सत्ता तानाशाह या विपक्ष औचित्यहीन ?

लेखक – विजय मिश्र

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। इंडियन एक्सप्रेस, जी न्यूज, दैनिक जागरण, अमर उजाला, नई दुनिया सहित कई प्रमुख समाचार पत्र एवं न्यूज चैनल के साथ काम कर चुके हैं। उदय भूमि में प्रकाशित यह लेख लेखक के निजी विचार हैं।)

देश में सत्ता की तानाशाही चल रही है या विपक्ष औचित्यहीन हो गया है ? यह सियासी सवाल नहीं बल्कि आम जनता का सवाल है। सत्ता तानाशाही पर उतारू है या फिर विपक्ष बेलगाम है। सरकार किसी की नहीं सुन रही है या फिर विपक्ष मोदी को हटाने के लिए कुछ भी सुना रहा है। मोदी जनप्रिय हैं। ऐसे में विपक्ष को अधिक मेहनत करने की जरूरत है। मोदी के प्रति नफरत वाली राजनीति से विपक्ष को फायदा होने के बजाय अधिक नुकसान हो रहा है। 

देश में सत्ता की तानाशाही चल रही है या विपक्ष औचित्यहीन हो गया है ? यह सियासी सवाल नहीं बल्कि आम जनता का सवाल है। लोकतंत्र में सत्ता और विपक्ष दोनों की अहमियत है। दोनों का काम जन आकांक्षाओं को पूरा करते हुए देशहित को सर्वोपरि रखना है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या सत्ता तंत्र और विपक्ष अपना-अपना काम कर रहे हैं। सत्ता तानाशाही पर उतारू है या फिर विपक्ष बेलगाम है। सरकार किसी की नहीं सुन रही है या फिर विपक्ष मोदी को हटाने के लिए कुछ भी सुना रहा है। राजनीतिक पार्टियां खुद को भले ही कितना चतुर क्यों ना समझे लेकिन सच्चाई तो यही है कि लोकतंत्र में जनता सबसे चतुर है। जनता के बीच में मोदी जनप्रिय हैं। ऐसे में विपक्ष को अधिक मेहनत करने की जरूरत है। मोदी के प्रति नफरत वाली राजनीति से विपक्ष को फायदा होने के बजाय अधिक नुकसान हो रहा है। किसके काम में ज्यादा दम है, यह जनता ज्यादा जानती है।modi-BJP-congress-BSP-SP

यदि चुनिंदा मामलों को हम सतही तौर पर देखें तो सरकार की आलोचना कर सकते हैं, लेकिन गहराई से अवलोकन करें तो पाते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में वह सारे गुण हैं जो लोकतंत्र के किसी बड़े जनप्रिय नेता में होना चाहिए। मोदी ना सिर्फ देश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में शुमार हैं। लोकप्रियता के साथ-साथ मोदी की गिनती काम को तरजीह देने वाले नेताओं में होती है, लेकिन विपक्ष सत्ता के अच्छे कार्यों को भी गलत तरीके से पेश करने की ओछी राजनीति कर रहा है। संवेदनशील मुद्दों पर बेवजह की राजनीति कर माहौल बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है। हालाकि सच्चाई से जनता पूरी तरह वाकिफ है। वह अच्छा-बुरा भली-भांति समझ रही है। विपक्ष के अलावा राजनीतिक पार्टियों से जुड़े तथाकथित लिबरल मीडिया भी मोदी विरोध का एजेंडा चला रहा है। मोदी के प्रति नफरत से प्रेरित मीडिया का यह वर्ग छोटे-छोटे एवं औचित्यहीन मामलों को तूल देकर मोदी सरकार की छवि को नुकसान पहुंचाने की आड़ में देश की छवि को दुनियाभर में खराब करने पर आमादा नजर आ रहा है। तथाकथित लिबरल मीडिया के पीछे किसका हाथ है, यह भी किसी छुपा नहीं है। इससे मीडिया जगत की छवि को भी नुकसान पहुंच रहा है। कई तथाकथित पत्रकार सोशल मीडिया के जरिए पत्रकारिता को भी नुकसान पहुंचा रहे हैं।

मोदी सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने और कृषि क्षेत्र में व्यापक सुधार लाने के लिए तीन कृषि कानूनों को मंजूरी दी थी। इन कानूनों के लाभकारी पहलुओं से किसानों को अवगत कराया गया, मगर पंजाब और सिख समुदाय से जुड़े कुछ किसान संगठनों ने नए कृषि कानूनों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। विपक्ष ने इसे अपने लिए अवसर के रूप में देख रहा है। लेकिन किसान आंदोलन के राजनीतिक पार्टियों से जुड़ने के कारण देश का एक बड़ा वर्ग सत्ताधारी पार्टी की बजाय विपक्षी पार्टियों से अधिक नाराज हुआ है। किसानों के आंदोलन के कारण यातायात व्यवस्था बाधित होने के कारण आमजन को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट तक इस मामले पर चिंता जाहिर कर सख्त टिप्पणी कर चुका है, मगर आंदोलनजीवियों पर इसका भी कोई असर नहीं पड़ा है। आंदोलन के दौरान किसानों का वीभत्स चेहरा भी सामने आया है। कुछ दिन पहले सिंघु बॉर्डर पर दलित युवक की तालीबानी तरीके से हत्या कर दी गई थी। युवक का एक हाथ और पांव तक काट दिया गया था। इस घटना से देशभर में सनसनी फैल गई थी। इसके पहले लालकिला पर भी तथाकथित किसानों की करतूत ने भारत को पूरी दुनिया में शर्मसार कर दिया था। कुछ भोले भाले किसान राजनीति से प्रेरित लोगों के चंगुल में फंस गए हैं। आंदोलनजीवी अक्सर उकसावे की कार्रवाई कर पुलिस को सख्त कदम उठाने पर मजबूर कर रहे हैं। हालांकि पुलिस ने जिस तरीके से धैर्य का परिचय दिया है, वह काबिले तारीफ है। दरअसल विपक्ष चाहता है कि पुलिस कोई ऐसा कदम उठाए, जिससे उसे सरकार को घेरने का अवसर मिल सके। सरकार भी पूरी समझदारी के साथ काम कर रही है। वह आंदोलनजीवी किसानों और विपक्ष के चक्रव्यूह को भेदने में कामयाब होती दिखाई दे रही है।

किसान नेता राकेश टिकैत का रूख भी बार-बार बदल रहा है। हाल ही में टिकैत ने बयान दिया था कि गाजीपुर बॉर्डर को खाली कर किसान दिल्ली के भीतर प्रवेश करेंगे। बाद में वह बयान से पलट गए थे। उन्होंने कहा था कि दीपावली पर्व के मद्देनजर गाजीपुर बॉर्डर पर साफ-सफाई कराई गई थी। आंदोलनजीवी मान नहीं रहे हैं और सरकार अपने रूख पर कायम है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर किसान आंदोलन कब तक चलता रहेगा ? उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में भी किसानों ने जो किया, वह सभ्य समाज में कतई स्वीकार योग्य नहीं है। लखीमपुर खीरी हिंसा की गूंज देश-विदेश में सुनाई दी थी। भाजपा नेता के बेटे की गाड़ी से कुछ किसान कुचले जाने के आरोपों के बाद जिस तरह का नंगा नाच किया गया, वह क्षम्य नहीं है। मॉब लीचिंग के वीडियो सोशल मीडिया पर देखकर हर किसी के खून में उबाल आ गया था। हिंसा पर उतारू आंदोलनजीवियों ने एक गरीब किसान के बेटे हरिओम मिश्रा को बेरहमी से पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया था। ड्राइवर हाथ जोड़कर जान की भीख मांगता रहा था, मगर उपद्रवियों को उस पर कतई रहम नहीं आया। ड्राइवर की स्थिति को देखकर साफ था कि वह बीघा-दो बीघा जमीन का मालिक था। यानि वह भी एक किसान था। लेकिन वह गरीब और छोटा किसान था। बड़ा किसान होता तो शायद वह भी आंदोलन कर रहा होता। ड्राइवर हरिओम मिश्रा की मौत के बाद से पीड़ित परिवार गंभीर आर्थिक संकट में घिर चुका है। लखीमपुर खीरी हिंसा पर भी विपक्ष ने नकारात्मक राजनीति की। हालाकि सरकार ने जिस सूझ-बूझ से मामले को संभाला, उससे विपक्ष को निराशा हाथ लगी थी।

bjp-congressदेश में कांग्रेस की खराब हालत से सभी वाकिफ हैं। यह पार्टी काफी समय से अंदरूनी कलह का शिकार है। कई दिग्गज नेता समय-समय पर शीर्ष नेतृत्व की मंशा पर सवाल खड़े करते रहे हैं। कांग्रेस की बद से बदतर होती हालत के लिए सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के सिर दोष मढ़ा जा रहा है। देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी एक परिवार विशेष की पार्टी बन गई है। कुछ राज्यों में अगले साल विधान सभा चुनाव होने हैं, मगर अब तक कांग्रेस अपनी अंतरकलह को दूर कर पाने में कामयाब नहीं हो सकी है। पंजाब और राजस्थान में आए दिन कांग्रेस में सिर फुटोव्वल हो रही है। पंजाब में पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। पिछले दिनों अमरिंदर सिंह ने दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। ऐसे में उनके भाजपा में शामिल होने की अटकलें चल पड़ी थीं। बाद में खुद अमरिंदर सिंह ने इन अटकलों को सिरे से खारिज कर दिया था। फिलहाल वह पंजाब में नई पार्टी का गठन करने की तैयारी कर रहे हैं। पूर्व सीएम अमरिंदर सिंह के बागी रूख ने कांग्रेस की नींद उड़ा रखी है। देश में विपक्ष औचित्यहीन होने के कारण मोदी सरकार की सेहत पर भी कोई असर नहीं पड़ रहा है। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने हाल ही में बेहद महत्वपूर्ण बयान दिया है। प्रशांत किशोर के बयान के बाद विपक्ष को हताशा हाथ लगी है। उन्होंने कहा है कि सदियों तक भाजपा को सत्ता से हटाना संभव नहीं है। लंबे समय तक सत्ता में भाजपा रहने वाली है। प्रशांत किशोर ने यह बयान कांग्रेस की खराब हालत और इसमें सुधार के लिए गंभीरता से कदम न उठाए जाने को देखकर दिया है। इसके बाद भी कांग्रेस आलाकमान बेफ्रिक नजर आ रहा है।

मोदी सरकार वक्त के साथ जहां खुद को मजबूत करने में ऊर्जा खर्च कर रही है, वहीं विपक्ष बेवजह के मामलों में उलझ कर अपनी ऊर्जा को नष्ट कर रहा है। उत्तर प्रदेश में भी अगले साल विधान सभा चुनाव हैं। दिल्ली की गद्दी का रास्ता यूपी से होकर जाता है। अलबत्ता भाजपा ने यूपी में चुनावी तैयारियों को धार दी है। यह भी साफ हो गया है कि योगी आदित्यनाथ को आगे रखकर भाजपा इस राज्य में पुन: सत्ता वापसी के लिए दम-खम दिखाएगी। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के बाद योगी सरकार के कद्दावर मंत्री सुरेश खन्ना भी योगी आदित्यनाथ के काम की तारीफ कर उन्हें पुन: मौका दिए जाने की बात कह चुके हैं। यूपी में मुख्य रूप से कांग्रेस और सपा खुद को मजबूत करने की कोशिश करती दिखाई दे रही हैं। आम आदमी पार्टी ने भी यूपी विधान सभा चुनाव में ताल ठोंकने का ऐलान कर दिया है। बसपा व रालोद का ज्यादा असर नहीं है। पिछले दिनों एक चुनावी सर्वे में भी यूपी में भाजपा की वापसी होने की संभावना जाहिर की गई है।