वैश्य अग्रवाल परिवार ने की खाना बर्बाद न करने की अपील

थाली में छूटे अन्न की बर्बादी से दुखता है मन: अनिल जैन

गाजियाबाद। अक्सर लोग अपनी थाली में जरूरत से ज्यादा खाना भर लेते हैं। पेट भरने पर थाली में बचा भोजन फेंक देते हैं। हमारी इस आदत से अन्न की बड़ी बर्बादी हो रही है। सवाल यह है कि क्या हम अपनी जरुरत अनुसार ही थाली में भोजन नही परोस सकते हैं। जिससे बर्बाद होने वाले अन्न से निर्बल और वंचितों के पेट को भरा जा सकें।
वैश्य अग्रवाल परिवार सस्थान के अध्यक्ष अनिल जैन ने बताया कि शादी विवाह समारोह में अन्न की बर्बादी और फिजूल खर्चीली व्यावस्थाओं का बढ़ता चलन है। अगर आप बाजार में पैसों से पानीपुरी खाते हैं तो कटोरी का पानी भी पी जाते हो, आइसक्रीम हो तो आप ढक्कन भी चाट लेंते हो फिर अगर किसी की शादी का निमंत्रण आया है तो खाना और मिठाई भर पेट खाये पर लेकिन उसे बर्बाद तो न करें। शादी में एक पिता अपनी जीवन भर की जमा-पूंजी लगाकर समाज के लोगों को बुलाता है। इज्जत के लिए स्वादिष्ट भोजन की व्यवस्था करता है। केवल अपनी इज्जत और व्यवहार के लिए व अपने बच्चों खुशी के लिए अपनी जीवन भर की पूंजी खर्च कर देता है।

मगर शादी में आने वाले लोग जरुरत से ज्यादा खाना अपनी प्लेट में ले लेते है और उसे बाद में बर्बाद कर देते है। क्योंकि हम स्वाद और खाने की लालसा से आगे सोच ही नहीं पाते हैं। एक बार चखकर फेंकने की लत ने भोजन की बर्बादी को कितना बढ़ाया है? न हमने इस बात पर कभी चिंता जाहिर की और न कभी सोचा आज कमोबेश हमारे आस-पास हर जगह यही हालात हैं। हमारे यहां तो अन्न को देवता का दर्जा प्राप्त है। थाली में जूठन छोडऩा अन्न देवता का अपमान समझा जाता है, लेकिन विडंबना है कि आज की बदलती जीवनशैली में इंसान को अन्न देवता का अपमान करना महज स्वाभाविक लगता है। आज हमें जरूरत है जागरूकता फैलाने की, शादी-विवाह में जागरूकता संबंधी बैनर या एक-दो मिनट की शॉर्ट फिल्म चलाकर लोगों को तत्काल सोचने के लिए मजबूर किया जाए। छोटे बच्चों को माता-पिता द्वारा घर में भोजन के समय व्यर्थ न बिगाडऩे या आवश्यकता से अधिक न लेने की आदत को डाला जाए, तभी अन्न का दुरुपयोग रुकेगा।