निस्वार्थ भाव से सेवा कर लोगों का सहारा बनी रही श्री राम वेद सेवा संस्थान

-बेसहारा बच्चों की मदद से बड़ा कोई पुण्य नहीं: तनूजा
-निस्वार्थ भाव से की गई सेवा का कोई मोल नहीं: आशीष गौतम

गाजियाबाद। समाज में सभी व्यक्ति सम्पन्न नहीं होते और न सब किसी संगठन से सहायता प्राप्त करने जैसे भाग्यशाली। पहले आदमी अपने सारे स्रोतों का सहारा लेता है और यदि वह असहाय हो जाता है तो सरकार से मदद की उम्मीद करता है। लेकिन सरकारी मदद पाना कितना दुष्कर होता है, इसे मुक्त भोगी ही जानता है। तमाम परेशानियों के बाद यह किसी को मिल भी गई तो कई बार यह सहायता मिलने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है। ऐसे में यदि कोई संगठन बहुत ज्यादा औपचारिकता में गये बगैर पात्र व्यक्ति की मदद कर रहा हो तो उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए। ऐसे ही कार्य की शुरुआत श्री राम वेद सेवा संस्थान (एसआरवीएसएस) विगत कुछ सालों से गाजियाबाद समेत अन्य जिलों में कर रहा है। जरुरी नहीं हर काम को सार्वजनिक किया जाए। संस्थान के पदाधिकारियों का मानना है कि मनुष्य जीवन हमें इसलिये मिलता है ताकि हम दूसरों की मदद कर सकें, हमारा दुनिया में होना तभी सार्थक कहलाता है जब हम अपने बुद्धि विवेक से, अपने अंदर निहित ईश्वर प्रदत्त मानवता/करूणा भाव से दूसरों के दु:ख दर्द को समझें और यथासंभव सहायता करें।

जरूरी नहीं कि जिसके पास पैसे हो या जो अमीर हो केवल वही दान दे सकता है। याद रहे दूसरों को मदद करना किसी के अमीर होने की मोहताज नहीं, ढेरों मदद तब भी की जा सकती है, जब निष्पादक के पास सिर्फ मूलभूत आवश्यकताएं हों व दिल में दूसरों के लिए सच्चे जज्बात हों। जीवन मूल्यों में संस्कारों का बड़ा महत्व है। ऐसा ही एक संस्कार है सेवा का भाव। निस्वार्थ भाव से यथासंभव जरूरतमंद की मदद करना, सेवा करना हमारे संस्कारों की पहचान कराता है। तन, मन और वचन से दूसरे की सेवा में तत्पर रहना स्वयं इतना बड़ा साधन है कि उसके रहते किसी अन्य साधन की आवश्यकता ही नहीं रहती। क्योंकि जो व्यक्ति सेवा में सच्चे मन से लग जाएगा उसको वह सब कुछ स्वत: ही प्राप्य होगा जिसकी वह आकांक्षा रखता है। शनिवार को गोविंदपुरम स्थित घरौंदा आश्रम में श्री राम वेद सेवा संस्थान के सदस्य आशीष गौतम, तनूजा निराश्रित बच्चों को खाद्य सामग्री भेंट की।

बच्चों ने तालियां बजाकर आगंतुकों का स्वागत किया। वहीं बिस्कुट, फ्रूटी, फल पाकर बच्चों के चेहरे खिल उठ़े। इस दौरान पदाधिकारी आशीष गौतम ने कहा कि इस तरह अनाथ आश्रम में जाकर के बच्चें के बीच प्यार बांटने से एक अलग सी अनुभूति होती है, उस व्यक्त करना बड़ा मुश्किल है। बच्चों का साथ दिल के अंदर के भाव को पैदा करता है। उन्होंने आम लोगों से भी ऐसे बच्चों के लिए मदद करने की अपील की। बाद में स्वयं सेवकों ने बच्चों के साथ कई प्रकार के खेल आदि खेले। उन्होंने कहा सेवा भाव ही मनुष्य की पहचान बनाती है और उसकी मेहनत चमकाती है। सेवा भाव हमारे लिए आत्मसंतोष का वाहक ही नहीं बनता बल्कि संपर्क में आने वाले लोगों के बीच भी अच्छाई के संदेश को स्वत: उजागर करते हुए समाज को नई दिशा व दशा देने का काम करता है। पदाधिकारी तनूजा ने कहा गरीब अनाथ बच्चों की सेवा में जो पुण्य है वह किसी अन्य दूसरे कार्यों में नहीं। अनाथ बच्चों में कई ऐसे होते हैं जो प्रतिभा रहने के बावजूद अभावों के कारण कुछ अच्छा नहीं कर पाते।

ऐसे बच्चों की प्रतिभा पहचान कर उन्हें प्रोत्साहित करना ही मनुष्य जीवन को वास्तविक आनंद देता है। घरौंदा आश्रम की स्थापना, उद्देश्य और वर्तमान हालत पर विस्तार से चर्चा करते हुए उन्होंने कुछ समय बिताने की अपील की। उन्होंने कहा कि यदि कोई यहां पर इन बच्चों को अपना समय देते हैं तो बच्चों को लगता है कि उनके परिवार को कोई आ गया है। आज की भागमभाग जिन्दगी में इन्सान पुण्य के कार्यों से दूर होता जा रहा है। ऐसे विपरीत हालात में भी यदि कोई व्यक्ति बेसहारा लोगों खासकर बच्चों के उत्थान का जिम्मा संभालता है, तो इससे बड़ा पुनीत कार्य कोई दूसरा नहीं हो सकता। संस्थान का हमेशा से यही प्रयास रहा है। हर उस इंसान की मदद की जाए, जो निराश्रित हो या फिर असहाय हो। ऐसे लोगों की बीच में जाकर उनकी जरूरतों को समझ कर उनकी हर संभव मदद की जा रही है।