राष्ट्र विरोधी किसान नेताओं ने देश को किया शर्मसार

लेखक – विजय मिश्र

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। इंडियन एक्सप्रेस, जी न्यूज, दैनिक जागरण, अमर उजाला, नई दुनिया सहित कई प्रमुख समाचार पत्र एवं न्यूज चैनल के साथ काम कर चुके हैं। उदय भूमि में प्रकाशित यह लेख लेखक के निजी विचार हैं।)

भेड़ की खाल में छिपे भेडिय़ों की असलियत सामने आने से पूरा देश हैरान-परेशान है। किसान भोला-भाला होता है। किसानों के इसी भोलेपन का नाजायज फायदा उठाकर देश विरोधी ताकतों ने किसानों के कंधे पर बंदूक रखी, लेकिन अब अन्नदाता इन साजिशकर्ताओं के खिलाफ हो गया है। देश का किसान इन राष्ट्र-विरोधियों के खिलाफ एकजुट होकर खड़ा हो गया है। दिल्ली में आतंक फैलाने वालों के असली कनेक्शन चीन, पाकिस्तान और कनाडा से जुड़े हुए हैं। देश के अन्नदाता ही अब इन गद्दारों को सबक सिखाएंगे। 

ये लोग देश विरोधी हैं इस बात की आशंका तो थी, लेकिन अब यह साबित हो गया है कि ये तथाकथित किसान नेता किसानों के शुभचिंतक तो कतई नहीं हैं। गणतंत्र दिवस पर राष्ट्र विरोधी तथाकथित किसान नेताओं के इशारों पर राजधानी दिल्ली में आतंक का जो तांडव किया गया, उससे आज पूरा देश शर्मसार है। खालिस्तान समर्थित देश विरोधी गद्दारों एवं विदेशी ताकतों द्वारा जिस तरह से देश के खिलाफ साजिश रची गई, उसकी कलई अब खुल गई है। आज पूरा देश गुस्से में है और लालकिला पर देश की शान तिरंगे का अपमान करने वाले और उन्हें किसी भी रूप में मदद एवं समर्थन देने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए सरकार पर दबाव डाल रहा है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आज देश का किसान इन राष्ट्र-विरोधियों के खिलाफ एकजुट होकर खड़ा हो गया है। किसान भोला-भाला होता है। किसानों के इसी भोलेपन का नाजायज फायदा उठाकर देश विरोधी ताकतों ने किसानों के कंधे पर बंदूक रखी, लेकिन अब अन्नदाता इन साजिशकर्ताओं के खिलाफ हो गया है। पिछले दिनों ही यह साफ हो गया था कि किसानों एवं सरकार के बीच वार्ता सफल हो जाएगी, तभी वामपंथी एवं खालिस्तान समर्थित तथाकथित किसान नेताओं ने सरकार को ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया था। ये लोग समझौता नहीं चाहते थे। इनका उद्देश्य किसी तरह देश में अराजकता का माहौल उत्पन्न करना था। जब भी देश पर कोई विपदा आती है, तब ऐसे लोग विदेशी फंडिंग के जरिए देश के खिलाफ उठ खड़े होते हैं। दिल्ली में आतंक फैलाने वालों के असली कनेक्शन चीन, पाकिस्तान और कनाडा से जुड़े हुए हैं। देश के अन्नदाता ही अब इन गद्दारों को सबक सिखाएंगे।
गणतंत्र दिवस पर दिल्ली को हिंसा की आग में झोंकने के बाद किसान नेताओं के पांव अब उखडऩे लगे हैं। कई किसान संगठनों ने राष्ट्र विरोधी इस आंदोलन से पीछे हटने का ऐलान कर दिया है। इन किसान नेताओं ने देश और जनता के साथ छल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अपनी राजनीति को चमकाने के लिए वह इस कदर तक गिर जाएंगे यह किसी ने सोचा तक नहीं था। इन तथाकथित किसान नेताओं के कारण आज देश का सिर शर्म से झूक गया है। जनता उन्हें पानी पी-पीकर कोस रही है। जनता केंद्र सरकार से सबसे पहले किसान नेताओं का इलाज करने की मांग कर रही है। कानूनी कार्रवाई के डर से किसान नेता भींगी बिल्ली बन गये हैं। अब या तो वह अपना बचाव कर रहे हैं या फिर दूसरे पर दोषरोपण करने में लग गए हैं। दिल्ली हिंसा ने भारत को समूची दुनिया के सामने शर्मसार कर दिया है। अमेरिका के कैपिटल हिल्स की घटना के बाद दुनियाभर में अब दिल्ली हिंसा की चर्चाएं हो रही हैं। दिल्ली में ट्रैक्टर रैली निकालने के नाम पर जिस प्रकार की अराजकता सड़कों पर देखने को मिली, इससे देशभर में आक्रोश है। पुलिस के जवानों पर लाठी बजाते, तलवारें तानते और बेलगाम तरीके से ट्रैक्टर चलाकर सुरक्षा कर्मियों को कुचलने की कोशिश जैसी हरकतों ने किसान आंदोलन की आड़ में सक्रिय देशविरोधी तत्वों के मंसूबों को उजागर कर दिया है। सही मायने में भेड़ की खाल में छिपे भेडिय़ों की असलियत सामने आने से पूरा देश हैरान-परेशान है। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन ने आहत होकर इस आंदोलन से खुद को अलग कर लिया है। भारतीय किसान यूनियन (भानू गुट) ने भी किसान आंदोलन के समाप्ति की घोषणा कर दी है। कभी सामाजिक कार्यकर्ता, कभी राजनेता तो कभी चुनाव विशेषज्ञ का चोला ओढऩे वाले योगेंद्र यादव पिछले कुछ समय से किसान नेता बन गये थे। जनता के क्रोध से बचने के लिए अब उन्होंने भी कर अपनी जिम्मेदारी को स्वीकार किया है। लेकिन देश को शर्मिदा करने के बाद इस अपराधबोध का क्या फायदा। किसान नेताओं के एकाएक यूटर्न लेने की वजह यह है कि देशवासियों की भावना के अनुरूप अब सरकार पर राष्ट्र विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई करने का दवाब भी है। पुलिस ने अभी तक 22 एफआईआर दर्ज कर कई प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया है। कई किसान नेताओं के खिलाफ संगीन धाराओं में रिपोर्ट दर्ज की गई है। अब तक मनमाना रूख अपनाते आ रहे इन नेताओं के तेवर इसी डर से ढीले पड़ गए हैं। उन्हें खुद के जेल जाने की चिंता सताने लगी है। ट्रैक्टर रैली के नाम पर दिल्ली में हुई हिंसा को आसानी से भुलाया जाना संभव नहीं है। लालकिले में घुसकर राष्ट्र ध्वज की अवमानना कर धर्म विशेष का ध्वज फहराने जैसी घटना आजादी के बाद पहले कभी सामने नहीं आई थी। लालकिले से प्रतिवर्ष 15 अगस्त को प्रधानमंत्री द्वारा तिरंगा फहराया जाता है। हिंसक प्रदर्शनकारियों ने ना सिर्फ देश को अपमानित किया बल्कि तिरंगे का भी अपमान किया है। खालिस्तान समर्थित इन गुंडों का यह कतई क्षमा योग्य नहीं है।