आर्थिक संकट में श्रीलंका, मददगार बना भारत

श्रीलंका आजकल गंभीर आर्थिक संकट में फंसा है। अर्थव्यवस्था बैठने, महंगाई चरम पर पहुंचने और जरूरी वस्तुओं की जबरदस्त कमी ने जनता को बेहाल कर रखा है। भूखमरी की हालत पैदा होने पर देश में अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो गई। सत्ता के खिलाफ सड़क पर जनता का आक्रोश देखने को मिल रहा है। राजनेताओं के प्रति जनाक्रोश बढ़ रहा है। मुश्किल हालात से श्रीलंका को बाहर निकालने के लिए वहां की सरकार हरसंभव जतन कर रही है, मगर अभी स्थिति सामान्य होने में काफी समय लग सकता है।

संकट के दौर में श्रीलंका को एक बार फिर भारत की याद आई है। कभी चीन के साथ गलबहियां बढ़ाकर भारत को नजरअंदाज करने वाले श्रीलंका के राजनेताओं को अब अफसोस जरूर हो रहा होगा। चूंकि मौजूदा समय में चीन ने लंका से दूरी बना ली है। पुराने एवं ऐतिहासिक संबंधों को महत्व देकर भारत ने श्रीलंका की हरसंभव मदद करने को कदम आगे बढ़ाया है। भविष्य में नई दिल्ली का यह कदम बेहद कारगर साबित होने की उम्मीद जाहिर की जा रही है। चूंकि यदि आज श्रीलंका को संकट से उबारने के लिए भारत सहायता करता है तो निश्चित रूप से इससे चीन की रणनीति पर पानी फिरना तय है।

आने वाले समय में भारत और श्रीलंका एक बार फिर न सिर्फ नजदीक आएंगे बल्कि दोनों के रिश्तों में भी गर्माहट आ सकेगी। वैसे भारत ने हमेशा ऐसे देशों की खुलकर मदद की है, जिन्हें आपात समय में नई दिल्ली की जरूरत महसूस हुई है। चाहे नेपाल हो, अफगानिस्तान, श्रीलंका या बांग्लादेश। अपने इतिहास के सबसे खराब दौर से गुजर रहे श्रीलंका में पेट्रोल-डीजल तक का स्टॉक नहीं बचा है। विद्युत उत्पादन ना के बराबर रह गया है। आवश्यक वस्तुओं का आयात करने के लिए सरकार के पास पैसे नहीं बचे हैं। इससे लगभग सभी चीजों के दाम निरंतर बढ़ रहे हैं। महंगाई की मार से आमजन त्राहिमाम-त्राहिमाम है।

श्रीलंका मे विदेशी मुद्रा भंडार लगभग खत्म हो चुका है। भारी कर्ज के बोझ से दबा यह देश दिवालिया घोषित होने की कगार पर नजर आ रहा है। मौजूदा आर्थिक संकट में राष्ट्रपति शासन प्रणाली की बेहद अह्म भूमिका मानी जा रही है। श्रीलंका ने 1978 में राष्ट्रपति शासन प्रणाली अपनाई। तभी से यह विवादों में है। जानकारों का मानना है कि जब तक सरकार आर्थिक नीतियों और तंत्र को दुरूस्त नहीं करेगी, इस पर संशय बना रहेगा कि श्रीलंका आर्थिक संकट से बाहर आ पाएगा अथवा नहीं। देश में 74 साल के बाद सबसे बुरे हालात हैं। श्रीलंका को अगले कुछ माह में घरेलू और विदेशी कर्ज चुकाने के लिए लगभग साढ़े सात अरब डॉलर की आवश्यकता है।

कोरोना महामारी, ईंधन की कमी और आसमान छूती महंगाई का फिलहाल कोई तोड़ नहीं निकल पाया है। संकट की घड़ी में श्रीलंका ने वैश्विक वित्तीय संस्थानों की बजाय अपने पड़ोसियों से सहायता जुटाना बेहतर माना है। श्रीलंका की सरकार पिछले कुछ समय में महंगाई को रोकने में नाकाम रही है। बढ़ते बजट घाटे के बीच श्रीलंका ने कम ब्याज दर बनाए रखने की कोशिश में काफी मुद्रा छाप डाली है। श्रीलंका का वर्तमान संकट नेताओं के करप्शन, आर्थिक कुप्रबंधन, चीन की कुटिल चाल और अलोकतांत्रिक सरकार का परिणाम है। श्रीलंका के लिए कोरोना काल बेहद बुरा साबित रहा। श्रीलंका को बड़ी मदद पर्यटन के जरिए मिलती थी, जो कोरोना के आने के बाद से ठप हो गया।

इसके बाद रूस और यूक्रेन जंग ने भी श्रीलंका की अर्थव्यवस्था को चौपट करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। इसके चलते श्रीलंका का पर्यटन भी प्रभावित है। यूक्रेन और रूस से इस देश में बड़ी संख्या में पर्यटक आते थे। काफी समय तक गृहयुद्ध की गिरफ्त में रहने के बावजूद इस देश ने कई देशों के मुकाबले अधिक तेजी से तरक्की की है। संयुक्त राष्ट्र मानव विकास सूचकांक में भी श्रीलंका का प्रदर्शन अच्छा रहा है। इसके अलावा इस देश का जरूरत से ज्यादा चीन पर निर्भर होना भी आत्मघाती साबित हुआ है। पहले से कर्ज के बोझ में दबा ये देश और ज्यादा कर्जदार हो गया। श्रीलंंका की बदहाली का एक कारण राजपक्षे परिवार की चीन से निकटता भी रही है।

श्रीलंका ने चीन को महत्व देकर भारत जैसे पुराने मित्र को खुद से दूर करने का काम किया। अब चीन ने श्रीलंका से दूरी बना ली है। वह सिर्फ चीन की खराब स्थिति पर अफसोस जाहिर कर रहा है। चीन ने श्रीलंका को दिए कर्ज पर कोई भी रियायत देने से साफ मना कर दिया है। ऐसे में श्रीलंका को पुन: भारत की याद आई है। भारत अपने पड़ोसी देश को खाने-पीने का भी सामान भेज रहा है। इसमें चावल के अलावा डीजल-पेट्रोल भी शामिल है।

श्रीलंका को भारत की तरफ से पिछले कुछ माह में साढ़े छह हजार करोड़ रुपये का कर्ज दिया गया है। भारत सरकार ने आगे भी हरसंभव सहायता का भरोसा दिलाया है। उम्मीद है कि भारत का यह पड़ोसी देश जल्द आर्थिक तंगी से बाहर निकल जाएगा, मगर वहां के हुक्मरानों को अपनी कमियों पर आत्ममंथन जरूर करना चाहिए ताकि फिर ऐसे हालात सामने आ सकें।