किसान हारे, आंदोलनजीवी जीते

सरकार का तीनों कृषि कानून की वापसी का ऐलान

विजय मिश्रा
( उदय भूमि ब्यूरो)
नई दिल्ली।
गुरु पर्व और कार्तिक पूर्णिमा के पावन मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों नए कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान कर एक बार फिर सभी को चौंका दिया। पीएम मोदी ने कृषि कानूनों का बचाव भी किया। उन्होंने कहा कि यह कानून किसानों के हित में थे। पीएम ने कहा कि संभवत: हमारी सरकार कृषकों को अपनी बात सही तरीके से बताने में सफल नहीं हो सकी। पीएम ने कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर विपक्ष को भी निहत्था करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। कुल मिलाकर कृषि कानूनों की वापसी से जहां किसानों की हार हुई है, वहीं आंदोलनजीवी जीत गए हैं। असल किसान खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। जबकि आंदोलनजीवी इसे अपनी जीत बताकर बल्लियां उछलते दिखाई दे रहे हैं।

पीएम ने एक बार फिर चौंकाया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की। इन कानूनों को विगत 17 सितंबर 2020 को संसद से मंजूरी मिली थी। इसके बाद से किसान संगठनों ने विरोध की आवाज बुलंद कर रखी थी। किसान संगठनों का तर्क था कि इस कानून के जरिए सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को समाप्त कर देना चाहती है। उन्हें उद्योगपतियों के रहमोकरम पर छोड़ दिया जाएगा। हालांकि सरकार का तर्क था कि इन कानूनों के जरिए कृषि क्षेत्र में नए निवेश का अवसर उत्पन्न होगा और कृषकों की आय बढ़ेगी। सरकार के साथ किसान संगठनों की कई दौर की वार्ता के बाद भी इस पर सहमति नहीं बन पाई। किसान दिल्ली की सीमाओं के आस-पास आंदोलन करते रहे।

ड्रैमेज कंट्रोल में मिलेगी सफलता
तीनों कृषि कानूनों को लेकर सरकार पिछले साल-डेढ़ साल से विपक्ष के भी निशाने पर थी। विपक्ष ने सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ा था। पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में आंदोलनकारी किसान संगठनों ने मोर्चा खोलकर खुलकर भाजपा के खिलाफ प्रचार किया था। कृषि कानूनों का सर्वाधिक विरोध पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी में देखने को मिल रहा था। कृषि कानूनों के विरोध के नाम पर अराजक तत्वों ने भाजपा नेताओं से मारपीट तक कर दी थी। अब कृषि कानूनों को वापस लेने से भाजपा डैमेज कंट्रोल में सफल हो सकती है। कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा का समय भी महत्वपूर्ण है। अगले साल उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड आदि राज्यों में विधान सभा चुनाव होने हैं। भाजपा के खिलाफ पउप्र में खासकर जाट समुदाय में काफी आक्रोश था, जो विधान सभा चुनाव में पार्टी के लिए काफी महंगा पड़ सकता था, मगर भाजपा ने चुनाव से ऐन पहले कृषि कानूनों को वापस लेकर यूपी खासकर पउप्र को साधने की भरसक कोशिश की है।

विपक्ष के हाथ से फिसला अह्म मुद्दा
भाजपा को मालूम है कि मिशन-2024 के लिए 2022 में भी उत्तर प्रदेश में जीत जरूरी है। इसके अलावा कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा से मोदी सरकार ने विपक्षी दलों के हाथ से एक बड़ा मुद्दा छीन लिया है। विवादित कृषि कानून का मसला ना सिर्फ विपक्ष के लिए सरकार के खिलाफ बड़ा अस्त्र था बल्कि यह विपक्षी दलों को एक साथ पिरोने वाला सूत्र भी था। विपक्षी एकता का आधार था। किसान आंदोलन को भुनाने की कोशिश में जुटे विपक्ष के लिए मोदी सरकार का यह दांव बड़ा झटका माना जा रहा है।