जश्न-ए-तालिबान पर नसीरुद्दीन शाह की नसीहत

मशहूर अभिनेता नसीरुद्दीन शाह आजकल सुर्खियों में हैं। तालिबान और मुसलमानों पर शाह का बयान गौर करने लायक है। अफगानिस्तान में तालिबान की जीत पर जश्न मनाने में मशगूल मुसलमानों को उन्होंने न सिर्फ आईना दिखाया है बल्कि भविष्य के प्रति सचेत भी किया है। शाह की मंशा पर मिश्रित प्रतिक्रिया सामने आ रही है। कोई उनके विचारों का सम्मान कर रहा है तो कोई तीखी आलोचना। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में नसीरुद्दीन शाह उन मुसलमानों की निंदा करते दिखाई दे रहे हैं, जो कट्टर तालिबान की जीत पर बल्लियां उछल रहे हैं।

उन्होंने कहा है कि जो व्यक्ति आज तालिबान की सफलता का जश्न मना रहे हैं, उन्हें खुद से यह पूछना चाहिए कि, उन्हें बदलाव चाहिए, मॉडर्न इस्लाम चाहिए अथवा वह बीते दशकों की बर्बरता के साथ रहना चाहते हैं। बकौल शाह हिंदुस्तानी या भारतीय इस्लाम हमेशा दुनियाभर के इस्लाम से अलग रहा है। उन्हें उम्मीद है कि खुदा वो समय न लाए कि वह इतना बदल जाए कि हम इसे पहचान भी न सकें। शाह का यह बयान वर्तमान में कई मायनों में बेहद अह्म है। दरअसल परिवर्तन प्रकृति का नियम है।

समय के साथ बदलावों को स्वीकार करना पड़ता है। समय के साथ न चलने और परिवर्तन की अनदेखी करने पर आप दौड़ में पिछड़ जाते हैं। मुसलमानों पर भी यह बात बिल्कुल सटीक बैठती है। मुस्लिमों के पिछड़ेपन का मूल कारण भी यही है। वह समय के हिसाब से बदलना नहीं चाहते हैं। चर्चित पाकिस्तानी लेखक तारिक फतह कई मौकों पर इस्लाम को लेकर महत्वपूर्ण स्पीच दे चुके हैं। उनका मानना है कि वह अल्लाह का इस्लाम मानते हैं, मुल्ला का नहीं। मुसलमानों की खराब दशा और पिछड़ेपन पर वह खुलकर लिखते और बोलते आए हैं। इस कारण वह हमेशा कट्टरपंथी मुस्लिमों के निशाने पर रहते हैं।

अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने अपना नजरिया साफ कर दिया है। उन्होंने मुसलमानों को संदेश दिया है कि तालिबान की जीत पर जश्न मनाकर एक तरह से गलत परंपरा का समर्थन किया जा रहा है। यह किसी सूरत में ठीक नहीं है। अफगानिस्तान पर अब तालिबान काबिज हो चुका है। देश को कब्जाने के लिए तालिबान ने जिस तरीके को अपनाया, उसे कतई ठीक नहीं कहा जा सकता है। तालिबान अब शरिया कानून के जरिए साढ़े 3 करोड़ की आबादी को रूढ़िवादी तौर-तरीकों में बांधना चाहता है।

खासकर महिलाओं की जिंदगी ज्यादा कष्टदायी हो जाएगी। उन्हें सख्त नियम-कायदों का पालन कर जीवन यापन करने को मजबूर होना पड़ेगा। अभिनेता नसीरुद्दीन शाह के विचारों की गहराई को जानने की जरूरत है। इसके लिए वह प्रशंसा के पात्र हैं। वरना भारत में तालिबान प्रेमियों की कोई कमी नहीं है। देश में कुछ दिन पहले तालिबान के समर्थन में उठी आवाजों पर खासा बवाल मचा था। तालिबान की वकालत करने पर समाजवादी पार्टी (सपा) के एक सांसद के खिलाफ गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किया गया था।

तालिबान के डर से बड़ी संख्या में नागरिकों ने अफगानिस्तान छोड़ दिया है। यह नागरिक अब विभिन्न देशों में शरणार्थी बनकर रह रहे हैं। जिन नागरिकों ने तालिबान के जुल्म और अत्याचार सहे हैं, उन्हें न्याय दिलाने के लिए भी आवाजें उठाई जानी चाहिए। ताकत और हथियारों के बल पर नागरिकों की आवाज को बंद करना और अधिकारों को कुचल देना खतरे की घंटी है। सभ्य समाज में इस प्रकार की गतिविधियों को कभी स्वीकार नहीं किया जा सकता है। अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर फिलहाल कयास लगाए जा रहे हैं।

बेशक तालिबान ने पहले के मुकाबले खुद को बदलने का दावा किया है, मगर वह ऐसा कर पाएगा इस पर संशय कायम है। वहां यदि आतंकवाद को पनपने का अवसर मिलता रहा तो निश्चित रूप से अफगानिस्तान का हाल पाकिस्तान जैसा हो जाएगा। जहां आज भी कट्टरपंथी संगठनों के आगे सत्ता को घुटने टेकने पड़ते हैं। पाकिस्तान और तालिबान की जुगलबंदी किसी से छुपी नहीं है। तालिबान के माध्यम से वह अपने गैर कानूनी मंसूबों को पूरा करना का सपना देख रहा है। इस कुख्यात संगठन को ताकत देने में पाक आर्मी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

इसके अलावा पाकिस्तान ने सैकड़ों की तादात में आतंकियों को भी वहां लड़ने भेजा था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की छवि बेहद खराब है। अर्थव्यवस्था डांवाडोल होने, महंगाई बढ़ने, कर्ज की मार, बेरोजगारी के बावजूद वह आतंकवाद का साथ छोड़ने को तैयार नहीं हैं। इसके चलते अवाम की मुश्किलें भी बढ़ी हुई हैं। पाकिस्तान के मुकाबले भारतीय मुसलमानों की स्थिति काफी बेहतर है। अलबत्ता अभिनेता नसीरुद्दीन शाह के बयान की आलोचना करने वालों को जमीन हकीकत से भी रूबरू होना चाहिए। जिस तालिबान के खौफनाक कारनामों से पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया है, उसका समर्थन करने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद सकारात्मक परिवर्तन आया है। वहां आतंकी घटनाओं में कमी आने के अलावा पत्थरबाजी का दौर समाप्त हो चुका है। युवाओं को समाज की मुख्यधारा में जोड़ने के मकसद से सरकारी योजनाएं शुरू की गई हैं। जम्मू-कश्मीर के होनहार युवा देश-विदेश की नामचीन यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर सुनहरा भविष्य बनाने को उतावले हैं। पहले अलगाववादी संगठनों ने युवाओं को भ्रमित कर रखा था। युवाओं को बरगला कर देश एवं समाज विरोधी कार्य कराए जा रहे थे। मुसलमानों को सही दिशा दिखाने के लिए मुस्लिम बुद्धिजीवियों को आगे आना चाहिए। उन्हें अपने समाज के उत्थान और प्रगति की दिशा में प्रयास करने चाहिए। वक्त की जरूरत को ध्यान में रखकर कदम उठाए बगैर खुद को दौड़ में बनाए रखना मुमकिन नहीं है।