लेखक-: के.के. शर्मा, सोशल चौकीदार संस्था के संस्थापक हैं। ज्वलंतशील मुद्दो पर बेबाकी से अपनी राय रखते हैं। उदय भूमि में यह लेख लेखक के निजी विचार हैं।
जब पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पोओके) की बात उठती है तो लोग पोओके को आजाद कराकर भारत में मिलाने की खूब चिंता करते है। चीन के बॉर्डर पर हमारी सेना का अपनी एक-एक इंच जमीन के लिए चीन से संघर्ष होता रहता है और संसद में राजनैतिक पार्टियां राजनीतिक रोटियां सेंकती है लेकिन पंजाब में अलग खालिस्तान बनाने के मांग को लेकर फिर संघर्ष शुरू हो गया है। या ये कहें कि भारत के टुकड़े-टुकड़े कराने को विदेशी ताकतों की मंशा पंजाब में पुन: परवान चढऩे लगी है। इसकी कोई चर्चा नही है।
दरअसल इसकी नींव तो उस दिन रख गयी थी जब जेएनयू में भारत के टुकड़े करने की बात कही गयी थी और इस भारत के टुकड़े गैंग के साथ वामपंथी, कांग्रेस के राहुल गांधी, आप पार्टी के अरविंद केजरीवाल आदि उनके समर्थन के लिए पहुंच गए थे और जो पार्टियां नही गयी थी वो बाहर से ही उनको अपना समर्थन दे रही थी।
इसके बाद जब तथाकथित किसान आंदोलन हुआ तो उसकी धुरी भी खालिस्तान समर्थकों पर टिकी हुई थी। दरअसल ये किसान आंदोलन नही था। ये खालिस्तान समर्थकों का शक्ति प्रदर्शन था और इसका केंद्र पंजाब था। किसान नेता राकेश टिकैत आदि किसान नेता तो इनके मोहरे थे। खालिस्तान आंदोलन की नींव गहरी तब हो गयी थी जब पंजाब चुनाव के दौरान आप पार्टी खालिस्तान समर्थकों के कंधे पर चढ़कर ही सत्ता में आई।
पंजाब में एक अपराधी को छुड़ाने के लिए हजारों हथियारबंद लोगों की भीड़ थाने पर धावा बोल दें और पुलिसकर्मियों को लहूलुहान कर दें और वहां का एसएसपी सरकार के दबाव में खालिस्तान के समर्थको के आगे घुटने टेकने को मजबूर हो जाये और कथित अपराधी को सरकार को मजबूरन छोडऩा पड़े। इससे दुर्भाग्यपूर्ण और कुछ नही हो सकता और इससे भी ज्यादा शर्मनाक बात यह है कि पंजाब के आप पार्टी के मुख्यमंत्री भगवंत मान बेशर्मी, बेहयाई के साथ ये कहें कि पंजाब में सब ठीक है और आप पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल की जीभ को लकवा मार जाए तो समझो पंजाब खतरे में है।
कांग्रेस पार्टी ने पंजाब में खालिस्तान आंदोलन को पाला था और भिंडरावाले को पाल-पोष कर तैयार किया था तब खालिस्तान समर्थकों द्वारा हजारों लोगों को मौत के घाट उतारा था। वही इतिहास सत्ता के लालच में केजरीवाल दोहरा रहे है। कांग्रेस पार्टी के तत्कालीन मुखिया एवं देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को खालिस्तान समर्थकों ने ही घर मे घुस कर मारा था। वो कांग्रेस पार्टी अपने मुख से इस घटना के लिए एक शब्द निकालने के लिए हिम्मत नही जुटा पा रही है।
दरअसल भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के बहुत लोकप्रिय और शक्तिशाली होने के कारण विपक्षी पार्टियां निराश और हताश हो गयी है और किसी भी तरह सत्ता में आने को लालायित है। चाहें उन्हें आतंकवादियों से, चीन से, पाकिस्तान से समझौता करना पड़े लेकिन किसी तरह सत्ता मिल जाए, उसके लिए कुछ भी करना पड़े ऐसी स्थिति में आ गए है। जैसे-तैसे भारत सरकार कश्मीर को काबू में ला पाई है, मणिपुर, नागालैंड, मिज़ोरम का आतंकवाद लगभग समाप्त किया है इसलिए सभी विदेशी ताकतों का पूरा ध्यान पंजाब में लग गया है जिसका बॉर्डर पंजाब से मिला हुआ है।
पंजाब सरकार की हिम्मत नही है कि वो खालिस्तान समर्थकों के विरुद्ध खड़ी हो जाये क्योंकि उन्हीं के समर्थन से तो वो सत्ता में आये है। ये तो गनीमत है कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा नही है अन्यथा पंजाब जैसी स्थिति दिल्ली में भी होनी थी। इसका एक नमूना 26 जनवरी को लाल किले पर देखा था। बहरहाल, अब हम कह सकते है कि देश खतरे में है इसलिए इसे बचाने के लिए जनता को आगे आना पड़ेगा। जनता चुप रहेगी तो वोट बैंक की राजनीति देश का विभाजन करा देगी। अच्छी बात यह है कि सिख कौम बहादुर व देशभक्त कौम है। ये किसी अलगावाद को हवा नही लगने देंगे और अलगावादियों का कोई सपना आसानी से पूरा नही होने देंगे।