निगम बोर्ड की अनुमति से रखे गये ठेका कर्मचारी, नहीं हुई कोई गड़बड़ी

ई-निविदा के जरिये न्यूनतम बोली लगाने वाली फर्म का हुआ चयन

उदय भूमि ब्यूरो
गाजियाबाद। नगर निगम के लाइट विभाग में रखे गये ठेका कर्मचारी के मामले में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है। नगर निगम कि जांच में यह बात सामने आई है कि सदन की अनुमति से ठेके पर कर्मचारी रखे गये। पूरी प्रकिया में पारदर्शी तरीके से ई-निविदा के जरिये कॉन्ट्रैक्ट वर्कर सप्लाई करने वाली फर्म का चयन किया गया। जहां तक ठेके पर रखे गये नये कर्मचारियों की अधिक तनख्वाह का सवाल है तो इसको लेकर एक कमेटी गठित कर दी गई है। कमेटी कॉन्ट्रैक्ट वर्कर सप्लाई करने वाली फर्म के साथ निगोसिएशन करके पूर्व में निर्धारित दर ही कर्मचारी की मांग करेगा। यदि फर्म ऐसा नहीं करती है तो उसके साथ कंट्रैक्ट रद्द कर दिया जाएगा।
ज्ञात हो कि पिछले दिनों नगर निगम के पार्षद राजेंद्र त्यागी और हिमांशु मित्तल ने निगम के लाइट विभाग में ठेके पर रखे गये 64 कर्मचारी का मामला उठाते हुए घोटाले का आरोप लगाया था। दोनों पार्षदों का आरोप है कि लाइट विभाग में ठेके पर जो कर्मचारी रखे गये उन्हें अधिक तनख्वाह दी जा रही है जबकि, पुराने कर्मचारियों को कम तनख्वाह मिल रही है। यह एक बड़ा घोटाला है। पार्षदों के आरोपों को गंभीरता से लेते हुए मेयर आशा शर्मा और म्युनिसिपल कमिश्नर डॉ. दिनेश चंद्र सिंह ने मामले की जांच के आदेश दिये। जांच में यह बात सामने आई कि ठेके पर रखे गये कर्मचारियों के मामले में पूरी पारदर्शी प्रक्रिया अपनाई गई। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि नगर निगम बोर्ड एवं कार्यकारिणी के सदस्यों की सहमति के बाद ही शहर की समस्या को देखते हुए जनहित में कर्मचारियों को ठेके पर रखे जाने का निर्णय लिया गया था। नगर निगम के 100 वार्डों में लगभग 60 हजार स्ट्रीट लाइटें हैं। जिनकी मरम्मत इत्यादि कार्यों के लिए सिर्फ 100 ठेका श्रमिक कार्यरत थे। इस कारण समय से लाइटों की मरम्मत का कार्य नहीं हो पाता था। पार्षदों एवं आरडब्ल्यूए द्वारा भी लगातार इसको लेकर शिकायतें की जाती थी। सभी लाइट इंस्पेक्टरों ने लिखित में मांग की थी कि प्रकाश व्यवस्था सुचारू रूप से नहीं चल पा रही है और कर्मचारियों की नियुक्ति की जाये। 27 अगस्त 2019 और 13 सितंबर 2019 को हुई नगर निगम की कार्यकारिणी और बोर्ड बैठकों में भी पार्षदों ने यह मुद्दा उठाया था। इसके बाद नगर निगम कार्यकारिणी और बोर्ड ने ठेका कर्मचारियों की संख्या बढ़ाकर समस्या को दूर कराने का निर्देश दिया था। नगर निगम बोर्ड और कार्यकारिणी के निर्देशों का पालन करते हुए लाइट विभाग में ट्रेंड कर्मचारी रखने के लिए प्रतिस्पर्धात्मक ई-निविदा कराई गई। ई-निविदा में सबसे कम दर पर ट्रेंड कर्मचारी उपलब्ध कराने वाली फर्म का चयन किया गया। ऐसे में प्रक्रिया पूरी तरह से पारदर्शी और नियमानुसार है। जहां तक नये कर्मचारियों को पुराने कर्मचारियों से अधिक वेतन दिये जाने का सवाल है तो इसको लेकर म्युनिसिपल कमिश्नर डॉ. दिनेश चंद्र सिंह ने अपर नगर आयुक्त प्रमोद कुमार की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है। समिति पत्रावलियों का पुनरीक्षण कर आख्या देगी कि ई-निवाद में सबसे न्यूनतम दर पर कॉन्ट्रैक्ट वर्कर सप्लाई करने की बोली लगाने वाली फर्म टेंडर दर की बजाय पुराने कर्मचारियों को मिल रही तनख्वाह के हिसाब से कर्मचारी की आपूर्ति कर सकती है कि नहीं। यदि फर्म ऐसा करने में असमर्थता जताती है तो उसका कंट्रैक्ट निरस्त कर दिया जाएगा।

बॉक्स
सब नियमानुसार, फिर क्यों मचा बबाल
जांच में यह बात सामने आई है कि लाइट विभाग में रखे गये ठेके कर्मचारी के मामले में सबकुछ नियमानुसार है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब सब नियमानुसार है तो फिर इसको लेकर बबाल क्यों मचा हुआ है। इसका जवाब है नगर निगम की राजनीति और कर्मचारियों की मजबूरी। नगर निगम में कोई घोटाला हो या ना हो लेकिन हर महीने या यूं कहिये हर पखवारे शोर मचना तय है। कई मामलों में देखा गया है कि इसके लिए निगम पार्षदों की अंदरूनी राजनीति और निगम में अपना दबादबा बनाने की मंशा छिपा होता है। दूसरी वजह नगर निगम में ठेका कर्मचारियों का शोषण है। नगर निगम द्वारा ठेके कर्मचारियों से अधिक काम लिया जाता है और उन्हें योग्यता एवं काम के अनुसार निर्धारित न्यूनतम वेतन से भी कम वेतन मिलता है। नौकरी की मजबूरी के कारण ठेका कर्मचारी यह शोषण सहते रहते हैं। लाइट विभाग में जो नये ठेका कर्मचारी रखे गये वह ट्रेंड कर्मचारी रखे गये। जबकि पुराने कर्मचारी अन ट्रेंड श्रेणी के रखे गये थे। यही वजह है कि कॉन्ट्रैक्ट वर्कर सप्लाई करने वाली फर्म ने पुराने कर्मचारियों से अधिक तनख्वाह पर नये कर्मचारी की आपूर्ति की है। बहरहाल यह विवाद तो निपट गया है लेकिन निगम के ठेका कर्मचारियों के शोषण को लेकर कोई आवाज उठाने वाला नहीं है।