शोध : अमेरिका में भी नहीं खुली भारतीयों की किस्मत

अमीरी दूर, 3 लाख नागरिकों पर गरीबी का तमगा

वॉशिंगटन। अपना वतन छोड़कर अमेरिका जाकर भी यदि गरीबी से छुटकारा न मिले तो किस्मत पर मायूस होना स्वभाविक बात है। अमेरिका में करीब 3 लाख भारतीय गरीबी की जिंदगी गुजारने को मजबूर हैं। कोविड-19 (कोरोना वायरस) के बाद बिगड़े हालात ने उन्हें और मुश्किल में डाल दिया है। रोजी-रोटी के लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ रहा है। अमेरिका में फिलहाल 42 लाख भारतीय रह रहे हैं। जिनमें से लगभग 6.5 प्रतिशत नागरिक गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने को मजबूर हैं। ताजा शोध में भारतीय-अमेरिकियों की यह खराब दशा सामने आई है। कोरोना काल में इन नागरिकों की परेशानी और ज्यादा बढऩे की संभावना जाहिर की गई है। जॉन हॉपकिंस स्थित पॉल नीत्ज स्कूल ऑफ एडवांस्ड इंटरनेशनल स्टडीज के देवेश कपूर और जश्न बाजवात द्वारा भारतीय-अमेरिकी आबादी में गरीबी विषय पर शोध किया है। शोध के नतीजे इंडियास्पोरा परोपकार सम्मेलन-2020 में जारी किए गए हैं। देवेश कपूर के मुताबिक बंगाली और पंजाबी भाषी भारतीय-अमेरिकी नागरिकों की स्थिति ज्यादा खराब है। इनमें से एक तिहाई श्रम बल का हिस्सा नहीं हैं। जबकि करीब 20 प्रतिशत नागरिकों के पास अमेरिकी नागरिकता तक नहीं हैं। इंडियास्पोरा के संस्थापक एमआर रंगास्वामी ने कहा कि कोविड-19 का स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। इसके मद्देनजर यह उचित समय है कि भारतीय समुदाय में गरीबी के प्रति जागरूकता पैदा की जाए और इस मुद्दे को उठाया जाए। शोध से भारतीय-अमेरिकी नागरिकों में गरीबी की विस्तृत स्थिति का पता चला है। हालांकि श्वेत, अश्वेत और हिस्पैनिक अमेरिकी नागरिकों के मुकाबले भारतीय अमेरिकियों के गरीबी का सामना करने की संभावना कम है। यह रिपोर्ट ऐसे समय में सामने आई है, जब अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की सरगर्मी जोरों पर चल रही है। राष्ट्रपति चुनाव में भारतीय-अमेरिकी नागरिकों की अह्म भूमिका होती है। राष्ट्रपति पद के दोनों उम्मीदवार इन मतदाताओं को रिझाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहे हैं।