नगर निगम का जलकल विभाग बना भ्रष्टाचार का अड्डा : नगर आयुक्त तक पहुंची शिकायत खुलेंगी परतें होगी कड़ी कार्रवाई

मंगलवार को संभव जनसुनवाई में शिकायत लेकर पहुंचा ठेकेदार, अनियमितताओं और फर्जी भुगतान को लेकर जलकल विभाग के इंजीनियरों पर लग रहे हैं गंभीर आरोप

उदय भूमि ब्यूरो
गाजियाबाद। नगर आयुक्त विक्रमादित्य सिंह मलिक के भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को जलकल विभाग के अधिकारी पलीता लगाने में लगे हुए हैं। नगर निगम के अन्य विभागों में जहां नगर आयुक्त की सख्ती का असर दिखाई दे रहा है वहीं जलकल विभाग के अधिकारी बेलगाम हैं। ऐसा नहीं है कि नगर निगम के अन्य विभागों में सबकुछ पाक-साफ है। लेकिन इतना जरूर है कि अन्य विभागों में यदि कहीं कोई अधिकारी गड़बड़ी कर रहा है तो वह व्यक्तिगत स्तर पर बेहद छुपकर या फिर गुपचुप तरीके से कर रहा है। इसके विपरीत जलकल विभाग के इंजीनियर सीना ठोककर भ्रष्टाचार में शामिल हैं। इंजीनियर इतने बेखौफ हैं कि शासन के वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क और रसूख का हवाला देकर ठेकेदारों को धमकातें हैं। बहरहाल अब जलकल विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार की परतें खुलने लगी है। जलकल विभाग के भ्रष्टाचार से संबंधित एक शिकायत मंगलवार को संभव दिवस में जनसुनवाई के दौरान नगर आयुक्त विक्रमादित्य सिंह मलिक तक पहुंची। हालांकि मामला पुराना है और इस शिकायत में कितनी सच्चाई है यह तो जांच में ही पता चलेगा। लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं है कि जलकल विभाग के अधिकारियों के नकेल कसने की सख्त जरूरत है।

 

 

नगर निगम कार्यकारिणी कक्ष में मंगलवार को आयोजित संभव कार्यक्रम के तहत जनसुनवाई में नगर आयुक्त विक्रमादित्य सिंह मलिक के सामने एक अजीब मामला सामने आया। एक ठेकेदार ने जलकल विभाग के अधिकारियों पर 21 लाख रुपए हड़पने की साजिश का आरोप लगाया। शक जताया कि जो कार्य उन्होंने किया। उसके भुगतान की रकम की बंदरबाट करने के लिए किसी दूसरी फर्म को कर दिया गया है। नगर आयुक्त विक्रमादित्य सिंह मलिक ने जनसुनवाई के दौरान पीड़ित ठेकेदार की बात सुनने के बाद आश्वासन दिया कि इस मामले की जांच के लिए जल्द समिति बनाकर जल्द ही कार्रवाई का आश्वासन पीड़ितों को दिया। शिकायतकर्ता ठेकेदार हरिओम त्यागी ने बताया कि छह साल पहले नगर निकाय चुनाव होने से पहले टेंडर के माध्यम से नेहरू नगर में सीवर लाइन डालने के लिए 11 लाख और 9 लाख रुपए के दो कार्य जलकल विभाग से मिले थे, उन्होंने यह कार्य पूरा करने के बाद भुगतान के लिए फाइल जलकल विभाग के अधिकारियों को दी। इस पर जिस वक्त वर्क ऑर्डर जारी किया गया था।

उस वक्त विभाग का अवर अभियंता दूसरा था और जब कार्य पूरा हुआ तो अवर अभियंता दूसरा था। आरोप है कि छह साल से जलकल विभाग के अधिकारी भुगतान को लेकर आश्वासन देते रहे, लेकिन भुगतान नहीं किया। इसके बाद में फाइल ही गुम हो जाने की बात कहने लगे। उन्होंने मामले की शिकायत पूर्व नगर आयुक्त से की, इसके बाद जांच होने पर फाइल तो मिल गई,लेकिन अधिकारी कार्य किए जाने पर ही सवाल उठाने लगे। पीड़ित ने साक्ष्य के तौर पर तत्कालीन स्थानीय पार्षद का फर्म द्वारा किए गए कार्य की पुष्टि करता हुआ पत्र दिया गया। आरोप लगाया कि न तो उनका टेंडर रद्द करने का नोटिस दिया गया और न ही कार्य रोकने का ही नोटिस दिया गया।जब कार्य पूरा करा दिया तो भुगतान के लिए छह साल से अधिकारी दौड़ा रहे हैं। शक यह भी जताया है कि उनके द्वारा किए गए कार्य की धनराशि जलकल विभाग के अधिकारी हड़पने की साजिश कर चुके हैं। आरोप तो यह भी है कि जो कार्य उन्होंने कराया है उसका भुगतान दूसरी फर्म को करने के बाद रुपए की बंदरबाद की जा चुकी है। संभव दिवस में नगर आयुक्त के समक्ष 16 शिकायतें प्राप्त हुई। इन शिकायतों पर नगर आयुक्त ने तत्काल कार्रवाई कराई। इस दौरान अपर नगर आयुक्त अरुण यादव, चीफ इंजीनियर एनके चौधरी, सहायक नगर आयुक्त पल्लवी सिंह, जलकल महाप्रबंधक केपी आनंद, नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. मिथिलेश कुमार सिंह, संपत्ति अधीक्षक भोलानाथ गौतम, प्रकाश प्रभारी आस कुमार आदि मौजूद रहे। नगर आयुक्त ने शिकायत एवं समस्याएं सुनने के बाद संबंधित विभाग के अधिकारियों को मौके पर जाकर कार्रवाई के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि किसी भी शिकायत की पुनरावृत्ति ना हो। इसका विशेष ध्यान रखने के लिए भी हिदायत दी गई। नगर आयुक्त से कई पार्षदों ने अपने क्षेत्र की समस्या भी रखी। इसमें अतिक्रमण से संबंधित शिकायत पर तत्काल कार्रवाई करते हुए चीफ इंजीनियर एनके चौधरी, संपत्ति अधीक्षक भोलानाथ गौतम को निरीक्षण करते हुए कार्रवाई के निर्देश दिए।

ठेकेदार भी नहीं दूध के धुले
नगर निगम के ठेकेदार भी दूध के धूले नहीं हैं। जलकल विभाग में भ्रष्टाचार को लेकर शिकायत करने वाले ठेकेदार हरिओम त्यागी का कहना है कि उसने 6 वर्ष पूर्व काम किया था और उसका भुगतान नहीं हुआ। लेकिन सवाल उठता है कि वह इतने लंबे समय तक कहां सो रहा था। किसी ठेकेदार का 21 लाख रुपया फंसा हो और वह 6 साल तक चुपचाप बैठा रहे यह बात सम­ा में नहीं आती। यह एक कड़वा हकीकत है कि नगर निगम में ठेकेदार और जूनियर इंजीनियर स्तर के अधिकारियों के बीच नापाक गठजोड़ बना हुआ है। नगर निगम में यदि भ्रष्टाचार पर सख्ती से प्रहार करना है तो सबसे पहले इस गठजोड़ को खत्म करना होगा। साथ ही ठेकेदारों को भी सुरक्षित माहौल उपलब्ध कराना होगा। जलकल विभाग के इंजीनियरों को लेकर जिस तरह की शिकायतें आ रही है वह बेहद गंभीर श्रेणी के हैं और उन पर लगने वाले सभी आरोपों की गंभीरता से जांच होनी चाहिये।