नीतीश कुमार पर चुप्पी, लेकिन किसानों के बड़े सवालों पर कुर्बानी देने को तैयार हैं सुधाकर सिंह

बिहार में जीएम सरसों के बीज के खिलाफ करेंगे प्रदर्शन

संतोष कुमार सिंह
नयी दिल्ली। बिहार के पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह गुरुवार को नई दिल्ली स्थित प्रेस क्लब में राष्ट्रीय मीडिया के पत्रकारों से मुखातिब हुए। उम्मीद ये की जा रही है कि राष्ट्रीय स्तर पर प्रेस वार्ता कर सुधाकर सिंह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ हमलावर होेंगे और किसानों की बेहतरी के सवाल उठा रहे पूर्व कृषि मंत्री को जिस तरह से इस्तीफा मांगा उस बाबत मीडिया के समक्ष अपनी बातें साझा करेंगे।
लेकिन उम्मीद के विपरित मीडिया के कयासों को झुठलाते हुए युवा विधायक सुधाकर सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ कोई बयानबाजी नहीं की और न ही अपने इस्तीफे को लेकर नाराजगी जाहिर की। इसके विपरित उन्होंने किसानों से जुड़े उन सवालों को उठाना जरूरी समझा जो हमारे खेती किसानी को प्रभावित करती है और कृषि जगत से जुड़े बड़े सवाल हैं और इसकी जवाबदेही केंद्र सरकार पर ज्यादा है। जाहिर है सुधाकर केंद्र की नीतियों को लेकर सवाल खड़ा कर रहे थे।

अपने प्रेस वार्ता में सुधाकर सिंह ने कृषि जगत के व्यापक परिदृश्य पर बात किया और कहा कि मुझे यह कहते हुए आश्चर्य हो रहा है कि आज जब हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई में आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, तो ठीक उसी समय हम महात्मा गांधी के उस मूल भावना की अवहेलना कर रहे हैं जिसके आधार पर आज़ादी की लड़ाई लड़ी गई थी। महात्मा गांधी ने आजादी की लड़ाई की बुनियाद हमारे बिहार के चंपारण के नील सत्याग्रह से रखी थी जहां उन्होंने सबसे पिछड़े पायदान पर खड़े किसानों का साथ दिया था। जबकि आज हमारी सरकार आजादी की 75 वीं सालगिरह पर जी एम फसलों को प्रोत्साहित करने वाली मोनसेंटो और बायर जैसी विदेशी संस्थाओं के साथ खड़ी नजर आ रही है। उन्होंने कहा कि वे सिर्फ जन प्रतिनिधि होने के नाते ही नहीं, बल्कि एक आम नागरिक के हैसियत से भी इस अनुचित निर्णय के खिलाफ आवाज उठा रहा हूं। भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय के अधीन जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेजल कमिटी ने जीएम सरसों की डीएमएच 11 किस्म की बीज की उत्पादन की अनुमति पर्यावरण एवं स्वास्थ्य पर होने वाले प्रभावों की जांच किए बिना दी है।

जीईएसी के द्वारा बगैर जांच के जीएम सरसों की अनुमति देना एक अप्रत्याशित कदम है और जी एम फसलों को भारतीय बाजार में उतारने जाने के पूर्व स्थापित नियमावली और प्रक्रिया के विपरीत है। चूंकि यह सीधे तौर पर भारत की खाद्य व्यवस्था से सम्बन्धित और देश के करोड़ों किसानों को प्रभावित करने वाला मामला है इसलिए इस विषय पर सरकार के द्वारा कृषि समूह, विधायिका, संसदीय समिति, एवं सामाजिक संगठनों के साथ विस्तृत विमर्श किये जाने की आवश्यकता है ।

बिहार में मधु के उत्पादन पर भी होगा असर
पूर्व कृषि मंत्री ने यह भी कहा कि सरसों भारत की एक प्रमुख नगदी फसल है और हमारा मानना है कि जी एम सरसों का असर पर्यावरण, आर्थिक व्यवस्था, और सामाजिक स्वास्थ्य पर पड़ेगा । साथ ही इससे मधुमक्खी की कई प्रकार की प्रजातियों को भी प्रभावित होने की आशंका है जो फल और सब्जियों के पैदावार के लिए अति आवश्यक है। इसका बिहार में हो रहे व्यापक मधु के उत्पादन पर भी असर पड़ने की आशंका है।

देश के छोटे और मझोले किसानों पर होगा असर
जी एम सरसों के बीज उत्पादन की प्रक्रिया से देश के छोटे और मझौले किसान बुरी तरह प्रभावित होंगे और इसका कुप्रभाव कृषि, पर्यावरण और स्वास्थ्य आने वाले कई दशकों तक पड़ेगा। इन्हीं आशंकाओं और वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर रूस सहित यूरोपीय यूनियन ने अपने सभी देशों में जी एम सरसों को प्रतिबंधित किया है।

सरसों के हाइब्रिड नसल और श्री विधि के खेती को करें प्रोत्साहित
जी एम फसल के बदले अगर भारत के किसानों को सरसों के फसल के लिए भी न्यूनतम लागत मूल्य दिया जाए, मंडी व्यवस्था के अंतर्गत सरसों एवं अन्य खाद्यान्न का अधिग्रहण किया जाए, और सरसों के हाइब्रिड नसल और श्री विधि के खेती को प्रोत्साहित किया जाए तो जी एम की तुलना ज्यादा बेहतर परिणाम मिल सकता है।

बिहार में जीएम सरसों के बीज के खिलाफ करेंगे प्रदर्शन
एक कृषि प्रधान राज्य के पूर्व कृषि मंत्री एवं वर्तमान विधायक होने के नाते भी मैं यह बताना चाहूंगा कि साल 2016- 2017 में जब बिहार में राज्य सरकार के अनुमति के बिना जी एम सरसों के बीज का परीक्षण किया गया तो राज्य सरकार ने न सिर्फ राज्य भर में इस पर प्रतिबंध लगवाया बल्कि जी एम सरसों की अनुमति के विरोध में केंद्र सरकार को कई पत्र भी भेजे।

जीएम सरसों के बीज के खिलाफ बिहार में करेंगे प्रर्दशन
हम पूरे बिहार के सभी कृषि अनुसंधान केंद्र पर जी एम सरसों के बीज के खिलाफ प्रदर्शन करेंगे। उन्होंने मांग किया कि जी एम फसल के बदले अगर भारत के किसानों को सरसों के फसल के लिए भी न्यूनतम लागत मूल्य दिया जाए, मंडी व्यवस्था के अंतर्गत सरसों एवं अन्य खाद्यान्न का अधिग्रहण किया जाए, और सरसों के हाइब्रिड नसल और श्री विधि के खेती को प्रोत्साहित किया जाए तो जी एम की तुलना ज्यादा बेहतर परिणाम मिल सकता है।
हालांकि पूर्व कृषि मंत्री ने यह भी कहा कि वे पहले भी किसानों के सवाल पर कुर्बानी दे चुके हैं, कृषि मंत्री का पद छोड़ चुके हैं। जरूरत पड़ी तो वे और भी बड़ी कुर्बानी देंगे और किसान संगठनों को साथ लेकर किसानों से जुड़े मुद्दे पर आंदोलन करेंगे।