जेष्ठ महीना के पावन उपलक्ष्य पर शिव मंदिर में विशाल भंडारे का आयोजन

-गरीब को दान करना व भूखे को खाना खिलाना ही भगवान की असली भक्ति: मनोज कृष्णा शास्त्री

गाजियाबाद। गोविंदपुरम स्थित जी ब्लॉक शिव मंदिर में मंगलवार को ज्येष्ठ महीना के पावन उपलक्ष्य में भंडारे का आयोजन किया गया। श्री शिव हनुमत धाम कष्ट निवारण धाम नवग्रह मंदिर खेड़ा हाथीपुर ग्रेटर नोएडा उत्तर प्रदेश अध्यक्ष पं. श्री मनोज कृष्णा शास्त्री के नेतृत्व में यश जी इंफ्रा होम्स की तरफ से आयोजित भंडारे में हजारों लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया। इससे पूर्व शिव मंदिर में पूजा अर्चना की गई। अध्यक्ष पं. श्री मनोज कृष्णा शास्त्री महाराज ने बताया यह भंडारे का आयोजन मनोकामना पूर्ण होने पर जी ब्लॉक शिव मंदिर में किया गया है। चार वस्तुओं का दान सर्वश्रेष्ठ है, जिनमें वस्त्र दान, द्रव्य दान, अन्न दान एवं गौ दान। मनुष्य जब वस्त्र दान करता है तो उसके मानसिक पापों का नाश होता है।

उन्होंने कहा कि द्रव्य दान करने से क्रय के द्वारा किए पापों का नाश होता है। गौ दान करने से पूर्व किए हुए पापों का नाश होता है, परंतु जब मनुष्य अन्न दान करता है तो उसके दैहिक दैविक और भौतिक तीनों प्रकार के पापों का नाश हो जाता है। उस मनुष्य के जीवन में कभी दरिद्रता नहीं आती है। किसी भूखे को भोजन कराने जैसा अन्य कोई पुण्य नहीं है। गरीब को दान करना व भूखे को खाना खिलाना ही भगवान की असली भक्ति है। भगवान की भक्ति करने का सही तरीका यह है कि आप किसी को गलत नहीं बोले न ही किसी का गलत करें। उन्होंने कहा जरूरी नहीं है कि भगवान आपकी पूजा से ही प्रसन्न होंगे। आप किसी का अच्छा सोचेंगे, किसी का भला करोगे, उनकी सहायता करना ही भक्ति है।

शास्त्री जी ने बताया कुछ माह पूर्व एक मनोकामना थी, श्री हनुमान जी महाराज की कृपा एवं मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी के आशीर्वाद से वह पूरा हो गया। यश जी इंफ्रा होम्स के यस चतुर्वेदी ने बताया हर धर्म की धार्मिक योजना के साथ, जहां मन की शांति होती है, वहां सांप्रदायिक सद्भाव भी मजबूत होता है। धार्मिक कार्यों में भाग लेकर उन्हें विशेष आनंद मिलता है। लोग मंदिरों में पैसा व खाने का सामान चढ़ाते हैं। उनको भगवान खाने नहीं आते उसका मंदिरों के लोग ही प्रयोग करते हैं। वही खाना और पैसा अगर गरीबों को दिया जाए तो भगवान खुश होंगे आपको भी बहुत अच्छा लगेगा। ईश्वर का असली स्थान हमारे मन में है।