West Bengal – हिंसा का हिसाब, बढ़ेगी ममता दीदी की टेंशन

West Bengal में विधान सभा चुनाव के बाद फैली हिंसा का मंजर याद कर प्रभावित नागरिक आज भी सिहर उठते हैं। कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़ाकर अराजक तत्वों ने खूब तांडव मचाया था। हथियारबंद उग्र भीड़ ने जगह-जगह मारपीट, तोड़-फोड़, आगजनी, बलात्कार और हत्या की सिलसिलेवार घटनाओं को अंजाम देकर मानवता को शर्मसार कर दिया था। उपद्रवियों को रोकने की बजाए पुलिस तंत्र खुद तमाशबीन बना रहा था। इसके बावजूद सत्ताधारी नेता चुनावी जीत के जश्न में मशगूल रहे थे।

हिंसा प्रभावित परिवारों के जख्म अभी भरे नहीं हैं। असुरक्षा की भावना उन्हें दिन-रात बेचैन किए रहती है। वैसे पुरानी कहावत है कि भगवान के घर देर है, मगर अंधेर नहीं। इसी प्रकार पीड़ित परिवारों को देर से भले ही, मगर न्याय मिलने की पूरी उम्मीद है। कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा हिंसा की सीबीआई जांच का आदेश दिए जाने से हिंसा प्रभावित पक्ष को थोड़ा सुकून जरूर मिलेगा। हाईकोर्ट के आदेश से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मुश्किलें बढ़ना तय हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के प्रयासों की भी सराहना करनी चाहिए, जिसके कारण हिंसा की सीबीआई जांच का रास्ता साफ हो सका है।

West Bengal में 2 मई को विधान सभा चुनाव के नतीजे घोषित किए गए थे। चुनावी नतीजे तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के पक्ष में आए थे। टीएमसी की मुखिया ममता बनर्जी हैं। विस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को करारी शिकस्त देकर टीएमसी ने तीसरी बार सत्ता में वापसी की थी। चुनाव परिणाम के बाद West Bengal के विभिन्न हिस्सों में अराजकता फैल गई थी। राजनीति से प्रेरित हिंसा का दौर कई दिनों तक चला था। उपद्रवियों ने जगह-जगह मारपीट, तोड़-फोड़, आगजनी, बलात्कार और हत्या की घटनाओं को अंजाम देकर कानून व्यवस्था को आईना दिखा दिया था। ऐसा प्रतीत पड़ता था कि अराजक तत्व पहले से योजना बनाकर बैठे थे। मौका मिलने पर इन तत्वों ने मनमानी करनी शुरू कर दी थी।

हिंसा के खिलाफ भाजपा ने जोरदार तरीके से आवाज उठाकर सत्ताधारी टीएमसी को कटघरे में खड़ा किया था। माहौल शांत होने पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की टीम ने हिंसा प्रभावित कई क्षेत्रों का दौरा कर पीड़ितों से बातचीत की थी। कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर NHRC ने विशेष पैनल का गठन किया था। NHRC ने जुलाई में विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर हाईकोर्ट को सौंपी थी। इस रिपोर्ट पर संज्ञान लेकर अदालत ने महत्वपूर्ण आदेश दिया है। इसके तहत हत्या और दुष्कर्म के मामलों की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपा गया है। जबकि अन्य प्रकरण की विवेचना एसआईटी से कराई जाएगी।

काबिलेगौर तथ्य यह है कि NHRC की रिपोर्ट बताती है कि विधान सभा चुनाव के बाद हुई हिंसा में 12 बलात्कार, 29 हत्या और 940 आगजनी की घटनाएं हुई थीं। यानी अराजक तत्वों में किसी का कोई खौफ नहीं था। एनएचआरसी की रिपोर्ट में टीएमसी समर्थकों पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं। सीबीआई और एसआईटी को भविष्य में जांच रिपोर्ट कलकत्ता हाईकोर्ट को सौंपनी होगी। हिंसा के दौरान और बाद में भी पुलिस की घोर लापरवाही सामने आई है। हिंसा रोकने में विफल पुलिस तंत्र ने प्रभावित नागरिकों की एफआईआर तक दर्ज करने में काफी आना-कानी की थी। कई मामले जहां दर्ज नहीं किए गए, वहीं कई मामलों को हल्की धाराओं में पंजीकृत कर आरोपियों को लाभ पहुंचाने की भरसक कोशिश की गई। इससे साफ है कि सत्ता के दबाव में आकर पुलिस ने लापरवाही बरती थी।

पुलिस को जनता का रक्षक माना जाता है। यदि समाज को सुरक्षा देने में पुलिस अपनी जिम्मेदारी को उचित ढंग से नहीं निभाती है तो पीड़ितों को न्याय कहां से मिल पाएगा ? फिलहाल हाईकोर्ट के सख्त रूख से मुख्यमंत्री ममता बनर्जी टेंशन में जरूर आ गई होंगी। West Bengal में शांति एवं कानून व्यवस्था हमेशा बड़ा मुद्दा रहा है। लूट, हत्या, डकैती, बलात्कार और रंगदारी के लिए धमकी जैसे मामले आए दिन सामने आते रहते हैं। इस राज्य में लंबे समय से टीएमसी सत्ता को संभाल रही है। टीएमसी के कई नेता खुद गंभीर मामलों में फंसे हुए हैं।

किसी समय वामपंथी दलों के गढ़ को ध्वस्त कर टीएमसी ने करिश्माई तरीके से West Bengal की सत्ता पर कब्जा किया था। उस समय नागरिकों ने सुकून की सांस ली थी। चूंकि ममता बनर्जी को बेहद कड़क एवं ईमानदार लीडर के तौर पर जाना जाता था, मगर वह इस राज्य की स्थिति में कोई बड़ा परिवर्तन करने में कामयाब नहीं हो पाई हैं। उनके कई फैसले अक्सर पक्षपातपूर्ण रहे हैं। अपने तीखे और अमर्यादित बयानों की वजह से भी उन्हें कई बार आलोचना का शिकार होना पड़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और आरएसएस को लेकर वह आमतौर पर इस तरह का भाषा का इस्तेमाल करती रही हैं, जो उनके कद के हिसाब से उचित नहीं है। जिस अह्म ओहदे पर वह विराजमान हैं, उसका ख्याल कम कम से उन्हें रखना चाहिए।

मुख्यमंत्री होने के नाते उन्हें सबके विकास और सुरक्षा के लिए सोच-विचार कर काम करना चाहिए। जनता का विश्वास भी उन्होंने जीतना होगा। कहा जाता है कि समय बलवान होता है। वक्त बदलते देर नहीं लगती। West Bengal की सत्ता पर हमेशा-हमेशा के लिए ममता बनर्जी का विराजमान रहना संभव नहीं है। उन्हें टीएमसी के बेलगाम कार्यकर्ताओं पर नकेल कसनी चाहिए। ऐसा न कर वह अपने खिलाफ जनाक्रोश को पैदा करती रहेंगी। कुछ साल बाद इसके गंभीर परिणाम उन्हें भुगतने पड़ सकते हैं। West Bengal को विकास और खुशहाली के रास्ते पर ले जाने की दिशा में भगीरथ पहल की जरूरत है। मुख्यमंत्री होने के नाते ममता बनर्जी यह काम बखूबी कर सकती हैं। कानून व्यवस्था को सुधारने के लिए उन्हें ठोस पहल करनी चाहिए। यह समय की सबसे बड़ी जरूरतों में से एक है।