गाजियाबाद में योगी लगाएंगे पांचों प्रत्याशियों की नैय्या पार

उम्मीदवार कमजोर, मोदी और योगी के नाम पर जनता दे रही साथ

गाजियाबाद। जनपद गाजियाबाद में विधान सभा की सभी पांचों सीट पर भाजपा को पिछला प्रदर्शन दोहराने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगाना पड़ रहा है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले कुछ समय में जिस प्रकार से गाजियाबाद में सक्रियता दिखाई है, उससे यह साफ है कि भविष्य के खतर और प्रत्याशियों की कमजोरी को भाजपा भांप चुकी है। ऐसे में प्रत्याशियों की नैय्या पार लगाने के लिए खुद सीएम योगी आदित्यनाथ को मैदान में उतरना पड़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी के नाम और काम पर प्रत्याशियों को वोट मांगने पड़ रहे हैं। दरअसल किसी भी सीट पर इस समय पर भाजपा का कोई ऐसा प्रत्याशी नजर नहीं आ रहा है, जो अपने काम या छवि के दम पर जनता के बीच जाकर वोट मांग सके। अल्बत्ता प्रत्याशियों के खिलाफ नकरात्मक माहौल है और प्रत्याशियों की वजह से भाजपा के समर्थक वोट भी कट रहे हैं।

रही सही कसर बागियों ने पूरी कर दी है। बागी भी भाजपा प्रत्याशियों की नाव को डुबाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रही हैं। कुल मिलाकर हालात यह हैं कि सीएम योगी आदित्यनाथ का करिश्मा ही प्रत्याशियों और भाजपा के मजबूत गढ़ गाजियाबाद को बचा सकता है। योगी की बदौलत ही भाजपा गाजियाबाद की पांचों सीट पर पुन: परचम लहराने में कामयाब हो सकती है। ऐसा न होने पर जो परिणाम आएंगे, उसकी चर्चा दूर-दूर तक होना तय है। 2017 के विधान सभा चुनाव में भाजपा ने लोनी, मुरादनगर, गाजियाबाद शहर, साहिबाबाद और मोदीनगर सीट पर जीत दर्ज कर रिकॉर्ड कायम कर दिया था। माना जाता है कि 2017 में मोदी लहर के सहारे भाजपा प्रत्याशियों की नाव किनारे लग गई थी। वर्तमान में परिस्थितियां बिल्कुल अलग हैं। पांचों सीट पर भाजपा को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। मौजूदा हालात को ना सिर्फ संगठन बल्कि सीएम योगी आदित्यनाथ भी भांप चुके हैं। तभी वह गाजियाबाद में आए दिन अपना उपस्थिति दर्ज कराकर डैमेज कंट्रोल की कोशिश में जुटे हैं। साल 2020 में सीएम योगी आदित्यनाथ चार बार गाजियाबाद आ चुके हैं। जबकि पिछले साल भी उन्होंने समय-समय पर गाजियाबाद का रूख किया था। सीएम योगी ने इस वर्ष सबसे पहले 17 जनवरी को संतोष हॉस्पिटल का रूख किया था। संतोष हॉस्पिटल को कोविड मरीजों के लिए आरक्षित किया गया है। जहां व्यवस्थाओं का जायजा लेने के लिए सीएम पहुंचे थे।

हालाकि राजनीतिक गलियारों में चर्चा यह है कि भाजपा प्रत्याशी अतुल गर्ग को लेकर जनता में उपजे आक्रोश को ध्यान में रखकर सीएम ने कोविड संक्रमण से निपटने की व्यवस्थाओं के बहाने गाजियाबाद का दौरा किया था। चर्चा तो यहां तक हो रही है कि यदि बसपा के पूर्व विधायक सुरेश बंसल जीवित होते तो गाजियाबाद में अतुल गर्ग की पराजय निश्चित थी। दरअसल अतुल गर्ग मौजूदा विधायक होने के साथ-साथ स्वास्थ्य राज्य मंत्री भी हैं। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान उन्होंने जनता से जिस प्रकार की दूरी बनाई थी, उसे लेकर आज भी जनता में काफी गुस्सा है। पिछले साल 16 मई में भी सीएम योगी आदित्यनाथ ने गाजियाबाद आकर कोरोना संक्रमण से निपटने को लेकर की गई व्यवस्थाओं का जाजया लिया था। इस बीच 17 जनवरी के अलावा 23 जनवरी, 29 जनवरी और एक फरवरी को सीएम योगी का गाजियाबाद में आगमन हो चुका है। 23 जनवरी को उन्होंने चुनाव प्रचार के सिलसिले में पहले साहिबाबाद फिर गाजियाबाद विधान सभा क्षेत्र में कार्यक्रम में हिस्सा लिया था।

इस दौरान जनसंपर्क भी किया गया था। प्रभावी मतदाता संवाद कार्यक्रम में सीएम ने शिरकत की थी। इसके बाद 29 जनवरी को वह मुरादनगर और एक फरवरी को मोदीनगर पहुंचे थे। सीएम के बार-बार गाजियाबाद आगमन के पीछे बड़ी वजह प्रत्याशियों की कमजोर स्थिति है। गाजियाबाद, साहिबाबाद और लोनी सीट पर भाजपा प्रत्याशियों का विरोध खुलकर सामने आ चुका है। गाजियाबाद सीट से अतुल गर्ग को टिकट दिए जाने पर पर्चे तक वितरित हो गए थे। इसके अलावा इस सीट से भाजपा से बगावत कर 4 पदाधिकारी और कार्यकर्ता चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। साहिबाबाद सीट पर भी भाजपा प्रत्याशी सुनील शर्मा का विरोध सामने आ चुका है। उन्हें टिकट दिए जाने के विरोध में भाजपा के वरिष्ठ नेता सच्चिदानंद ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पर्चा दाखिल कर दिया था। बाद में खुद सीएम योगी आदित्यनाथ ने सच्चिदानंद को मना लिया था। दरअसल सच्चिदानंद भी उत्तराखंड से संबंध रखते हैं। इसके अलावा साहिबाबाद में वैश्य-अग्रवाल समाज और पूर्वांचल के प्रवासी मतदाता भी सुनील शर्मा को भाजपा से प्रत्याशी बनाए जाने से संतुष्ट नहीं हैं। सुनील शर्मा की स्थिति साहिबाबाद में मतदाताओं के बीच बेहद कमजोर मानी जा रही है। सुनील शर्मा पर यह आरोप भी लगे कि पूरे कार्यकाल के दौरान उन्होंने अपने चुनिंदा समर्थकों और चाहतों का विकास करने तक ही खुद को सिमटा कर रखा। विधायक होने के दौरान क्षेत्र की जनता से जो बेरुखी उन्होंने दिखाई वहीं बेरुखी जनता के मन में प्रत्याशी के प्रति अब है। उधर, लोनी सीट पर नंदकिशोर गुर्जर को पुन: टिकट मिलने पर भाजपा नेत्री एवं नगर पालिका चेयरमैन रंजीता धामा ने बगावत कर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में ताल ठोक रखी है। मुरादनगर और मोदीनगर में भले ही भाजपा के खिलाफ बगावत के सुर देखने को नहीं मिले हैं, मगर प्रत्याशियों को लेकर जनता की राय अच्छी नहीं हैं। इन सभी कारणों को ध्यान में रखकर सीएम योगी आदित्यनाथ का गाजियाबाद में दिलचस्पी दिखाना अह्म वजह माना जा रहा है। कुल मिलाकर सच्चाई यही है कि जनपद गाजियाबाद में भाजपा के पांचों प्रत्याशियों की नाव को किनारे लगाने की जिम्मेदारी सीएम पर है। गाजियाबाद के भाजपा प्रत्याशियों की छवि और उनके प्रति जनता में उपजे गुस्से की जानकारी भाजपा नेतृत्व को भी थी। इन प्रत्याशियों का टिकट कटना तय माना जा रहा था। लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य प्रकरण के बाद भाजपा नेतृत्व दबाव में आ गया और इन प्रत्याशियों का टिकट बच गया। टिकट तो मिल गया लेकिन क्षेत्र की जनता का गुस्सा और उग्र ही हुआ। भाजपा के लिए अच्छी बात यह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा गाजियाबाद में दम लगाए जाने का असर अब दिखने लगा है। जनता के मन में भाजपा प्रत्याशियों के प्रति गुस्सा और क्रोध तो बरकरार है लेकिन योगी के नाम पर वह अपने गुस्से को दबाकर भाजपा को वोट करने का फिर से मन बना रहे हैं।