मंथन : भाजपा के खिलाफ विपक्ष की कसरत

केंद्र सरकार के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम बरकरार है। राहुल गांधी के बाद अब सोनिया गांधी ने सक्रियता दिखाई है। कमजोर और बिखरी कांग्रेस को मजबूत करने में नाकाम सोनिया-राहुल आखिर विपक्ष को कैसे साध पाएंगे, यह सवाल अपने आप में महत्वपूर्ण है। 2024 के आम चुनाव से पहले भाजपा के खिलाफ विपक्ष को संगठित और ताकतवर बनाना इतना आसान काम नहीं है। विपक्ष के नेतृत्वकर्ता पर कोई एक राय अब तक सामने नहीं आ सकी है।

कुछ नेताओं की महत्वाकांक्षा बेशक जोर मार रही है, मगर वह खुलकर अपने मन की बात नहीं कर पा रहे हैं। विपक्ष का चेहरा बनने का मतलब है, प्रधानमंत्री पद का भावी उम्मीदवार होना। इस पद के लिए कई नेता लाइन में हैं। सोनिया गांधी ने 19 विपक्षी दलों के नेताओं के साथ वर्चुअल बैठक कर जरूरी बिंदुओं पर विचार-विमर्श किया है। इस बैठक में समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और आम आदमी पार्टी (आप) के नेताओं ने शिरकत नहीं की। सपा-बसपा और आप द्वारा बैठक से दूरी बनाए रखने के पीछे कोई न कोई अह्म वजह जरूर रही होगी।

दरअसल उत्तर प्रदेश में अगले साल विधान सभा चुनाव होने हैं। यह तीनों दल यूपी विधान सभा चुनाव की तैयारियों में जुटे हैं। भविष्य में सपा-बसपा के बीच गठजोड़ की कोई संभावना नहीं है। जबकि सपा और आप में तालमेल बढ़ रहा है। यह दोनों दल यूपी विधान सभा चुनाव में गठबंधन की तैयारी में हैं। माना जाता है कि इलेक्शन को ध्यान में रखकर सपा-बसपा और आप फिलहाल राष्ट्रीय राजनीति से दूरी बनाए रखना चाहते हैं। संसद के मानसून सत्र के दौरान कांग्रेस नेता एवं सांसद राहुल गांधी ने अपने आवास पर विपक्षी दलों की बैठक बुलाई थी।

केंद्र सरकार को संसद के दोनों सदनों में घेरने की मंशा से बुलाई गई बैठक में तब बसपा और आम आदमी पार्टी ने हिस्सा नहीं लिया था। हालाकि राहुल के बुलावे पर सपा नेता जरूर पहुंचे थे। पहले राहुल गांधी और अब सोनिया गांधी द्वारा विपक्ष को एक मंच पर लाने की कोशिश यह बताती है कि कांग्रेस को 2024 की चिंता अभी से सता रही है। वह किसी भी कीमत पर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को टक्कर देने के लिए ठोस अलायंस पर ध्यान दे रही है। वर्चुअल बैठक में भी सोनिया गांधी ने अपने लक्ष्य का खुलासा किया। विपक्षी नेताओं से उन्होंने कहा कि हमारा लक्ष्य देश को एक ऐसी सरकार देने का है, जो फ्रीडम मूवमेंट और संविधान के सिद्धांतों में विश्वास रखती हो। इस बैठक में एक राय यह बनी कि केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ देशभर में 20 से 30 सितम्बर तक संयुक्त रूप से आंदोलन किया जाएगा। कांग्रेस का इरादा है कि विपक्ष को साथ लेकर देशभर में भाजपा सरकार के विरोध में माहौल तैयार किया जाए ताकि जनता को लुभाया जा सके।

पेगासस जासूसी प्रकरण और कृषि कानूनों को लेकर विपक्ष काफी समय से सरकार को घेरने का हरसंभव प्रयास कर रहा है। इन मुद्दों पर संसद में भी खासा बवाल मचाया गया था। इसके चलते संसद के दोनों सत्र में बेहद कम चर्चा हो पाई थी। सत्ता पक्ष और विपक्ष एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते रहे। कांग्रेस की हालत अच्छी नहीं है। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और जम्मू-कश्मीर में अगले साल चुनाव कराए जाने हैं। इसके बावजूद कांग्रेस में चुनावी तैयारियां देखने को नहीं मिल रही हैं। उलटा कांग्रेस को दिल्ली की गद्दी में ज्यादा दिलचस्पी है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी मिलकर भी संगठन को दुरूस्त करते नजर आते हैं। गांधी परिवार के खिलाफ पार्टी में जब-तब आवाज उठने का सिलसिला जारी है।

कुछ कद्दावर नेता समय-समय पर तीखी बयानबाजी कर गांधी परिवार की मुश्किलें खड़ी कर देते हैं। सोनिया गांधी और राहुल गांधी से पहले शरद पंवार और ममता बनर्जी भी विपक्ष को लामबंद करने की रणनीति अपना चुकी हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कुछ समय पहले दिल्ली यात्रा की थी। दिल्ली यात्रा के समय उन्होंने विभिन्न विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात की थी। पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव में भाजपा को मात देने के बाद से ममता दीदी के हौसले बुलंद हैं। वह यह कहकर विपक्ष को लुभाने की कोशिश कर चुकी हैं कि जब पश्चिम बंगाल में भाजपा को पराजित किया जा सकता है तो दिल्ली में क्यों नहीं ? ममता बनर्जी से पहले एनसीपी प्रमुख शरद पंवार ने भी विपक्ष दलों के साथ मंत्रणा की थी।

सियासी गलियारों में विपक्षी एकता को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं हैं। एक पक्ष का मानना है कि भाजपा को रोकने के लिए कांग्रेस का मजबूत होना और कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष का एक बैनर तले आना जरूरी है। जबकि दूसरे पक्ष को लगता है कि कांग्रेस अपनी दुर्गति के लिए खुद जिम्मेदार है। इस पार्टी के साथ आने से अन्य दलों को भी नुकसान होगा। कांग्रेस के बगैर भाजपा के खिलाफ विपक्ष को संगठित होकर आगे बढ़ना चाहिए। हालाकि एक तथ्य यह भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद पूरे विपक्ष पर भारी पड़ते रहे हैं।

पीएम मोदी के प्रति आमजन की सोच में ज्यादा बदलाव नहीं आया है। बड़ी आबादी आज भी मानती है कि मोदी के नेतृत्व में देश सुरक्षित है। दूसरा तथ्य यह भी है कि विपक्ष के पास राष्ट्रीय स्तर के लोकप्रिय चेहरे का अभाव है। शरद पंवार, ममता बनर्जी, लालू प्रसाद यादव जैसे नेता अपने-अपने राज्य में भले ही लोकप्रिय हों, मगर राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें आसानी से स्वीकार नहीं किया जा सकता। 2024 के लोक सभा चुनाव से पहले विपक्ष को भाजपा के मुकाबले कोई बेहद मजबूत चेहरा ढूंढ कर आगे करना होगा। हालाकि इसकी संभावना कम है।