिका हुआ है। संभव है कि अगले दो से तीन दिनों में जांच कमेटी की रिपोर्ट के बाद टेंडर निरस्त कर पुन: टेंडर कराने या फिर उस टेंडर को वैध मानते हुए काम शुरू करने के बाबत कोई निर्णय लिया जाएगा।

मंत्री से लेकर विधायकों तक की रहती है दिलचस्पी
नगर निगम एक स्वायत्त संस्था है। मेयर इसकी चुनी हुई मुखिया है, पार्षद अपने-अपने वार्ड का प्रतिनिधित्व करते हैं। लेकिन अक्सर देखने को मिलता है कि नगर निगम की टेंडर प्रक्रिया में राजनैतिक दखलअंदाजी करने की सबसे अधिक कोशिश होती है। इसको लेकर नगर निगम अधिकारियों पर भी जबरदस्त दबाव भी रहता है। पुराने रिकॉर्ड देखें तो मंत्री से लेकर विधायक तक टेंडर में अपने चहेतों की पैरवी करते हैं। अक्सर इनके द्वारा टेंडर प्रक्रिया को लेकर आरोप भी लगाए जाते हैं। कुछ महीने पहले एक मंत्री द्वारा एक ठेकेदार के समर्थन में लिखा गया पत्र काफी वायरल हुआ था।
छोटे ठेकेदारों की नहीं उठाता कोई आवाज
नगर निगम में यदि किसी की कोई परेशानी है तो वह छोटे और मध्यम श्रेणी के ठेकेदारों की है। काम से लेकर भुगतान तक इन छोटे ठेकेदारों की पैरवी करने वाला कोई नहीं होता है। पूर्व में नगर निगम में ठेकेदारों का एसोसिएशन प्रभावी था। अजय त्यागी जब तक ठेकेदार एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे छोटे ठेकेदार खुद को सुरक्षित महसूस करते थे। अजय त्यागी द्वारा सभी विभाग में प्रमुखता से उनकी बातों को रखा जाता था। लेकिन मुरादनगर प्रकरण में फंसने के बाद से अजय त्यागी की ठेकेदारी बंद हो गई। उसके बाद से नगर निगम में ठेकेदारों का प्रतिनिधित्व करने वाला कोई संगठन भी नहीं बचा है। वर्तमान में जो संगठन है उस पर सिर्फ बड़े ठेकेदारों की पैरवी करने के आरोप लगते रहते हैं।