वायु प्रदूषण से निजात के लिए कोई ठोस रास्ता निकल नहीं रहा है। जहरीली आबोहवा ने जन-स्वास्थ्य को मुश्किल में डाल रखा है। खासकर दिल्ली-एनसीआर में हालात चिंताजनक बने हैं। एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) बार-बार खतरनाक स्तर पर रिकॉर्ड किया जा रहा है। वायु को साफ-सुथरा रखने के सभी उपाय नाकाफी साबित हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट तक प्रदूषण की स्थिति पर चिंता जाहिर कर चुका है। स्वच्छ वायु न मिलने से नागरिकों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। हार्ट और सांस के रोगियों के सामने संकट ज्यादा बढ़ा है। देश में पिछले कुछ साल से वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति देखने को मिल रही है। प्रतिवर्ष दीपावली पर्व के बाद हालात खराब होने लगते हैं, मगर शासन-प्रशासन द्वारा उठाए गए कदम कारगर साबित नहीं होते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर वायु प्रदूषण पर चिंता जाहिर की है। देश की शीर्ष अदालत को यह तक कहना पड़ा है कि यदि हालात नहीं सुधरते तो टास्क फोर्स का गठन करना पड़ सकता है। दरअसल वायु प्रदूषण के कारणों पर कोई एक राय बनती नजर नहीं आती है। दीपावली पर की गई आतिशबाजी, किसानों द्वारा खेतों में पराली जलाए जाने, सड़कों पर वाहनों का बढ़ता दबाव और उद्योगों से निकलते जहरीले धुएं को हवा का दुश्मन करार दे दिया जाता है। यदि वायु प्रदूषण के ये चार प्रमुख कारण हैं तो इतने सालों से परिस्थितियों को बदलने में कामयाबी क्यूं नहीं मिल रही है? प्रदूषण के इन कारणों को रोकने की दिशा में प्रभावी कदम क्यूं नहीं उठाते जाते हैं ?
इन सवालों का ठोस जबाव न शासन के पास है और ना प्रशासन के। वायु प्रदूषण से निपटने की कवायद जमीन पर कम कागजों में ज्यादा दिखाई देती है। इस कारण भी हालात में सकारात्मक सुधार नहीं आ पा रहा है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में प्रदूषण की मार ज्यादा है। दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में भी भारत की गिनती हो चुकी है। उत्तर प्रदेश के जनपद गाजियाबाद पर भी दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर होने की तोहमत लग चुकी है। देश की राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद शहर को औद्योगिक हब के तौर पर भी जाना जाता है। यदि गाजियाबाद की हवा जहरीली रहेगी तो निश्चित रूप से इसका असर एनसीआर पर भी पड़ेगा।
प्रदूषण की समस्या पर्यावरण के साथ-साथ स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ रहा है। दूषित हवा में सांस लेने के कारण नागरिकों को गंभीर बीमारियां भी हो रही हैं। देश में बढ़ती आबादी के कारण नागरिकों की जरूरतें भी बढ़ रही हैं। उन जरूरतों को पूरा करने के लिए नई इमारतों, उद्योगों, शॉपिंग मॉल, रिहायशी क्षेत्रों आदि का निर्माण हो रहा है। बहुमंजिला इमारतों के निर्माण के लिए निरंतर हरे-भरे जंगलों को काटा जा रहा है। एक ऐसी दुनिया का निर्माण करने में हम व्यस्त हो चुके हैं जहां जंगल कम और इमारतें ज्यादा हैं। जहां ताजी, स्वच्छ हवा कम और धुएं के बादल ज्यादा हैं। दैनिक गतिविधियों में विभिन्न काम ऐसे हैं जो प्रत्यक्ष तौर पर वायु प्रदूषण के कारण बन रहे हैं। देश में कई छोटे-बड़े उद्योग और पावर प्लांट हैं, जहां से धुएं का उत्सर्जन होता है। यह धुआं हवा में मिलकर हवा को भी प्रदूषित करता है। नतीजन पावर प्लांट और उद्योगों के कारण अत्यधिक मात्रा में वायु प्रदूषण होता है। बढ़ती आबादी के साथ-साथ नागरिकों की जरूरतें भी बढ़ रही हैं। नागरिकों के पास निजी वाहन भी बढ़ रहे हैं। सार्वजनिक वाहनों की जगह निजी वाहनों का इस्तेमाल करने से वाहनों से निकलने वाला दूषित धुआं हवा में प्रदूषण फैलाता है। आजकल नागरिक घरों से बाहर निकलने पर मास्क या कपड़े आदि से नाक और मुंह ढक कर निकलते हैं ताकि दूषित हवा में मौजूद प्रदूषण के तत्वों से खुद की सुरक्षा कर सकें। कारखानों और फैक्ट्रियां की चिमनियों से निरंतर भारी मात्रा में कार्बन मोनोऑक्साइड एवं अन्य रासायनिक धुएं का उत्सर्जन होता है, जो वायु प्रदूषण बढ़ाता है।
घरों और दफ्तर में लगे एयर कंडीशनर से क्लोरोफ्लोरो कार्बन निकलते हैं, जो वातावरण को गंभीर रूप से दूषित करते हैं। इसके अलावा ओजोन परत को भी नुक्सान पहुंचता है। मौजूदा परिस्थितियों को देखा जाए तो पिछले कुछ वर्षों से देश की राजधानी दिल्ली एवं आस-पास के क्षेत्रों में सर्दियों की शुरुआत और दीवाली पर्व के बाद प्रदूषण की मात्रा में गंभीर वृद्धि देखने को मिलती है। खबरों और तथ्यों के मुताबिक प्रतिवर्ष फसल कटने के बाद किसानों द्वारा पराली जलाई जाती है, जिसके कारण अत्यधिक मात्रा में धुएं का उत्सर्जन होता है। यह धुआं दिल्ली के आस-पास के क्षेत्रों को गंभीर रूप से प्रदूषित करता है। दीपावली पर आतिशबाजी छोड़ जाने के कारण भी प्रदूषण फैलता है।
पीएम 2.5 वायु प्रदूषण मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है। सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन यौगिक जैसे नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओएक्स), जो बिजली संयंत्रों, औद्योगिक भट्टियों या बॉयलरों में जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न होते हैं। वाहनों से होने वाला उत्सर्जन और अमोनिया (एनएच-3) मुख्य रूप से कृषि और प्राकृतिक स्रोतों से उत्सर्जित पीएम 2.5 के मुख्य स्रोत हैं जो वातावरण में जमा हो जाते हैं।
पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में वायु प्रदूषण को कम करने के विषय में पता लगाया गया है। शोध दल ने पीएम 2.5 में नाइट्रोजन यौगिकों का अनुमान लगाने के लिए ‘नाइट्रोजन-शेयर’ (एन-शेयर) नामक एक नई मीट्रिक विकसित की है। एन-शेयर के प्रभाव के लिए नाइट्रोजन युक्त यौगिक की भूमिका को व्यक्त करता है। इसके अलावा अन्य उपकरणों के साथ आईआईएएसए नामक मॉडल का प्रयोग भी किया है। वायु प्रदूषण और इससे जुड़े स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर का भी अनुमान लगाया है।