किसान आंदोलन की सार्थकता सवालों में

किसान आंदोलन की सार्थकता पर अब सवाल उठ रहे हैं। आंदोलन को जारी रखने अथवा समाप्त करने पर किसान संगठनों में एकाएक मतभेद आए हैं। संयुक्त किसान मोर्चा में सबकुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। कुछ नेताओं में आपसी तनातनी जगजाहिर हो चुकी है। किसान नेता चौ. राकेश टिकैत और दर्शन पाल सिंह के बयानों में भिन्नता के कारण आपसी मतभेद की खबरों को बढ़ावा मिला है। इस बीच पंजाब के कुछ किसान संगठनों ने घर वापसी शुरू कर दी है। इससे आंदोलन समाप्त होने की संभावना बढ़ गई है। संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर लंबे समय से किसान आंदोलन जारी है। इस आंदोलन ने सरकार को काफी परेशान किया है।

दबाव में आकर सरकार को अपने निर्णय को पलट कर पांव वापस खींचने पड़े हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों राष्ट्र के नाम संबोधन में तीनों कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान कर दिया था। पीएम मोदी ने देशवासियों से क्षमा भी मांगी थी। प्रधानमंत्री के इस कदम ने विपक्ष को जरूर बेदम कर दिया। विपक्ष के हाथ से महत्वपूर्ण मुद्दा फिसल चुका है। अगले विधान सभा चुनाव में किसान आंदोलन के बहाने विपक्ष अपनी नाव किनारे लगाने की तैयारी में था। कृषि कानून वापसी बिल को लोकसभा से भी मंजूरी मिल चुकी है। सरकार द्वारा कदम पीछे खींचने के बाद अब कुछ किसान संगठन भी आंदोलन को आगे चलाने के मूड में नहीं हैं, मगर राकेश टिकैत जैसे नेता कुछ और मांगों को उठाकर मामले को लंबा खींचना चाहते हैं।

किसान संगठनों में मतभेद की खबरों से सरकार को जरूर राहत महसूस हो रही है। जबकि कुछ किसान नेताओं और विपक्ष की बेचैनी बढ़ने लगी है। किसान आंदोलन समाप्त होने की खबरों पर भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता चौ. राकेश टिकैत आग बबूला हो जाते हैं। वह कहते हैं कि आंदोलन को कमजोर करने के लिए अफवाह फैलाई जा रही है। इसके पीछे भी उन्हें सत्ता पक्ष का हाथ नजर आता है। हालाकि टिकैत यह बात भूल रहे हैं कि किसानों के लिए कृषि कानूनों की वापसी होना ही सबसे बड़ी जीत है। कुछ और मांगों पर सरकार ने गौर कर पूरी करने का भरोसा दिलाया है। वयोवद्ध किसान नेता दर्शन पाल सिंह ने राकेश टिकैत को बयानबाजी को लेकर कड़ी नसीहत दे डाली है।

दरअसल टिकैत के बयानों से वह नाराज चल रहे हैं। दर्शन पाल ने यह तक कह दिया है कि टिकैत को जिम्मेदारी के साथ बयान देने की जरूरत है, ताकि आंदोलन में एकता बनी रहे। दर्शन पाल का कहना है कि हम केंद्र को कमेटी के लिए भेजे जाने वाले 5 नामों पर सहमति बना रहे हैं। संयुक्त किसान मोर्चा के लिए सबसे अहम मुद्दा आंदोलन खत्म होने से पहले किसानों पर दर्ज सभी केस वापस लिए जाने का है। उधर, जम्हूरी किसान सभा ने भी किसान आंदोलन को समाप्त करने की जरूरत बता दी है। इस संगठन के एक प्रतिनिधि ने यह बयान दिया है कि समय वापस जाने का है, क्योंकि किसानों की उचित मांगों को मान लिया गया है, मगर इसका यह मतलब नहीं कि आंदोलन समाप्त हो गया।

हम इसे राज्यों में जारी रखेंगे। संगठन ने माना है कि सौ प्रतिशत मांगे कभी नहीं मानी गई हैं, मगर किसानों की ज्यादातर शर्तों को सरकार द्वारा मान लिया गया है। जम्हूरी किसान सभा ने माना है कि पंजाब के ज्यादातर किसान संगठन घर जाना चाहते हैं। मोदी सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को जून 2020 में सबसे पहले अध्यादेश के तौर पर लागू किया था। इस अध्यादेश का पंजाब में तभी विरोध शुरू हो गया था। इसके बाद सितंबर के मॉनसून सत्र में इस पर बिल संसद के दोनों सदनों में पास कर दिया गया। किसानों का विरोध और तेज हो गया। हालांकि इसके बावजूद सरकार इसे राष्ट्रपति के पास ले गई और उनके हस्ताक्षर के साथ ही ये बिल कानून बन गए।

तभी से पंजाब-हरियाणा से शुरू हुआ किसान आंदोलन धीरे-धीरे दिल्ली की सीमा पर पहुंच गया और आज तक यहां कई स्थानों पर किसान मौजूद हैं। किसान आंदोलन को समर्थन करने वाली जाट बिरादरी की खाप पंचायतों में भी मतभेद देखने को मिल रहे हैं। चौबीस खाप और गठवाला खाप के नेताओं का कहना है कि अब इस आंदोलन को समाप्त कर किसानों को घर वापसी कर लेनी चाहिए। वहीं, कई खाप नेताओं ने आंदोलन को जारी रखने का समर्थन किया है। उनका कहना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर अभी संघर्ष चलते रहना चाहिए। पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाट बिरादरी की खाप पंचायतों ने किसान आंदोलन को खुला समर्थन दिया था, मगर प्रधानमंत्री मोदी के ऐलान के बाद अलग-अलग सुर देखने को मिल रहे हैं।

गठवाला और चौबीस खाप ने जहां आंदोलन खत्म करने की बात कही है तो कुछ और खाप पंचायतों ने संयुक्त किसान मोर्चा की रणनीति का समर्थन किया है। बहरहाल संयुक्त किसान मोर्चा इस समय आपसी कलह का शिकार दिखाई दे रहा है। इसका असर आंदोलन पर पड़ना तय है। सरकार फिलहाल खामोशी की मुद्रा में है। सिंघु और गाजीपुर बॉर्डर पर पहले की अपेक्षा किसानों की तादात में कमी आई है। उधर, गाजीपुर बॉर्डर पर रास्ता बाधित होने से आस-पास की कॉलोनियों में नागरिकों की परेशानी बढ़ी हुई है।

यह नागरिक निरंतर रास्ता खोलने की मांग कर रहे हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग-9 पर आवागमन बाधित रहने से इन लोगों की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं। किसान संगठनों के लिए आंदोलन को आगे ले जाना भी मुश्किल हो सकता है। यदि किसानों का समर्थन उन्हें नहीं मिलेगा तो वह ज्यादा समय तक दिल्ली की सीमाओं पर डटे रहने की स्थिति में नहीं होंगे।