सुप्रीम कोर्ट से IAS रितु महेश्वरी को बड़ी राहत, हाईकोर्ट के आदेश पर लगाई रोक, नोएडा प्राधिकरण की CEO की नहीं होंगी गिरफ्तारी

रितु माहेश्वरी की याचिका सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर फिलहाल गिरफ्तारी पर रोक लगाने के साथ याचिका पर सुनवाई का निर्णय किया है।

नई दिल्ली। नोएडा प्राधिकरण की मुख्य कार्यपालक अधिकारी (CEO) एवं आईएएस रितु माहेश्वरी की गिरफ्तारी टल गई है। सुप्रीम कोर्ट ने रितु माहेश्वरी के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जारी गैर जमानती वारंट पर रोक लगा दी है। शीर्ष अदालत के फैसले से रितु माहेश्वरी को बड़ी राहत मिल गई है।

अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की थी।सुप्रीम कोर्ट ने अर्जी पर विचार के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा CEO रितु माहेश्वरी के खिलाफ जारी किए गए गैर जमानती वारंट पर फिलहाल रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अगुआई वाली पीठ ने सोमवार को आईएएस रितु माहेश्वरी को तत्काल राहत देने से साफ इंकार कर दिया था। मंगलवार को जब दोबारा केस कोर्ट में मेंशन हुआ तब कोर्ट ने या नया आदेश जारी किया। पूर्व के आदेश में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा था कि क्या आईएएस अफसरों को अदालत के आदेशों का पालन नहीं करने पर अप्रिय परिणाम का सामना करना चाहिए। चीफ जस्टिस ने कहा था कि हम प्रतिदिन इलाहाबाद हाईकोर्ट से देखते हैं कि आदेशों का उल्लंघन होता है। सुप्रीम कोर्ट ने आईएएस रितु माहेश्वरी की याचिका स्वीकार कर फिलहाल गिरफ्तारी पर रोक लगाने के साथ याचिका पर सुनवाई का निर्णय किया है। सुनवाई की तारीख अभी  निर्धारित नहीं की गई है। बता दें कि जमीन अधिग्रहण से जुड़े मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन न करने पर नोएडा प्राधिकरण की CEO रितु माहेश्वरी की मुश्किलें बढ़ गई थीं।

रितु महेश्वरी के कार्यकाल का नहीं है मामला

जिस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रितु महेश्वरी के गिरफ्तारी का आदेश दीया व रितु महेश्वरी के कार्यकाल का नहीं है। जमीन अधिग्रहण का यह मामला तीन दशक से भी ज्यादा पुराना है। नोएडा सेक्टर-82 में प्राधिकरण ने 1989 और 1990 में अर्जेंसी क्लॉज के तहत भूमि अधिग्रहण किया था। अधिग्रहण प्रक्रिया को भूमि की मालकिन मनोरमा कुच्छल ने चुनौती दी थी। इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2016 में मनोरमा के पक्ष में फैसला दिया। हाईकोर्ट ने अर्जेंसी क्लॉज के तहत प्राधिकरण द्वारा किए गए भूमि अधिग्रहण को निरस्त कर दिया। इसके अलावा प्राधिकरण को आदेश दिया था कि याचिकाकर्ता को सर्किल रेट से दोगुने दरों पर मुआवजा दिया जाए।