आपदा रहित जीवन के लिए सबका साथ और प्रयास जरूरी

लेखक- राकेश कुमार भट्ट

(लेखक सामाजिक विश्लेषक है। डेढ दशक से प्रकृति, पर्यावरण और मानव संसाधन प्रबंधन क्षेत्र से जुड़े हुए है और कई शोध पत्र तैयार किया है। इन विषयों पर अक्सर लिखते रहते है। यह लेख उदय भूमि के लिए लिखा है)

मानवता के अस्तित्व के बाद से दुनिया आपदाओं का सामना कर रही है। यह अब मानव जाति का अभिन्न अंग बन गया है। आपदाओं से निपटना अब कोई विकल्प नहीं है, बल्कि यह समय की आवश्यकता बन गई है। अकेले 2019 में दुनिया ने 396 आपदाओं का अनुभव किया। पिछले वर्षों के दौरान एशियाई उप-महाद्वीप में हर प्रकार की प्राकृतिक आपदाएं आती रही हैं। अनेक अध्ययनों, अनुसंधानों और आंकड़ों से पता चलता है कि पिछले 15 साल की अवधि में एशियाई देशों को अनेक आपदाओं का सामना करना पड़ा। लगातार आपदाओं के कारण कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने इसके प्रभावों को रोकने के लिए आपदा न्यूनीकरण को अपना केंद्रीय विषय माना है। भारत एक बहु आपदा प्रवण देश है।

जहां दुनिया के किसी भी देश के मुकाबले सबसे अधिक आपदाएं घटती है। जिन आपदाओं का व्यापक असर रहा, उनमें जल और मौसम से संबंधित, भौगोलिक एवं जैविक किस्म की विपत्तियां शामिल हैं। आपदाओं से सबसे ज्यादा प्रभावित गरीब परिवार होते हैं। भारत के गरीब नागरिक खाना-पीना, कपड़ा, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा जैसी बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित हैं। आपदाएं एक झटके में उनकी गाढ़ी कमाई बर्बाद कर देती हैं। इससे वे फिर से गरीबी के दुष्चक्र में फंस जाते हैं। इनमें कई भोजन, वस्त्र और मकान का भी मुश्किल से जुगाड़ कर पाते हैं। इन आपदाओं का बच्चों के जीवन पर प्रतिकूल असर होता है। अन्य प्रभावों के साथ प्राकृतिक आपदाओं के दौरान व उसके बाद सबसे अधिक उनका स्कूल प्रभावित होता है क्योंकि स्कूलों को आपदा के समय बतौर आश्रयस्थल इस्तेमाल किया जाता है।

इसके अलावा स्वास्थ्य सेवाओं के बाधित होने से टीकाकरण न होना, पोषण आहार, साफ पानी और स्वच्छता सुविधाओं की अनुपलब्धता के कारण कुपोषण और बीमारियां फैलती हैं। आपदाओं के दौरान हिंसा, शोषण, बाल विवाह, बाल-तस्करी और बाल-श्रम की घटनाओं में भी वृद्धि होती है। कई देशों में खतरों से प्रभावित होने की दुर्बलता को मापने की हालाकि तकनीकें और तरीके उपलब्ध हैं और वे उपाय भी मालूम हैं जिनके जरिए खतरा कम करने के कदम उठाए जा सकते हैं, मगर इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि समुदाय को इन खतरों की जानकारी दी जाए।

किसी भी समुदाय के लोग स्थानीय भूविज्ञान से परिचित रहते हैं और खतरे के संदर्भ को जानते हैं। अत: शुरू से ही आपदा प्रबंधन कार्यक्रम में स्थानीय समुदायों के लोगों को शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि यह आपदा प्रबंधन की क्षमता को विकसित करता है। इनमें से भारत, अफगानिस्तान, मालदीव, श्रीलंका आदि जैसे कई देशों ने आपदा प्रबंधन की रूपरेखा बनाई हुई है। लेकिन चुनौती यह है कि खतरे वाले क्षेत्र के नागरिकों को इन आपदाओं के प्रतिरोध में कैसे सक्षम बनाया जाए? इसलिए अनेक देशों ने इसके लिए निर्देश एवं नियंत्रण केंद्रों को शीर्षस्थ की जगह विकेंद्रीकृत और समुदाय-आधारित बनाने की पहल की है।

समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन, अब आपदा की संभावना वाले क्षेत्रों में लोकप्रिय हो गया है। वास्तव में इसके अंतर्गत आपदा प्रबंधन के स्थानीय उपायों में समुदाय को प्रमुख केंद्र बनाया जाता है। समुदाय के सदस्य किसी भी आपदा के प्रभाव को कम करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। किसी भी आपदा से प्राय: समुदाय के आम नागरिक ज्यादा प्रभावित होते हैं। समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन के जरिये नागरिकों को स्थानीय संसाधनों और बुनियादी सामाजिक सेवाओं का नियन्त्रण दिया जाता है, जिससे इन आपदाओं के समय उपयुक्त कदम उठाने की उनकी क्षमता बढ़ जाती है। आपदा प्रबंधन में समुदाय आधारित रवैया अपनाने के निश्चित रूप से अपने फायदे हैं।

स्थानीय नागरिकों को खतरों का शिकार बनने से बचाने और उनकी क्षमता बढ़ा कर उनमें सुरक्षा की भावना के संचार के उद्देश्य से समुदाय आधारित दूष्टिकोण के महत्व को मान्यता काफी पहले मिल चुकी है। अनेक सामुदायिक समूह इन दृष्टिकोणों के अनुरूप काम करते रहे हैं। इनमें राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय संगठन और सरकारी विभाग शामिल हैं। समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन दृष्टिकोण से स्थानीय समुदाय को अपने पहले के अनुभवों के आधार पर अपनी स्थानीय स्थिति के मूल्यांकन के अवसर मिलते हैं। इसके तहत स्थानीय समुदाय योजनाएं बनाने और फैसले करने में न सिर्फ भागीदारी करते हैं बल्कि उन्हें लागू करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वर्तमान समय में गैर-सरकारी संगठन सरकार के साथ मिलकर आपदा न्यूनीकरण में महत्त्वपूर्व योगदान दे रहे हैं। जहां जनसमुदाय द्वारा इनकी स्वीकार्यता बढ़ी है, वहीं सरकार द्वारा इन्हें अधिक से अधिक भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। गैर-सरकारी संगठन की भूमिका निश्चय ही भारत में आपदा न्यूनीकरण में अपनी भूमिका को और सार्थक बनाएगा। प्राकृतिक आपदाओं को रोकना कठिन है, पर आपदा प्रबंधन के विभिन्न उपाय कर इनसे होने वाले नुकसानों को कम जरूर किया जा सकता है।

आपदा प्रबंधन गतिविधियों को विकास योजनाओं की गतिविधियों से जोड़कर आपदाओं के प्रभाव को पूरी तरह तो नहीं लेकिन काफी हद तक कम किया जा सकता है। आपदा को कम करने में समुदाय की विशेष भूमिका होती है। हम सब समुदाय के अंग हैं। अत: आपदारहित जीवन जीने के लिए हम सबको मिलकर, जागरूक रहकर आपदा प्रबंधन की गतिविधियों में जोर-शोर से भाग लेकर अपना महत्वपूर्ण योगदान देना चाहिए। सरकारी नीतियों और संगठनात्मक प्रयासों को राहत और प्रतिक्रिया से आपदा जोखिम में कमी की ओर तेजी से बढ़ना चाहिए।