कुलभूषण जाधव पर मुंह की खाता पाकिस्तान

पाकिस्तान की जेल में बंद भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव केस में अंतरराष्ट्रीय दबाव रंग ला रहा है। अंतरराष्ट्रीय अदालत ने 2 साल पहले महत्वपूर्ण फैसला दिया था। अदालत ने सजा के खिलाफ अपील करने के लिए जाधव को उचित मंच उपलब्ध कराने पर जोर दिया था। पाकिस्तान में अब इसकी संभावना नजर आ रही है। कुलभूषण जाधव जल्द मौत के फैसले के खिलाफ अपील कर सकेंगे। पाकिस्तान में सैन्य कोर्ट ने 4 साल पहले जाधव के खिलाफ सजा-ए-मौत का फैसला सुनाया था। जासूसी के आरोप में उन्हें यह सजा सुनाई गई थी। इस मसले पर भारत और पाकिस्तान के मध्य गहरे मतभेद हैं। पाकिस्तान के आरोपों को भारत सिरे से खारिज करता रहा है।

ताजा घटनाक्रम के अनुसार पाकिस्तान के उच्च सदन ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (रिव्यू एंड री-कंसीडरेशन) ऑर्डिनेंस-2020 को अनुमति प्रदान कर दी है। यह बिल करीब पांच माह पहले पाकिस्तान के निचले सदन (नेशनल असेंबली) से पारित कर दियसा गया था। बिल में प्रावधान है कि पाकिस्तान की जेलों में सजायाफ्ता विदेशी कैदी (जिन्हें मिलिट्री कोर्ट्स ने सजा सुनाई है) ऊपरी अदालतों में अपील कर सकते हैं। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह कानून बन जाएगा। भारत शुरूआत से कहता रहा है कि कुलभूषण जाधव पूर्व नौसेना अधिकारी हैं। जिन्हें ईरान से अगवा कर लिया गया था। वह कारोबार के सिलसिले में ईरान गए थे।

अपहरण के बाद उन्हें पाकिस्तान की सेना के हवाले कर दिया गया था। जबकि इस्लामाबाद का रहा है कि जाधव एक भारतीय जासूस हैं, जो पाकिस्तान के भीतर आतंकी हमले कराने के लिए कसूरवार हैं। आईसीजे ने जुलाई 2019 में फैसला दिया था कि पाकिस्तान को जाधव को दोषी ठहराने और सजा सुनाने संबंधी फैसले की समीक्षा करनी चाहिए। आईसीजे ने यह भी कहा था कि बिना किसी देरी के भारत को जाधव के लिए राजनयिक पहुंच उपलब्ध कराने देने का भी मौका देना चाहिए। भारतीय नौसेना के सेवानिवृत्त अधिकारी कुलभूषण जाधव का जन्म 1970 में महाराष्ट्र के सांगली में हुआ था। जाधव को मार्च 2016 को पाकिस्तानी सेना ने पाक के बलूचिस्तान प्रांत से गिरफ्तार किया था।

पाक का दावा है कि कुलभूषण भारतीय खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के कर्मचारी हैं। उन्हें जासूसी करते पकड़ा गया है। हालांकि भारत सरकार का कहना है, इन्हें बलूचिस्तान से नहीं ईरान से गिरफ्तार किया गया। गिरफ्तारी के बाद भारत ने कुलभूषण जाधव को भारतीय नागरिक माना, मगर उनके जासूसी करने के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। कुलभूषण का ईरान में कारोबार था। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा था कि कुलभूषण ईरान में कानूनी तरीके से अपना कारोबार कर रहे थे। कुलभूषण जाधव केस में दो साल पहले अंतरराष्ट्रीय अदालत में भी पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी थी। आईसीजे में इस केस की सुनवाई के दौरान भारत के मशहूर अधिवक्ता हरीश साल्वे ने पाकिस्तान के बेबुनियादी दावों की धज्जियां उड़ाकर रख दी थीं।

अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कुलभूषण जाधव का केस अंतरराष्ट्रीय अदालत में लड़ने के लिए फीस के तौर पर महज एक रुपया लिया था। जबकि साल्वे की गिनती काफी महंगे वकीलों में होती है। उधर, पाकिस्तान ने जाधव को जासूस साबित करने के लिए अपने वकील पर बीस करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च कर दिए थे। इसके बावजूद फैसला भारत के पक्ष में आया था। पाकिस्तान ने आईसीजे में जहां दो वकील बदले थे, वहीं हरीश साल्वे अकेले दोनों वकीलों पर भारी पड़ गए थे। वह जाधव की फांसी को रूकवाने में कामयाब रहे थे। दरअसल हरीश साल्वे ने जहां जाधव केस को देश की प्रतिष्ठा और मान समझकर लड़ा, वहीं पाकिस्तान के वकील खावर कुरैशी ने सिर्फ इसे एक केस के रूप में लड़ा।

नतीजन कुरैशी को प्रत्येक मोर्चे पर साल्वे ने पस्त कर दिया था। उस समय आईसीजे ने 15-1 से भारत के पक्ष में फैसला सुनाया है। जाधव की फांसी पर भी रोक लगा दी गई थी। हरीश साल्वे की गिनती देश के नामचीन वकीलों में होती है। पाकिस्तान सरकार ने देश की संसद में बजट दस्तावेज पेश करते समय बताया था कि द हेग में अंतरराष्ट्रीय अदालत में जाधव का केस लड़ने वाले वकील खावर कुरैशी को 20 करोड़ रुपए दिए गए थे। कुलभूषण जाधव के बहाने पाकिस्तान का इरादा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर न सिर्फ भारत को बल्कि रॉ को भी बदनाम करने का रहा है। हालांकि कई ऐसे महत्वपूर्ण तथ्य हैं, जो बताते हैं कि कुलभूषण रॉ एजेंट नहीं थे। वह सिर्फ कारोबार के चक्कर में ईरान गए थे।

पाकिस्तान ने सुनियोजित साजिश के तहत उन्हें अगवा कर जासूस साबित करने की कोशिश की है। दरअसल रॉ आम तौर पर बाहरी व्यक्ति को पाकिस्तान के किसी भी मिशन पर नहीं भेजती है। पाकिस्तान उन्हीं व्यक्तियों को भेजा जाता है जो आस-पास के होते हैं और जिन्हें वहां की भाषा समझ आती है, ताकि वह आसानी से वहां के नागरिकों से बात कर सकें। कुलभूषण जाधव पाकिस्तान के मिशन के लिए क्वालिफाइड नहीं थे। यदि रॉ किसी बाहरी व्यक्ति को पाकिस्तान भेजने का निर्णय लेती है तो उसके पास कोई बेहतर काबिलियत होनी चाहिए जैसे कि वह जल्दी सब-कुछ सीख ले और काम में सबसे बेस्ट हो ताकि वह छोटे-छोटे ऑपरेशन के लिए इस्तेमाल किया जा सके।

कुलभूषण जाधव का मिशन इतना लंबा नहीं हो सकता था। रॉ का कोई भी एसेट (एजेंट) भारतीय पासपोर्ट का इस्तेमाल कर किसी तीसरे देश से पाकिस्तान में नहीं घुस सकता। रॉ तभी किसी एसेट को किसी दूसरे देश में भेजती है जब उसका कोई सोर्स वहां मौजूद हो। इसके अलावा रॉ के आॅपरेशन फूलप्रूफ होते हैं। पाकिस्तान जिस वीडियो को सबूत बताकर पेश कर रहा है उसके फैक्ट्स असलियत से मेल नहीं खाते हैं। पाकिस्तान की असलियत किसी से छुपी नहीं है। पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान हमेशा आतंकवादियों की पनाहगाह रहा है। अफगानिस्तान को अस्थिर करने में भी पाकिस्तान का बड़ा हाथ था। अब तालिबान के साथ मिलकर वह अपने खतरनाक मंसूबों को अंजाम देने की कोशिशों में जुटा है।