यात्रा वृतांत : सभी व्यवधानों को दूर कर देता है बाबा का बुलावा

लेखक:गौरव पांडेय 
(लेखक हैं। सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों से जुड़े रहते हैं। यह लेख उदय भूमि में प्रकाशन के लिए लिखा है।)

कुछ दिनों पहले केदारनाथ में भारी वर्षा एवं बद्रीनाथ के रास्ते में लैंडस्लाइड होने की वजह से रास्ता बंद होने की खबरें सबने पढ़ी और सुनी। बहुत से श्रद्धालुओं को यात्रा से वापस लौटना पड़ा। ऐसे में वह बाबा के दर्शन नहीं कर सके। हमारा भी यात्रा का कार्यक्रम उसी अंतराल में था। हमने भी समाचार प्रतिकूल हालात को ध्यान में रखकर कार्यक्रम स्थगित कर दिया था। किंतु बाबा के आशीर्वाद से वर्षा भी रूक गई और जिस दिन हमें जाना था ठीक उसके एक दिन पहले दोपहर 2 बजे तक बद्रीनाथ जी के रास्ते भी साफ हो गए। हमने अपने कार्यक्रम को पुन: व्यवस्थित कर 22 अक्टूबर को गाजियाबाद से अपनी यात्रा प्रारंभ की और रात्रि में हरिद्वार, ऋषिकेश, देवप्रयाग होकर गुप्तकाशी पहुंचे। गुप्तकाशी में रात्रि विश्राम करने के पश्चात प्रात: हेलीकॉप्टर के माध्यम से बाबा केदारनाथ के दर्शन के लिए चल दिए। भारी वर्षा एवं रास्तों के बंद होने की सूचना के कारण ज्यादा भीड़ नहीं थी। अत: हम आसानी से हेलीकॉप्टर ले सके और मौसम भी खुला था। लिहाजा प्रात: में केदारनाथ मंदिर के प्रांगण में पहुंच कर बाबा केदारनाथ के दर्शन कर सके।

बाबा केदारनाथ के दर्शन के बाद हम बाबा भैरव नाथ के दर्शन करने निकले। जहां काफी हिमपात के कारण अत्याधिक ठंड थी। किंतु बाबा द्वारा प्रदत्त शक्ति की वजह से हम वहां रह पाए और सांध्यकालीन आरती का भरपूर आनंद भी लिया। अगले दिन सुबह बारिश की संभावना थी, इसलिए हम लोग सुबह-सवेरे हेलीकॉप्टर के जरिए वापस गुप्तकाशी आ गए और वहां से बद्रीनाथ यात्रा की शुरूआत हुई। कुछ दूर चलने के बाद हम काली मठ शक्तिपीठ पहुंचे। वहां मां दुर्गा की उपासना कर मंदिर प्रांगण में सविधि पूजन किया। कालीमठ में मां का आशीर्वाद लेने के बाद उखीमठ का रुख किया। उखीमठ राजस्थान है, जब केदारनाथ में बर्फबारी प्रारंभ हो जाती है और शीतकाल में भगवान को उखीमठ में ही लाया जाता है। जहां 6 माह तक उनकी पूजा-अर्चना होती है। उखीमठ में भी हमने विधिवत पूजा की और पंच केदारेश्वर के दर्शन किए। उषा (बाणासुर की बेटी) और अनिरुद्ध (भगवान कृष्ण के पौत्र) की शादी यहीं पर संपन्न की गयी थी। उषा के नाम से इस जगह का नाम उखीमठ पड़ा। उखीमठ में दक्षिण भारत के कर्नाटक के लिंगायत संतों रावल के प्रमुख गुरु का केंद्र (गद्दी) भी है। सर्दियों के दौरान भगवान केदारनाथ की उत्सव डोली को इस जगह के लिए केदारनाथ से लाया जाता है।

भगवान केदारनाथ की शीतकालीन पूजा और पूरे साल भगवान ओंकारेश्वर की पूजा यहीं की जाती है। उखीमठ से हम प्रस्थान कर बद्रीनाथ की ओर बढ़े। रात्रि में हम बद्रीनाथ पहुंचे। तदुपरांत हमने बाबा बद्रीनाथ के मंदिर की तरफ रूख किया। प्रात: सबसे पहले प्राकृतिक रूप से गंधक से बने तप्त कुंड जिसे गर्म पानी का स्रोत भी कहते हैं वहां पर स्नान किया। बाद में प्रात: 6:15 बजे भगवान बद्री विशाल के दर्शनों के लिए हम मंदिर में गए और भगवान का श्रृंगार और आरती देखी, जो अनुपम और अलौकिक था। ऐसा माना जाता है कि बद्रीनाथ से स्वर्ग का रास्ता प्रारंभ होता है। पुराणों के अनुसार बद्रीनाथ में 3 किलोमीटर के क्षेत्र में ब्रह्म कपाल जिसे ब्रह्मा जी का पांचवा सर माना गया है वह गिरा था और वहां पितृ तर्पण और पिंडदान के बाद पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है और यह सर्वश्रेष्ठ और उच्चतम पितृ तर्पण और पिंडदान होता है। बद्रीनाथ जी के दर्शन करने के बाद हम जोशीमठ होकर पोखरी से 15 किलोमीटर दूर स्थित कार्तिक स्वामी के दर्शन करने गए। इसमें 3 किलोमीटर की चढ़ाई है। यह बेहद उचित चोटी पर स्थित है।
वहां लगे शिलापट के अनुसार कार्तिक स्वामी, रुद्रप्रयाग जिले के पवित्र पर्यटक स्थलों में से एक है। रुद्रप्रयाग शहर से 38 किमी की दूरी पर स्थित इस जगह पर भगवान शिव के पुत्र भगवान कार्तिकेय को समर्पित एक मंदिर है।  समुद्र की सतह से 3048 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह स्थान शक्तिशाली हिमालय की श्रेणियों से घिरा है।

पुराण कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों से कहा कि वे पूरे ब्रह्माण्ड का चक्कर लगा कर आएं और घोषित किया कि जो भी पहले चक्कर लगा कर यहां आएगा वह माता-पिता की पूजा करने का प्रथम अवसर प्राप्त करेगा। भगवान श्री गणेश, जो कि शिव जी के दूसरे पुत्र थे, ने अपने माता-पिता के चक्कर लगाकर (श्री गणेश के लिए उनके माता-पिता ही ब्रह्माण्ड थे) यह प्रतियोगिता जीत ली, जिससे कार्तिकेय क्रोधित हो गए।  तब उन्होंने अपने शरीर की हड्डियां अपने पिता को और मांस अपनी माता को दे दिया। ये हड्डियां अभी भी मंदिर में मौजूद हैं। रुद्रप्रयाग पोखरी मार्ग पर स्थित इस मंदिर तक कनक चौरी गांव से 3 किमी की ट्रेकिंग द्वारा पहुंचा जा सकता है। कार्तिक स्वामी के दर्शन के पश्चात हमने रुद्रप्रयाग में रात्रि विश्राम किया। जहां अलकनंदा तथा मंदाकिनी नदियों का संगमस्थल है। भगवान शिव के नाम पर रूद्रप्रयाग का नाम रखा गया है। रूद्रप्रयाग अलकनंदा और मंदाकिनी नदी पर स्थित है।Mandakani Alaknanda Nadi

रूद्रप्रयाग श्रीनगर (गढ़वाल) से 34 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मंदाकिनी और अलखनंदा नदियों का संगम अपने आप में एक अनोखी खूबसूरती है। इन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो दो बहनें आपस में एक दूसरे को गले लगा रहीं हो। ऐसा माना जाता है कि यहां संगीत उस्ताद नारद मुनि ने भगवान शिव की उपासना की थी और नारद जी को आशीर्वाद देने के लिए ही भगवान शिव ने रौद्र रूप में अवतार लिया था। रुद्रप्रयाग से हमने प्रात: ऋषिकेश होकर हरिद्वार की ओर प्रस्थान किया और हरिद्वार में हर की पैड़ी पर गंगा स्नान करदिल्ली की ओर प्रस्थान कर गए। इतने अच्छे दर्शन और इतनी सफल यात्रा को लेकर मन में बार-बार हर्ष उल्लास हो रहा था और एक नई ऊर्जा का संचार हो रहा था। सभी बाधाओं को दूर कर जिस तरह से यात्रा सफलतापूर्वक पूरी की, उसमें यह बात दोबारा से सच हो गई कि बाबा जब भक्तों को बुलाते हैं, तो रास्ते में कोई व्यवधान उसे रोक नहीं सकता।