नगर निकाय चुनाव: हाईकोर्ट के निर्णय पर टिकी सबकी निगाहें

आरक्षण के खिलाफ हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका पर आगामी 20 दिसंबर को सुनवाई होनी हैं। ऐसे में अब सभी राजनीतिक दलों के दिग्गजों के साथ-साथ जिला प्रशासन और नगर निगम समेत निकायों की निगाहें टिकी हुई है।
हाईकोर्ट का जो भी निर्णय आएगा। उसके बाद ही निकाय चुनाव को लेकर आगे की प्रक्रिया शुरू होगी। नगर निगम की बात करें तो मेयर की सीट 16 साल बाद तीसरी बार अनारक्षित की गई है। ऐसे ही नगर निगम के 100 वार्डों में करीब 51 वार्डों में भी आरक्षण की वजह से स्वरूप बदल गया।

गाजियाबाद। नगर निगम समेत नगर पालिका परिषद एवं नगर पंचायतों में वार्डों के आरक्षण से लेकर मेयर एवं चेयरमैन पद की सीट अनारक्षित एवं आरक्षित किए जाने के बाद अब मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में है। आरक्षण के खिलाफ हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका पर आगामी 20 दिसंबर को सुनवाई होनी हैं। ऐसे में अब सभी राजनीतिक दलों के दिग्गजों के साथ-साथ जिला प्रशासन और नगर निगम समेत निकायों की निगाहें टिकी हुई है।

हाईकोर्ट का जो भी निर्णय आएगा। उसके बाद ही निकाय चुनाव को लेकर आगे की प्रक्रिया शुरू होगी। नगर निगम की बात करें तो मेयर की सीट 16 साल बाद तीसरी बार अनारक्षित की गई है। ऐसे ही नगर निगम के 100 वार्डों में करीब 51 वार्डों में भी आरक्षण की वजह से स्वरूप बदल गया। नगर विकास विभाग के प्रमुख सचिव द्वारा पूर्व में मेयर एवं निकायों में चेयरमैन पद को लेकर आरक्षण की घोषणा की गई थी। मगर इसको लेकर बड़ी संख्या में लोगों द्वारा वार्डों के आरक्षण को लेकर याचिका दायर की गई है। इन याचिका पर हाईकोर्ट में आगामी 20 दिसंबर को सुनवाई होनी हैं।

हाईकोर्ट का जो भी निर्णय होगा। उसके आधार पर ही आगे की निकाय चुनाव को लेकर तैयारियां शुरू होगी। हालांकि मेयर का चुनाव लडऩे के लिए भारतीय जनता पार्टी में सबसे ज्यादा दावेदार आगे आ रहे है। भाजपा के अलावा कांग्रेस, रालोद-सपा एवं बसपा में क्या टक्कर होगी। यह चुनावों की तारीख का ऐलान होने के बाद स्पष्ट हो सकेगा। गाजियाबाद में मेयर की सीट अनारक्षित हुई है ऐसे में न केवल इस सीट पर जीत हासिल करने बल्कि टिकट के लिए भी दावेदारों में कड़ी टक्कर देखने को मिलेगी।

मेयर की सीट पर अब तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का ही कब्जा रहा है। लोकसभा चुनाव से पहले निकाय चुनाव में जीत हासिल करने के लिए सभी राजनीतिक दल पूरी तैयार कर रहे हैं। इसे लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा है। भाजपा के सामने इस सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखने की चुनौती होगी तो दूसरी पार्टियों को लगातार मिल रही हार के शर्मनाक रिकार्ड को तोडऩा चुनौतीपूर्ण होगा।

मेयर पद को छोड़कर निकायों में आरक्षण से बदले समीकरण
नगर निगम समेत जिले की चार नगर पालिका परिषद और चार नगर पंचायतों के चेयरमैन पद के लिए आरक्षण की सूची जारी होने के बाद अब चुनाव लडऩे के इच्छुक सभी दलों के नेताओं की हाईकोर्ट के निर्णय पर नजर है। अगर आरक्षण में फेरबदल होता है तो निकायों में चेयरमैन पद पर चुनाव लडऩे की इच्छा पाले दिग्गजों के समीकरण बिगड़ सकते हैं। नगर निगम की मेयर सीट 16 साल बाद अनारक्षित हुई है। वर्ष-2006 से यह सीट दो बार सामान्य महिला और एक बार अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित रही है।

लोनी और खोड़ा नगर पालिका के चेयरमैन पद ओबीसी, मोदीनगर का एससी और मुरादनगर पालिका का चेयरमैन पद अनारक्षित श्रेणी में रखा गया है।वहीं, जिले की चार में से पतला नगर पंचायत का अध्यक्ष पद ओबीसी, निवाड़ी का ओबीसी महिला,फरीदनगर का अध्यक्ष पद महिला श्रेणी में आरक्षित किया गया है। डासना को अनारक्षित श्रेणी में रखा गया है। नगर निगम का महापौर पद अनारक्षित श्रेणी में आने के बाद सामान्य जाति वर्ग के दावेदारों में अपने-अपने राजनीतिक दल से टिकट मिलने की उम्मीद जगी है। मगर अब हाईकोर्ट के निर्णय पर सभी की नजर है।

नगर निगम का गठन होने के बाद मेयर सीट का इतिहास
वर्ष-1994 में नगर निगम का गठन हुआ। इसके बाद 1995 अनारक्षित दिनेश चंद गर्ग महापौर बने।दूसरी बार वर्ष-2000 में अनारक्षित दिनेश चंद गर्ग,2006 महिला दमयंती गोयल,2012 ओबीसी तेलूराम कांबोज व अशु वर्मा, 2017 महिला आशा शर्मा महापौर बनीं। तेलूराम कांबोज के निधन के बाद हुए मध्यावधि चुनाव में अशु वर्मा जीते।
नगर निगम के वार्डों में आरक्षण से 51 पार्षदों के लिए संकट
नगर निगम के 100 वार्डों के आरक्षण की सूची जारी होने के बाद बड़ी संख्या में पार्षदों के चुनाव लडऩे के अरमान फिलहाल धूमिल होते दिख रहे है। वार्डों के बदले आरक्षण ने 51 पार्षदों के लिए निगम सदन में जाने की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। यह पार्षद अपने वार्ड से चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। फिलहाल वार्डों के आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका के बाद अगर आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट कोई निर्णय लेती है तो समीकरण बदल सकते हैं।
महिला के लिए वार्ड आरक्षित हो जाने पर इस बार कई पार्षद खुद चुनाव लडऩे की बजाय पत्नी को चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी कर रहे हैं। नगर निगम के 14 वार्ड इस बार अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित किए गए हैं। अब 2022 के चुनाव में इन 14 वार्ड के पार्षदों को या तो क्षेत्र वार्ड बदलना पड़ेगा। 2022 के चुनाव के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग और अन्य पिछड़ा वर्ग महिला श्रेणी में आरक्षित किए गए।

21 वार्ड भी 2017 के चुनाव में महिला, अनारक्षित और अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित थे। यानी इन वार्डों से 2017 में चुनाव जीतकर नगर निगम सदन में पहुंचे पार्षद भी अपने वार्ड से दोबारा चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। अब इन 21 वार्ड में सिर्फ ओबीसी या ओबीसी वर्ग की महिलाएं चुनाव लड़ सकेंगी। 2017 में अनारक्षित, अनुसूचित जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित 16 वार्ड भी इस बार महिला वर्ग के लिए आरक्षित कर दिए गए हैं।

इसकी वजह से अब इन वार्डों के पार्षदों की उम्मीदों पर भी पानी फिर गया है। इनमें से अधिकांश पार्षद अब पत्नी के लिए टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। वार्डों का आरक्षण बदल जाने की वजह से पत्नी को चुनाव लड़ाने या अन्य वार्डों से चुनाव लडऩे की तैयारी कर रहे पार्षदों को झटका लग सकता है। ऐसे में इन वार्डोंं में दोबारा पार्षदों की पत्नी को टिकट मिलना मुश्किल हैं। खासतौर से भाजपा में दावेदारों की संख्या ज्यादा होने से इसकी उम्मीद बेहद कम है।

नगर पालिका आरक्षण (2017) अध्यक्ष बने आरक्षण (2022)
खोड़ा-मकनपुर ओबीसी रीना भाटी ओबीसी
मुरादनगर-ओबीसी विकास तेवतिया अनारक्षित
मोदीनगर-अनारक्षित अशोक माहेश्वरी एससी
लोनी-ओबीसी रंजीता धामा ओबीसी
नगर पंचायत आरक्षण (2017) अध्यक्ष बने आरक्षण (2022)
फरीदनगर-अनारक्षित अनवरी महिला
पतला-अनारक्षित मनोज ओबीसी
डासना-महिला हज्जन हंसार अनारक्षित
निवाड़ी- एससी महिला विमला देवी ओबीसी महिला
हाईकोर्ट के निर्णय का इंतजार

नगर निगम समेत निकायों के वार्डों एवं महापौर, चेयरमैन पद के आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका पर क्या निर्णय होगा। इसका इंतजार किया जा रहा है। हाईकोर्ट के निर्णय के बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी। इस बारे में फिलहाल कुछ कहना उचित नहीं है। निर्णय आने के बाद निकायों के चुनाव संबंधी प्रक्रिया जल्द पूरी कराई जाएगी।
राकेश कुमार सिंह