क्यों इतने अलोकप्रिय हुए नीतीश, झंझारपुर से होगा पत्ता साफ?

– बिहार विधानसभा परिक्रमा

बिहार में विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती चल रही है। नामांकन प्रक्रिया शुरू हो गई है। तीन चरणों में होने वाले विधानसभा चुनाव का अंतिम परिणाम 10 नवंबर को घोषित होगा। बिहार विधानसभा को लेकर राष्ट्रीय हिंदी दैनिक समाचार पत्र उदय भूमि द्वारा विशेष चुनावी कवरेज की जा रही है। पाठकों तक सही एवं सटीक जानकारी पहुंचाने के लिए समाचार पत्र द्वारा परंपरागत शैली के बजाय स्थानीय संपर्क सूत्रों एवं बड़े मठाधाीशों के बजाय स्थानीय जानकारों की राय को अधिक तवज्जों दी जा रही है। इसी कड़ी में समाचार पत्र द्वारा विधानसभा परिक्रमा कॉलम की शुरूआत की गई है। इस कॉलम में विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं की संख्या, जातिगत आंकलन, पुराने समीकरण, नेताओं को लेकर आम जनता की राय, पुराने रिकार्ड इत्यादि पर विश्लेषणात्मक रिपोर्ट पेश की जाएगी। आज के कॉलम में हम मिथालांचल क्षेत्र के मधुबनी जिला में स्थित ब्राह्मण बाहुल्य विधानसभा क्षेत्र झंझारपुर की चर्चा करेंगे।

विधानसभा संख्या- 38
विधानसभा नाम- झंझारपुर
वर्तमान विधायक- गुलाब यादव (आरजेडी)
मतदाताओं की संख्या- 311641
मतदान की तिथि- 3 नवंबर 2020
मतगणना की तिथि- 10 नवंबर 2020

विनोद झा
मधुबनी। मिथिलांचल में मान सम्मान की परंपरा है। लेकिन यहां की राजनीति पूरी तरह से जाति-बिरादरी पर आधारित है। मधुबनी जिला स्थिति झंझारपुर विधानसभा ब्राह्मण बाहुल्य विधानसभा क्षेत्र है। विधानसभा का गणित भी जाति-बिरादरी के आंकड़े में ही सिमटा हुआ है। अभी टिकट का बंटवारा नहीं हुआ है। यह भी तय नहीं है कि झंझारपुर विधानसभा एनडीए गठबंधन में किस राजनैतिक पार्टी के पास रहेगा। लेकिन राजनैतिक पंडितों के साथ-साथ राजनैतिक कार्यकर्ता भी यही मानकर चल रहे हैं कि एनडीए गठबंधन में प्रत्याशी सवर्ण उम्मीदवार ही होगा। जबकि महागठबंधन से पिछड़ा वर्ग का उम्मीदवार दावेदारी करेगा। आरजेडी यहां दुबारा से गुलाब यादव को प्रत्याशी बना सकती है। लेकिन जिस सख्स के बारे में वर्तमान में विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक चर्चा हो रही है वह नीतीश मिश्रा हैं। नीतीश मिश्रा नकारात्मक कारणों से चर्चाओं में अधिक हैैं। इन चर्चाओं से उन्हें भी कतई खुशी नहीं मिल रही होगी। लेकिन आश्चर्य इस बात की भी है कि आखिर पार्टी कार्यकर्ताओं से लेकर ब्राह्मण मतदाताओं के बीच नीतीश मिश्रा इतने अलोकप्रिय कैसे हो गये हैं। जानकार इसकी वजह वंशवाद की राजनीति को लेकर लोगों में पनप रहा आक्रोश और झंझारपुर क्षेत्र के पिछड़ेपन को मान रहे हैं। बिहार की सवर्ण राजनीति में वंशागत राजनीति से लोगों में रोष है। जहां ललित बाबू (ललित नारायण मिश्र) के लिए झंझारपुर के लोगों के दिल में अगाध प्रेम हैं वहीं, जगन्नाथ मिश्रा का नाम आते ही लोग नाक-भौं सिकोड़ने लगते हैं। नीतीश मिश्रा को भी लोग जगन्नाथ मिश्रा परंपरा और

अवसरवाद की राजनीति का वाहक मान रहे हैं। लोगों का आरोप है कि पिता जगन्नाथ मिश्रा की ही तरह नीतीश मिश्रा भी सिर्फ स्वयं के लिए राजनीति करते हैं। मतदान खत्म होते ही क्षेत्र के लोगों से वह सरोकार खत्म कर लेते हैं। आम मतदाताओं के बजाय सिर्फ चुनिंदा लोगों के साथ ही उनका संपर्क रहता है। झंझारपुर विधानसभा क्षेत्र में उनके खिलाफ आजकल जोरदार नारे लग रहे हैं। ब्राह्मण समाज के लोगों को यह कहते हुए सुना जा रहा है कि झंझारपुर का भरना (बंधकी) इस बार छुड़ाना है। झंझारपुर को इस बार विधानसभा चुनाव में उसका बेटा चाहिये। उनका साफ इशारा नीतीश मिश्रा की तरफ है। भाजपाई खेमे में भी यह चर्चा है कि पार्टी के स्थानीय इकाई भी नीतीश के खिलाफ हैं और संगठन को चेता चुके हैं कि नीतीश को टिकट मिलने पर समर्पित ब्राह्मण मतदाता भाजपा के खिलाफ भी अपना गुस्सा दिखा सकते हैं। सोशल मीडिया पर युवाओं द्वारा भी नीतीश के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार ऋषि मिश्रा बताते हैं कि नीतीश मिश्रा के खिलाफ नाराजगी की कई जायज वजह हैं। नीतीश भले ही वर्तमान में भाजपा प्रदेश कार्यसमिति में पदाधिकारी हैं लेकिन पार्टी के आम कर्यकर्ता उन्हें पैरॉशूट और बाहरी मानते हैं। नीतीश मिश्रा जद (यू) से विधायक और मंत्री बने। बाद में पाला बदलकर मांझी की पार्टी हम में शामिल हुए। हालांकि टैक्टिस बदलते हुए उन्होंने पिछला चुनाव भाजपा के चुनाव चिन्ह पर लड़ा। फिर भी वह हार गये। नीतीश समर्थकों द्वारा यह कहा जा रहा है कि हार-जीत का मार्जिन सैकड़ों में था। लेकिन इन तर्कों की काट भाजपा के लोगों द्वारा ही कर दी जा रही है। ऋषि कहते हैं कि ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या के लिहाज से झंझारपुर को भाजपा का सुरक्षित सीट माना जा सकता है। यही वजह है कि जद (यू) के संजय झा भी इस बार इस बात के लिए जोर लगा रहे हैं कि झंझारपुर जद (यू) के पास रहे और वह यहां से चुनाव लड़ें। यदि सीट भाजपा के खाते में आती है तब भी नीतीश के विरोध में कई लोग मैदान में हैं। पूर्व सांसद विरेंद्र कुमार चौधरी ने कई तर्क देकर अपना दावा पेश किया है। जूही झा भी क्षेत्र में सक्रिय हैं। भाजपा महिला मोर्चा में काम किया है और टिकट मांग रही हैं। भाजपा ओबीसी मोर्चा के प्रदेश महामंत्री ललन कुमार मंडल खुद को जातीय समीकरण में सबसे उपयुक्त बता रहे हैं। वही, वर्ष 2006 से 2016 तक झंझारपुर भाजपा के जिलाध्यक्ष रहे राकेश मिश्रा का नाम भी दावेदारों की सूची में काफी तेजी से आगे बढ़ा है। राकेश मिश्रा रामजन्म भूमि आंदोलन से भाजपा से एक कार्यकर्ता के रूप में जुड़ें हुए हैं और पार्टी के निष्ठावान एवं समर्पित कार्यकर्ता मानेे जाते हैं। वर्तमान में प्रदेश कार्यसमिति सदस्य एवं निर्मली विधानसभा के प्रभारी हैं।
राजनैतिक विश्लेषक एवं पत्रकार नागेश्वर सिंह कहते हैं कि इसमें कोई शक नहीं कि सवर्ण जाति की वोट संख्या के आधार पर झंझारपुर भाजपा का सुरक्षित सीट हो सकता है। लेकिन इसमें भी कोई शक नहीं कि नीतीश मिश्रा की लोकप्रियता का ग्राफ

काफी नीचे जा चुका है। उनको लेकर जबरदस्त नाराजगी है। पिछले दिनों भाजपा के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बीएल संतोष ने भी कहा था कि पैराशूट या दूसरे दलों से भाजपा में आए लोगों को तरजीह देने के बजाय संगठन की सेवा करने वालों को तवज्जो दी जाएगी। वहीं पूर्व के वर्षों में लालू, मांझी, जद यू की राजनीति में हाथ सेंकने वालों में भी नीतीश मिश्र का नाम आया था। सुशील कुमार मोदी भी एक इंटरव्यू में कह चुके हैं कि जगन्नाथ मिश्रा बिहार की उलझाऊ राजनीति के महारथी रहे हैं। इन सब कारणों को देखते हुए कहा जा सकता है कि 2020 में झंझारपुर विधानसभा में नीतीश मिश्रा की राह आसान नहीं है। नागेश्वर सिंह कहते हैं कि पिता-पुत्र (जगन्नाथ मिश्रा-नीतीश मिश्रा) की जोड़ी ने 33 वर्षों तक झंझारपुर क्षेत्र पर राज किया। जगन्नाथ मिश्र तीन बार मुख्यमंत्री बने और नीतीश मिश्र मंत्री इसके बावजूद झंझारपुर में विकास नहीं हुआ और क्षेत्र बेहाल है। इन्होंने मैथिल ब्राह्मण से किसी को राजनीति में उभरने नहीं दिया। पहले लोग ललित बाबू के नाम पर इन्हें सम्मान देते रहे हैं। लेकिन अब नई पीढ़ी है जो हिसाब मांग रही है।