UP Vidhan Sabha Elections – बसपा का ब्राह्मण कार्ड

UP Vidhan Sabha Elections की सुगबुगाहट जोर पकड़ रही है। विभिन्न राजनीतिक दलों ने मिशन-2022 की तैयारियां शुरू कर दी हैं। इसके मद्देनजर दिग्गज नेता सक्रिय भूमिका में आने लगे हैं। भाजपा, कांग्रेस, सपा-बसपा, आम आदमी पार्टी (आप) व रालोद के अलावा एआईएमआईए भी यूपी की सियासत में दिलचस्पी दिखा रही है। पिछले 9 साल से सत्ता से दूर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) अपने दम पर आगामी विधान सभा चुनाव में उतरने का मूड बना चुकी है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने एक बार फिर सवर्ण कार्ड खेला है।

ब्राह्मण समाज को आकर्षित करने को बसपा ने ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित किए जाने का ऐलान किया है। पहले चरण में 23 से 29 जुलाई तक 6 जिलों में यह सम्मेलन कराए जाएंगे। इसका आगाज रामनगरी अयोध्या से किया जाएगा। बसपा ने ब्राह्मण हित में रूचि दिखाई है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने वर्ष-2007 में सवर्ण कार्ड खेला था। जिसका भरपूर लाभ उन्हें मिला था। 2007 में विधान सभा की 403 में से 206 सीटें जीतकर बसपा ने सत्ता में शानदार आगाज किया था। इसके बाद 5 साल तक बसपा ने सरकार का संचालन किया था। मुख्यमंत्री के तौर पर मायावती ने अपनी अलग पहचान कायम की थी। सख्त मिजाज और प्रभावी निर्णय लेने के कारण वह हमेशा सुर्खियों में रहीं।

भविष्य में यूपी की सत्ता पर काबिज होने के लिए बसपा सुप्रीमो ने 14 साल पुराने फार्मूले पर लौटने का फैसला कर सियासी गलियारों में खलबली मचा दी है। ब्राह्मणों को साधने की खातिर वह भविष्य में इस फार्मूले पर काम करती दिखाई देंगी। हालांकि बसपा की राह में अड़चन कम नहीं हैं। पहले की भांति मायावती की लोकप्रियता में गिरावट आई है। कई पुराने और वफादार सहयोगी बसपा का साथ छोड़ चुके हैं। इनमें नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे नामचीन मुस्लिम चेहरे भी शामिल हैं। किसी समय में बसपा में मायावती के बाद चुनिंदा चेहरों का क्रेज था। रामवीर उपाध्याय और नसीमुद्दीन सिद्दीकी इत्यादि पार्टी की बेहद मजबूत कड़ी माने जाते थे।

वर्ष-2012 के UP Vidhan Sabha Elections में सपा के हाथों बसपा को करारी शिकस्त मिली थी। 2012 में समाजवादी पार्टी (सपा) ने करिश्माई प्रदर्शन कर सत्ता में वापसी की थी। बाद में मुख्यमंत्री पद पर मुलायम सिंह ने बेटे अखिलेश यादव की ताजपोशी की थी। अखिलेश ने भी पूरे 5 साल सत्ता को संभाला था, मगर सपा सरकार में कई पावर सेंटर होने के कारण पार्टी को हमेशा आलोचना का शिकार होना पड़ा। मुलायम सिंह यादव के अलावा प्रो. रामगोपाल यादव, शिवपाल यादव और मोहम्मद आजम खां के आगे अखिलेश यादव को अक्सर दबाव महसूस करना पड़ता था। मुजफ्फरनगर दंगों ने सपा की छवि को बड़ा नुकसान पहुंचाया।

2017 के UP Vidhan Sabha Elections तक भाजपा खुद को मजबूत कर चुकी थी। देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और जनता में स्वीकार्यता का लाभ भाजपा को मिला। 2017 में भाजपा ने विरोधियों को पछाड़ कर यूपी की सत्ता पर कब्जा कर लिया। तब से अब तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में सरकार चल रही है। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समाज की अहमियता से सभी राजनीतिक दल अवगत हैं। अलबत्ता बसपा सुप्रीमो मायावती ने यदि ब्राह्मण कार्ड खेला है तो इसमें आश्चर्यजनक कोई बात नहीं है। भाजपा ने कुछ दिन पहले अरविंद कुमार शर्मा को अपने साथ जोड़ा है। पूर्व नौकरशाह अरविंद कुमार शर्मा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी माना जाता है। वह काफी समय तक पीएमओ में अपनी सेवाएं देते रहे थे। यूपी सरकार में शर्मा को अह्म जिम्मेदारी मिलने की चर्चाएं पिछले दिनों खूब सुनने को मिली थीं। बाद में उन्हें सरकार की जगह संगठन में शामिल किया गया।

सूत्रों का कहना है कि यूपी में ब्राह्मण समाज को अपने साथ एकजुट रखने की रणनीति पर भाजपा ने बसपा से पहले काम प्रारंभ कर दिया था। इस रणनीति के तहत अरविंद कुमार शर्मा को पार्टी में लाया गया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल में हाल ही में विस्तार किया गया है। मंत्रिमंडल विस्तार के दौरान उत्तर प्रदेश से ब्राह्मण समाज के कुछ सांसदों को भी अह्म जिम्मेदारी सौंपी गई है। 2022 में ब्राह्मण समाज का साथ किसी राजनीतिक दल को ज्यादा मिलेगा, यह भविष्य में मालूम पड़ेगा।

ब्राह्मण फेस सतीश चंद्र मिश्रा के जरिए बसपा ब्राह्मण मतदाताओं को अपने पक्ष में लेने की रणनीति पर काम कर रही है। बसपा ने 2007 में उम्मीदवारों की घोषणा चुनाव से लगभग एक साल पहले कर दी गई। इसके अतिरिक्त ओबीसी, दलितों, ब्राह्मणों और मुस्लिमों के साथ तालमेल बनाया था। इसी फॉर्मूले को पुन: धरातल पर उतारने की कवायद चल रही है। बसपा ने दूरदर्शी रणनीति के चलते ब्राह्मण सम्मेलन कराने का मन बनाया है। उत्तर प्रदेश में आजाद समाज पार्टी की बढ़ती सक्रियता ने भी बसपा की टेंशन बढ़ा रखी है।

आजाद समाज पार्टी के मुखिया चंद्रशेखर लंबे समय से अपनी जमीन मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। चंद्रशेखर की नजर दलित और मुस्लिम मतदाताओं पर है। इस वर्ग को प्रभावित कर वह आगामी विधान सभा चुनाव में उतरने की तैयारियां कर रहे हैं। चंद्रशेखर का प्रभाव बढ़ने का खामियाजा बसपा को भुगतना पड़ सकता है। चूंकि वह बसपा के संस्थापक मान्यवर कांशीराम के नाम पर दलित समाज के बीच पैंठ बढ़ा रहे हैं। चंद्रशेखर ने काफी समय पहले बसपा के साथ जुड़ने की इच्छा जाहिर की थी, मगर बसपा ने उनके ऑफर को ठुकरा दिया था। ऐसे में वह अब बसपा की आलोचना करने से भी पीछे नहीं हट रहे हैं। मिशन-2022 में कांग्रेस भी पीछे नहीं है।

कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी ने यूपी में सक्रियता बढ़ाई है। वह पुराने कार्यकर्ताओं में जोश भरने के अलावा नए कार्यकर्ताओं को संगठन से जोड़ने की मुहिम में लग गई हैं। प्रियंका गांधी को यूपी से कांग्रेस का मुख्यमंत्री प्रत्याशी बनाए जाने की मांग भी उठ रही है। यूपी की जनता पर प्रियंका गांधी कितना असर छोड़ पाएंगी, यह भविष्य में पता चलेगा।