ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के CEO एनजी रवि कुमार के इस फैसले से दुरुस्त हो जाएगी प्राधिकरण की व्यवस्था

-ईआरपी सिस्टम की ‘रफ्तार’ धीमी पड़ी तो ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने बनाई नई योजना

ग्रेटर नोएडा। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण को पेपरलेस बनाने के लिए शुरू किया गया इंटरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग सिस्टम की ‘रफ्तार’ धीमी पड़ गई। अब प्राधिकरण इस प्रोजेक्ट को सरकारी संस्था नेशनल इंफॉरमेशन सेंटर (एनआईसी) को देने की तैयारी में है। ताकि वह सुचारु रूप से इस सिस्टम को चला सके। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के सीईओ एनजी रवि कुमार ने कहा कि प्राधिकरण के इंटरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग सिस्टम एनआईसी को देने की तैयारी की जा रही है। इसके लिए एनआईसी के साथ बैठक होगी।

ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने करीब पांच वर्ष पहले प्राधिकरण को पेपरलेस बनाने की दिशा में काम शुरू किया था। इसके लिए 68 करोड़ रुपये में टेक महिंद्रा कंपनी से करार किया गया था। एंटरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग (ईआरपी) सिस्टम के जरिये आवंटियों, आवेदकों और निवासियों के सभी काम ऑनलाइन कराने शुरू किए गए थे। करीब 25 से अधिक समस्याओं का ऑनलाइन निस्तारण शुरू कर दिया गया। हर अधिकारी की टेबल तक फाइल उनके कंप्यूटर पर पहुंचने लगी। काफी दिन तक काम अच्छा चला। करीब एक साल से ईआरपी सिस्टम हाफने लगा। बीच में कंपनी के कर्मी चले गए थे। इससे ऑनलाइन कामकाज बाधित हो गया। इसके बाद ऑफलाइन काम शुरू करा दिए गए। ऑनलाइन के बाद ऑफलाइन काम होने से फिर समस्या बढ़ने लगी। आवंटियों के काम में कई -कई दिन लगने लगे। इसकी शिकायत प्राधिकरण के उच्च अधिकारियों तक पहुंचने लगी। अब प्राधिकरण ईआरपी को फिर से तेज करने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। अब जितनी फाइलें ऑनलाइन बन चुकी हैं, उनकी हार्डकापी निकालना भी बड़ा काम है। ऐसे में अब फिर ईआरपी शुरू किया जाएगा। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ईआरपी सिस्टम को एनआईसी को देने की तैयारी में है। प्राधिकरण इस सरकारी संस्था से काम करवाना चाहता है। इसके लिए सीईओ एनजी रवि कुमार ने एसीईओ मेधा रूपम को जिम्मेदारी सौंपी है। एसीईओ एनआईसी के साथ बैठक करके इस दिशा में कदम बढ़ाएंगी। यह काम जल्द करने की योजना है। जल्द एनआईसी के साथ बैठक होगी। बैठक में इस पर फैसला लिया जाएगा।

कोई व्यक्ति किसी काम के लिए आवेदन देता है तो उसे सीआर सेल आवेदन को स्कैन कर संबंधित विभाग के अधिकारी के पास भेज देता है। इस पर संबंधित अधिकारी नोटिंग करना शुरू कर देते हैं। फाइल अलग-अलग अधिकारियों के पास ऑनलाइन भेजी जाती है। समस्या का निस्तारण होने उसका फाइनल प्रिंट निकालकर आवेदक को प्रिंट दिया जाता है। दस फीसदी के लिए आवेदन, पानी-सीवर के लिए कनेक्शन, भूखंड या फ्लैट का ट्रांसफर मेमोरेंडम, मारगेज अनुमति, एनओसी आदि काम इसी सिस्टम से होते हैं।