जाते-जाते भी विकास कार्यों को पूरा कराने पर रहा जोर

– निर्विवाद और विकासोन्मुख रहा है नगर निगम के कई वरिष्ठ अधिकारियों का कार्यकाल

उदय भूमि ब्यूरो
गाजियाबाद। नगर निगम में थोक के भाव तबादले हुए हैं। कई वरिष्ठ अधिकारियों सहित दर्जनों अधिकारियों के तबादले हुए हैं। ऐसे में इन तबादलों के बाद अधिकारियों के कामकाज का लेखा जोखा भी शुरू हो गया है। यदि इन अधिकारियों के कामकाज को वर्क मीटर के पैमाने पर नापा जाये तो वरिष्ठ अधिकारियों का कामकाज नगर निगम और शहरवासियों के हित में रहा है। इन अधिकारियों के योगदान से नगर निगम ने कई उपलब्धियां हासिल की है। सबसे महत्वपूर्ण इन अधिकारियों का कार्यकाल निर्विवाद और विकासोन्मुख रहा है।
दो दिन पूर्व गाजियाबाद नगर निगम में करीब डेढ़ दर्जन से अधिक सीनियर और जूनियर ऑफिसर्स के तबादले हुए हैं। अपर नगरायुक्त प्रमोद कुमार का मेरठ नगर निगम, एकाउंट ऑफिसर अरूण कुमार मिश्रा का मुरादाबाद नगर निगम, चीफ इंजीनियर मोइनुद्दीन खान का वाराणसी नगर निगम और मुख्य नगर लेखा परीक्षक अरूण कुमार सिंह का फिरोजाबाद नगर निगम में ट्रांसफर हुआ। इन वरिष्ठ अधिकारियों के तबादले की काफी चर्चाएं। इसकी वजह भी हैं। इन अधिकारियों का शहर के विकास से संबंधित कामकाज को समयबद्ध तरीके से पूरा कराने और नगर निगम की माली स्थिति को सुधारने के लिए बनाये गये योजनाओं को धरातल पर पूरा कराने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है।Pramod-Kumar-Nagar-Nigam

अपर नगर आयुक्त प्रमोद कुमार गाजियाबाद नगर निगम के सबसे लोकप्रिय अधिकारियों में गिने जाते हैं। कोरोना की दूसरी लहर में जब शहर की स्थिति भयावह हो गई थी और शमशान घाटों पर शव जलाने को लेकर फैली अव्यवस्थाओं की खबरें मीडिया में छाई हुई थी। तब अपर नगरायुक्त प्रमोद कुमार ने नगरायुक्त महेंद्र सिंह तंवर के निर्देशन में काम करते हुए शमशान घाट की कमान संभाली और दो से तीन दिनों बाद स्थिति सुधरने लगी। प्रमोद कुमार ने नये शमशान घाट बनाने से लेकर वहां लकड़ी उपलब्ध कराने की हर व्यवस्था पर खुद नजर रखी। जब लोग कोरोना संक्रमित व्यक्ति के पास जाने से बच रहे थे उस समय में प्रमोद कुमार शमशान घाट में मौजूद रहकर लोगों की मदद कर रहे थे।
एकाउंट ऑफिसर अरूण कुमार मिश्रा ने नगर निगम की अर्थव्यवस्था सुधारने से लेकर स्वच्छ भारत अभियान की सफलता तक में महत्वपूर्ण योगदान दिया। गाजियाबाद नगर निगम को कभी भी आर्थिक संकट में फंसने नहीं दिया। अरूण कुमार मिश्रा जब गाजियाबाद नगर निगम में आये थे उस समय नगर निगम का बजट महज 40 से 50 करोड़ रुपये के आस-पास था। जिस वर्ष वह गाजियाबाद के एकाउंट ऑफिसर बने उस वर्ष ही नगर निगम के 100 करोड़ रुपये का बजट पेश किया और अभी चंद दिनों पहले गाजियाबाद नगर निगम के 1100 करोड़ रुपये से अधिक का बजट पेश किया है। नगर निगम का बांड जारी करवाने में भी एकाउंट ऑफिसर का महत्वपूर्ण रोल रहा। पिछले चार वर्षों से स्वच्छ भारत अभियान के नोडल अधिकारी के रूप में शहर की स्वच्छता रैंकिंग सुधारने और शहर को साफ सुथरा बनाने में योगदान दिया। अजय शंकर पांडे से लेकर महेंद्र सिंह तंवर तक सभी नगरायुक्त ने अरूण कुमार मिश्रा पर भरोसा जताया और उन्हें एकाउंट विभाग के अलावा नगर निगम की अन्य महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सौंपी। जिसका उन्होंने बखूबी निर्वाहण किया।Nagar Nigam Chief Engineer Moinuddin
चीफ इंजीनियर मोइनुद्दीन 9 फरवरी 2018 को जब गाजियाबाद नगर निगम के चीफ इंजीनियर बने उस समय निर्माण विभाग सबसे बदनाम विभाग माना जाताा था। निर्माण विभाग की भ्रष्टाचार की खबरें हर दिन अखबारों में छपती थी। मोइनुद्दीन की सबसे बड़ी उपलब्धि रही कि उनके कार्यकाल में निर्माण विभाग की साख में खूब बढ़ोत्तरी हुई। मोइनुद्दीन ने फाइलों की जांच को लेकर चेक लिस्ट, जीपीएस युक्त फोटो और ऑनसाइट निरीक्षण की नीति लागू की। इसका असर पड़ा और प्रक्रिया पारदर्शी हुई। आज भले ही लोग नगर निगम के स्वास्थ विभाग को भ्रष्टाचार की काली कोठरी कहे लेकिन निर्माण विभाग को लेकर लोगों की राय ठीक इसके उलट है। अपने कार्यकाल के दौरान मोइनुद्दीन ने शहर में दर्जनों शौचालय बनवाये। वर्षों बंद पड़े और नगर निगम के लिए सफेद हाथी साबित हो रहे नेहरू नगर ऑडिटोरियम और रमते राम रोड शॉपिंग कॉप्लेक्स का काम शुरू कराया। गाजियाबाद में प्लास्टिक वेस्ट से सड़कों का निर्माण कराने का श्रेय चीफ इंजीनियर को जाता है। शहर की 40 किलोमीटर लंबी सड़क को गडढ़ा मुक्त करने का अभियान एक सप्ताह में पूरा किया और इसके लिए अपर मुख्य सविच ने गाजियाबाद नगर निगम की तारीफ भी की।
मुख्य नगर लेखा परीक्षक के रूप में अरूण कुमार सिंह ने नगर निगम हित को सर्वोपरि रखा। कहीं कोई वित्तीय गड़बड़ी ना हो और नगर निगम के सभी कामकाज नियमानुसार हो। इस पर अरूण कुमार सिंह की पैनी नजर होती थी। अरूण कुमार सिंह व्यवहार में जितने सरल रहे नियम कानून का लेकर फाइलों में उतने ही सख्त रहे। इसका यह नतीजा रहा कि यदि कहीं कोई गड़बड़ी होती तो तत्काल वह पकड़ में आ जाती। बाहर से आने वाली ऑडिट टीम भी नगर निगम के कामकाज में कोई बड़ी कमी नहीं निकाल पाई।