गठबंधन की है लहर, यूपी में लोग चाहते है परिवर्तन

लेखक: इकबाल वाहिद
उद्यमी एवं समाजसेवी
(लेखक राजनैतिक एवं सामाजिक विषयों पर बेबाकी से अपनी राय रखतें हैं। सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों से जुड़े रहते हैं। यह लेख उदय भूमि में प्रकाशन के लिए लिखा है। यह लेखक के निजी विचार हैं।)

उत्तर प्रदेश में 2022 में बदलाव होना बेहद जरूरी है। यह सूबे और जनता के हित में है। पिछले पांच साल में हालात में सुधार होने की बजाए परिस्थितियां खराब हुई हैं। इसका खामियाजा सभी को भुगतना पड़ा है। केंद्र एवं उत्तर प्रदेश सरकार की आर्थिक एवं व्यापारिक नीतियां अच्छी नहीं रही हैं। केंद्र एवं राज्य सरकार की गलत नीतियों ने गरीब, मध्यम आय वर्ग और व्यापारियों को नुकसान पहुंचाया है। भाजपा सरकार में महंगाई बेतहाशा बढ़ी है। भ्रष्टाचार पर भी रोक नहीं लग पाई है। इसके अलावा सांप्रदायिक सदभाव खराब हुआ है। भाजपा सरकार की गलत नीतियों के कारण जनता में त्राहि-त्राहि मची है। बेरोजगारी को बढ़ावा मिला है। उद्योग-धंधे चौपट हो गए हैं। किसानों को उनकी मेहनत व फसल का वाजिब दाम नहीं मिल पाया है। किसान कंगाली की हालत में हैं। पांच साल में नफरत की राजनीति ने लोकतंत्र का अपहरण किए रखा। कोरोना संक्रमण काल में भाजपा सरकार पूर्णत: विफल रही। केंद्र एवं राज्य सरकार के पास सिवाय नफरती सियासत के कुछ भी नहीं है। जबकि कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए एकमात्र उपाय वैज्ञानिक दृष्टिकोण ही है। विधान सभा चुनाव में भाजपा का सूपड़ा साफ हो जाएगा। जीएसटी को जल्दबाजी में लागू किया गया। इसका खामियाजा आज भी कारोबारियों को भुगतना पड़ रहा है। इसने व्यवसाय को नुकसान पहुंचाया है। जटिल संरचना, अलग-अलग वस्तुओं पर कई दरें, पेचीदा फाइलिंग से नुकसान हुआ है। अपनी असफलता को स्वीकारने के मामले में भाजपा बेहद अक्खड़ है।

पेट्रोल और डीजल की ऊंची कीमतों को लेकर एक समय में भाजपा और समर्थकों ने इसके लिए कांग्रेस की भारी आलोचना की थी। आज वह सब पेट्रोल-डीजल की ऊंची कीमतों को न्याय संगत साबित करते हैं। भले ही कच्चे तेल की कीमत अब उस समय की कीमतों से कम हो। बुनियादी मुद्दों पर काम करने में भी केंद्र एवं राज्य सरकारें विफल रही हैं। शिक्षा और हेल्थकेयर में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को नहीं मिला है। शिक्षा पर कोई भी कार्य न किया जाना देश की सबसे बड़ी असफलता है। सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता दशकों से खराब होती आई है। यूपी में भी हेल्थकेयर पर कोई बड़ा काम नहीं किया गया। बीमा योजनाओं का एक भयानक ट्रैक रिकॉर्ड है और यह यूएस के नक्शे कदम पर जा रहा है, जो कि हेल्थकेयर के लिए एक भयानक गंतव्य है। भाजपा ने लोगों के दिमाग में भर दिया है कि हिंदू और हिंदुत्व खतरे में हैं और खुद को बचाने का एकमात्र विकल्प मोदी हैं। वास्तव में इस सरकार से बहुत पहले से हिंदू एक समान जिंदगी जीते रहे हैं और लोगों की मानसिकता को छोड़कर कुछ भी नहीं बदला है। यदि आप सरकार के खिलाफ बोलते हैं तो आप राष्ट्र विरोधी हैं और हाल ही की स्थितियों के हिसाब से हिंदू विरोधी हैं। इस लेबलिंग के साथ सरकार की न्याय संगत आलोचना बंद हो गई है। अपने राष्ट्रवाद को साबित कीजिए, हर जगह वंदेमातरम गाइए।

2014 के लोक सभा चुनाव से पहले चुनावी रैलियों में पीएम मोदी का एक भी भाषण ऐसा नहीं होता था, जो बिना कालेधन के जिक्र के संपन्न हो जाए, मगर आज हकीकत सबके सामने है। पीएम मोदी अपने भाषणों में कहा करते थे कि उनकी सरकार जब सत्ता में आएगी तो विदेशों में जमा भारतीय लोगों का कालाधन वो ले आएंगे और यह कालाधन इतना अधिक होगा कि सरकार हर व्यक्ति को 15-15 लाख रुपये देगी। मगर अब भी लोगों को इस बात का इंतजार है कि विदेशों से कालाधन कब आएगा और उससे अधिक तो लोगों को इस बात का इंतजार है कि उनके अकाउंट में 15 लाख रुपये कब आएंगे, जिसका वादा पीएम मोदी ने किया था। इस मामले पर मोदी सरकार की यह सबसे बड़ी नाकामी है कि अभी तक न सरकार को पता है कि विदेशों में कितना कालाधन जमा है और वे कब तक देश में आएंगे। प्रधानमंत्री ने नोट बंदी जैसा ऐतिहासिक फैसला तो लिया, मगर इस फैसले का परिणाम सिफर रहा। इस फैसले से न सिर्फ आम लोगों को परेशानी हुई, बल्कि कई जिंदगियां भी इस दौरान काल के गाल में समा गईं थीं।

पीएम मोदी ने कालेधन, भ्रष्टाचार पर चोट करने के उद्देश्य से नोट बंदी जैसा बड़ा फैसला लिया था, मगर न तो काला धन खत्म हुआ और न ही भ्रष्टाचार में कमी देखने को मिली। नोटबंदी की विफलता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि भारतीय रिजर्व बैंक भी कह चुका है कि मार्केट में मौजूद पुराने नोट करीब 99 फीसदी वापस आ गए तो अब इस स्थिति से देखा जाए तो बकौल मोदी सरकार मार्केट में फैले जाली नोटों का क्या हुआ और देश में छुपे कालेधन का क्या हुआ? क्या नोटबंदी से भ्रष्टाचार पर लगाम लगा, क्या इससे देश की अर्थव्यवस्था में कोई बदलाव आया?