भारत को अह्म जिम्मेदारी : अफगानिस्तान की जगी उम्मीद

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की कमान आजकल भारत के हाथ में है। यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलने के बाद देश की प्रतिष्ठा में निश्चित तौर पर चार चांद लगे हैं। भारत संपूर्ण अगस्त माह के लिए सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष रहेगा। दुनियाभर में शांति स्थापित रखने में यह विश्वस्तरीय संगठन अह्म भूमिका निभाता है। नागरिकों पर जुल्म और अत्याचारों के खिलाफ यह संगठन हमेशा मुखर रहता है।

सुरक्षा परिषद के मुखिया का दायित्व ऐसे समय में भारत को मिला है, जब अफगानिस्तान में बदलाव का दौर चल रहा है। तालिबान की आक्रामकता के कारण वहां दिन-प्रतिदिन संकट गहरा रहा है। इस समय अफगान सरकार, सेना और नागरिकों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। विदेशी हस्तक्षेप न होने की वजह से तालिबान की मनमानी बढ़ गई है। अफगानिस्तान से अमेरिका और नाटो सैनिकों की घर वापसी लगभग पूरी होने को है। इसके लिए अमेरिका ने 11 सितम्बर की डेडलाइन निर्धारित की है। संकट में घिरे अफगान की पुकार और गुहार को विभिन्न ताकतवर मुल्कों ने अनसुना कर दिया है। फौरी मदद करने की बजाए सिर्फ आश्वासन दिया जा रहा है।

रूस व चीन जैसे ताकतवर देश अपने हितों को साधने में मशगूल हैं। भविष्य में शिंजियांग प्रांत को महफूज रखने के लिए चीन ने तालिबानी नेताओं से सेटिंग कर ली है। इसी प्रकार रूस ने अपने सहयोगी देशों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने को तालिबान से चर्चा की है। इन दोनों देशों ने अब अफगानिस्तान की आंतरिक स्थिति से मुंह मोड़ लिया है। पाकिस्तान को तालिबान का सबसे करीबी माना जाता है। अफगान के शासन बार-बार पाकिस्तान से गुहार लगा रहे हैं कि वह तालिबान को शांति वार्ता की मेज पर लाने को बाध्य करे, मगर इस्लामाबाद दूसरे मकसद में लगा है। भारत और अफगानिस्तान के संबंध काफी अच्छे हैं।

पिछले 2 दशक में भारत ने अफगानिस्तान में विकास, खेलकूद एवं शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। भारत ने कभी तालिबान की नीतियों का समर्थन नहीं किया। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इन दिनों भारत की मजबूत भूमिका को देखकर अफगानिस्तान की उम्मीदें जागी हैं। अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मोहम्मद हनीफ अतमार ने अपने भारतीय समकक्ष एस जयशंकर से फोन पर चर्चा की है। हनीफ अतमार ने जयशंकर को तालिबान की करतूतों से अवगत कराने के साथ-साथ अपने देश में जारी हिंसा और मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं से अवगत कराया है। अफगानिस्तान के विदेश मंत्री ने मौजूदा स्थिति को देखकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की इमरजेंसी मीटिंग बुलाने की जरूरत पर बल दिया है। सुरक्षा परिषद की इमरजेंसी मीटिंग बुलाने की संभावनाओं पर भारत के विदेश मंत्री से चर्चा हुई है।

दरअसल अमेरिक, रूस, चीन और पाकिस्तान से निराशा हाथ लगने के बाद अफगानिस्तान की आखिरी उम्मीद अब भारत पर टिकी है। यदि सुरक्षा परिषद में इस मुद्दे पर आपात बैठक बुलाई जाती है तो यह अफगान सरकार के लिए बड़ी राहत साबित होगा। युद्धग्रस्त देश में तालिबान और विदेशी आतंकी समूहों के हमलों से स्थिति निरंतर बिगड़ रही है। अफगानिस्तान का कहना है कि संयुक्त राष्ट और विश्व बिरादरी को तालिबान की हिंसा और अत्याचार को रोकने में अह्म भूमिका निभानी चाहिए।

अफगान विदेश मंत्रालय ने विदेशी लड़ाकों और आतंकी समूहों की मिलीभगत से जारी तालिबान के हमलों को अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताया है। अफगानिस्तान की चिंता को दूर करने में भारत का रूख कैसा होगा, यह भविष्य में मालूम पड़ेगा। इसके पहले अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी मौजूदार संकट से निपटने के लिए भारत से सैन्य मदद लेने से इंकार कर चुके हैं। उन्होंने कहा था कि इस विषय में कोई बातचीत अब तक नहीं हुई है। अफगानिस्तान की स्थिति पर कुछ रक्षा विशेषज्ञ गंभीर चिंता जाहिर कर चुके हैं। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि तालिबान को मनमानी करने से रोकना होगा। ताकतवर देशों ने यदि आज उचित कदम नहीं उठाए तो भविष्य में उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। तालिबान के साथ-साथ विभिन्न आतंकी संगठन खुद को मजबूत कर लेंगे। अगले कुछ वर्षों में यह संगठन विभिन्न देशों का माहौल बिगाड़ने की भरपूर कोशिश करेंगे। तब इस समस्या से निपटना अधिक मुश्किल होगा।

अफगानिस्तान में तालिबान का राज आने पर खासकर महिलाओं की स्थिति और दयनीय हो जाएगी। महिलाओं को तालिबान के हिसाब से जीवन यापन करना पड़ेगा। तालिबान के साथ चीन और पाकिस्तान की दोस्ती भी भारत के लिए कतई शुभ संकेत नहीं है। तालिबान के दिमाग में अभी से भारत के खिलाफ नफरत के बीज बोए जा रहे हैं। इसके चलते तालिबानी नेताओं ने भारत को लेकर अनगर्ल बयानबाजी शुरू कर दी है। इस आतंकी संगठन के एक प्रवक्ता ने कुछ दिन पहले भारत पर गंभीर आरोप लगाए थे। प्रवक्ता का कहना था कि भारत पर्दे के पीछे से अफगानिस्तान सरकार की सैन्य सहायता कर रहा है। यह उन्हें कतई मंजूर नहीं है। भारत को अपनी नीति स्पष्ट करनी चाहिए। जबकि भारत द्वारा अफगानिस्तान को सैन्य मदद किए जाने के कोई प्रमाण अब तक सामने नहीं आए हैं।

अलबत्ता साफ है कि तालिबान को भारत के खिलाफ भड़काने की कोशिशें आरंभ हो चुकी हैं। यह काम सिर्फ पाकिस्तान कर सकता है। अफगानिस्तान में भारत का दखल रोकने को पाकिस्तान लंबे समय से प्रयासरत है। इन कोशिशों में उसे अब सफलता मिलती नजर आ रही है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अध्यक्ष होने के नाते भारत को अफगानिस्तान संकट की तरफ ध्यान देखकर उचित कदम उठाने चाहिए। अन्य देशों को भी मौजूदा समस्या से लड़ने के लिए तैयार करना चाहिए। अमेरिका को पाकिस्तान और तालिबान पर दबाव डालकर शांति वार्ता के जरिए काबुल में सत्ता हस्तांतरण की कोशिश करनी होगी। विपदा के वक्त अफगानिस्तान सरकार, सेना और नागरिकों को बाहरी सहयोग की सबसे ज्यादा जरूरत है।