देश के लिए चुनौती संभावित कोरोना की तीसरी लहर: प्रदीप गुप्ता

गाजियाबाद। कोरोना महामारी की दूसरी लहर का कहर झेल चुके देश के सामने तीसरी लहर का कहर मुँह बाए खड़ी है। ऐसे में सवाल ये उठता है कि तीसरी लहर आ रही है तो कब तक आएगी? और जब आएगी तो कितनी खतरनाक साबित होगी? बहरहाल देश में कोरोना के कम होते मामलों के बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों ने चिंता बढ़ा दी है। व्यापारी एकता समिति संस्थान राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रदीप गुप्ता ने कहा देश के 22 जिलों में कोरोना के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। इनमें 13 पूर्वोत्तर जबकि 7 केरल और 2 महाराष्ट्र के जिले हैं। ऐसे में सवाल ये भी उठ रहा है कि कहीं ये तीसरी लहर की दस्तक तो नहीं है? कऱीब 4 महीने पहले हुआ था जब 2 मार्च को कोविड 19 से एक भी मौत नहीं हुई थी। लेकिन ठीक एक महीने बाद यानी अप्रैल के पहले हफ़्ते में ही हाहाकार मच गया था। कमोबेश पिछले साल के मार्च जैसी स्थिति इस साल फिर से बनती दिख रही है। बाजारों और पहाड़ों में फिर से भीड़ बढऩे लगी है। लोग मास्क से दूरी बनाने लगे हैं। ऐसे में ये सवाल लाजिमी है कि कम होते एक्टिव केसों के बीच कही तीसरी लहर की आहट तो नहीं है। एक्सपर्ट्स की मानें तो तीसरी लहर आना कऱीब कऱीब तय है। हालाँकि कब इसके बारे में अलग अलग राय है। लेकिन इस वक्त सबसे बड़ा सवाल ये है कि सरकार ने दूसरी लहर की नाकामियों से क्या सबक लिया? दूसरी लहर का कहर खत्म होने के बाद पीएम कन्वेंशन सेंटर, रेलवे स्टेशन समेत अन्य विकास परियोजनाओं का लोकार्पण और उद्घाटन करते देखे गए। विपक्ष के विरोध के बावजूद सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट सेंट्रल विस्टा का काम लगातार जारी रहा। सरकार ने उसके लिए 20 हज़ार करोड़ से ज़्यादा का फंड भी आवंटित कर दिया है। लेकिन कोरोना के संभावित तीसरी लहर की दस्तक और दूसरी लहर की विफलता के बीच बेहतर ये होता कि सरकार अपने इस संसाधन का इस्तेमाल मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने में लगाती। उन्होने कहा दूसरी लहर के दौरान किस तरह से सरकारी सिस्टम फेल हुआ था ये पूरे देश ने देखा था। यही वजह है कि दूसरी लहर की नाकामी से बचने और अपनी इमेज को बचाने के लिए ससंद के मॉनसून सत्र की शुरुआत से पहले ही सरकार ने स्वास्थ्य मंत्री बदल दिया। डॉ हर्षवर्धन की जगह मनसुख मांडविया को ये जिम्मेदारी दे दी। लेकिन क्या स्वास्थ्य मंत्री बदलने भर से सरकार अपनी नाकामी पर पर्दा डालने में सफल हो पाएगी? क्या वो लोग उन्हें माफ कर पाएँगे जिन्होंने सिस्टम फेल होने के कारण अपनों को खो दिया था। कोरोना माहमारी की दूसरी लहर में आईएमए के अनुसार 700 से ज़्यादा डॉक्टरों की मौत हो गई। दूसरी लहर के दौरान सिस्टम पूरी तरह फेल होती दिखी। न लोगों को ऑक्सिजन मिल पाया, न ही दवाई, न अस्पताल में बेड और न ही वेंटिलेटर। मतलब सबकुछ भगवान भरोसे था। संसद का मॉनसून सत्र चल रहा है। बेहतर होगा कि सरकार देश के सामने दूसरी लहर की विफलता की जि़म्मेदारी लें और तीसरे लहर से निपटने को लेकर अपनी तैयारियों से देश की जनता को रूबरू कराएं।