अफगानिस्तान : सामने आया पाकिस्तान का असली चेहरा

अफगानिस्तान में हालात सुधरने की कोई गुंजाइश दिखाई नहीं दे रही है। बेखौफ तालिबान की आक्रामकता निरंतर बढ़ रही है। विभिन्न स्थानों पर सुरक्षा बलों और तालिबान लड़ाकों में सीधी जंग हो रही है। अफगानिस्तान की स्थिति पर भारत की पैनी नजर है। पड़ोस में गहराते संकट के बीच पाकिस्तान का असली चेहरा सामने आ गया है। वह खुलकर तालिबान के समर्थन में उतर आया है। इससे परिस्थितियां और ज्यादा जटिल होने की संभावना को बढ़ावा मिला है। पाकिस्तान वायु सेना ने अफगान सुरक्षा बलों को तालिबान के ठिकानों पर हमला न करने की नसीहत दी है। ऐसा होने पर जबावी कार्रवाई की चेतावनी दी गई है। पाक के इस रूख ने अफगान सरकार, सुरक्षा बलों और अवाम की चिंता और बढ़ा दी है। विदेशी दबाव से मुक्त होने के बाद तालिबान की मनमानी व अत्याचार और बढ़ गया है। इसका प्रतिकूल असर शांति और कानून व्यवस्था पर पड़ा है। आत्मविश्वास डगमाने से अफगान के सैनिक जगह-जगह हथियार डालकर जान बचाकर भागने को मजबूर हो रहे हैं। तालिबान के पक्ष में पाकिस्तान के सामने आने से समस्या और गहरा गई है। अफगानिस्तान के उप-राष्ट्रपति अमरुल्लाह साहेल ने ट्वीट कर पाकिस्तान की असलियत से दुनिया को अवगत कराया है। ट्वीट में अमरुल्लाह साहेल ने दावा किया है कि पाकिस्तान वायु सेना ने अफगान सुरक्षा बलों और वायुसेना को आधिकारिक चेतावनी दी है। चेतावनी में कहा गया है कि स्पिन बोल्डक क्षेत्र से तालिबान को हटाने के किसी भी कदम का हरसंभव विरोध किया जाएगा। इसके अलावा पाक वायु सेना तालिबान को कुछ स्थानों पर नजदीकी हवाई मदद उपलब्ध करा रही है। अफगानिस्तान के कंधार प्रांत में स्पिन बोल्डक क्षेत्र आता है। जहां सीमा चौकी पर तालिबान का कब्जा हो चुका है। इस सीमा चौकी पर तालिबान के लड़ाकों को 300 करोड़ रुपए भी मिले हैं। यह रकम अफगान सेना छोड़कर भाग गई थी। स्पिन बोल्डक, चमन तथा कंधार के मध्य महत्वपूर्ण मार्ग पर इस समय तालिबान काबिज है। वहां का कस्टम विभाग भी तालिबान के हाथ में आ चुका है। चमन बॉर्डर पर तालिबान का आधिपत्य होने के बावजूद पाकिस्तान ने इस रूट को बंद नहीं किया है। अफगान में दिन-प्रतिदिन बिगड़ते हालात के मद्देनजर राष्ट्रपति अशरफ गनी निराश और परेशान हैं। अमेरिका और रूस से गुहार लगाने के बाद भी उन्हें कोई लाभ नहीं मिल पाया है। तालिबान का एकमात्र मकसद काबुल की सत्ता पर कब्जा करना है। इसके लिए वह हरसंभव प्रयत्न कर रहा है। अफगानिस्तान से अमेरिका के पीछे हटने पर चीन, रूस और पाकिस्तान वहां अपना दखल बढ़ाने की जुगत में लग गए हैं। तालिबान ने कुछ दिन पहले आश्चर्यजनक तरीके से चीन को अपना दोस्त बता दिया था। चीन भविष्य में वहां निवेश की संभावनाएं ढूंढ़ रहा है। चीन और पाकिस्तान का उद्देश्य अफगानिस्तान से भारत को दूर रखना भी है। अफगान की स्थिति पर भारत पैनी निगाह रखे है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अफगानिस्तान पर भारत की सोच को साफ कर दिया है। विदेश मंत्री जयशंकर ने दो टूक कहा है कि वहां शांति स्थापित होना बेहद जरूरी है। हथियारों के बल पर सत्ता काबिज करने की नीति का भारत कभी समर्थन नहीं कर सकता है। भारतीय विदेश मंत्री ने राष्ट्रपति अशरफ गनी से मुलाकात भी की है। ऐसे में अफगानिस्तान के भीतर और आस-पास की स्थिति पर गहन चर्चा की गई। उन्होंने अफगानिस्तान में शांति, स्थिरता और विकास के प्रति समर्थन दोहराया। भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर ने अमेरिका के अफगानिस्तान में विशेष प्रतिनिधि जाल्मई खलीलजाद के साथ भी मुलाकात की है। इसके पहले भारत के कुछ प्रतिनिधि तालिबान के नेताओं से भी मिल चुके हैं। अमेरिका और नाटो सेना ने करीब 20 साल पहले अफगानिस्तान की सत्ता से तालिबान को बेदखल कर दिया था। इसके बाद वहां लोकतंत्र की स्थापना हो सकी थी। भारत ने हमेशा लोकतांत्रिक सरकार से मधुर रिश्ते बनाए रखे। इस दरम्यान तालिबान के साथ कभी कोई बातचीत नहीं की। भारत की तरफ से वहां लगभग 3 अरब डॉलर का निवेश तक किया गया। यह निवेश अब खतरे में पड़ गया है। तालिबान के प्रभुत्व को रोकने के लिए फिलहाल अफगान सेना संघर्षरत है। अफगान सरकार ने भारत से अब तक सैन्य सहायता की गुहार नहीं लगाई है। भविष्य में इसके लिए डिमांड संभव है। तालिबान के खिलाफ भारत सैन्य सहायता उपलब्ध कराएगा अथवा नहीं, यह अभी साफ नहीं है। अफगानिस्तान की मौजूदा हालत पर अमेरिका के एक पूर्व राष्ट्रपति अपनी चिंता जारहिर कर चुके हैं। उन्होंने बयान दिया है कि अमेरिका को इस क्षेत्र से हटने की भविष्य में भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। उन्होंने कहा है कि वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अफगान मामले में बड़ी गलती कर दी है। इसके इतर अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को बुलाने में जिस तरह की जल्दबाजी दिखाई है, उसे लेकर भी सवाल उठ चुके हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ने अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी के लिए 11 सितम्बर की डेडलाइन निर्धारित की थी, मगर अफगान के सबसे अह्म बरगाम हवाई अड्डे से पिछले दिनों अमेरिकी सैनिकों की यकायक रवानगी ने चर्चाओं को बल दिया। अफगान सेना को भरोसे में लिए बगैर अमेरिका ने अपने सैनिकों को वापस बुला लिया था। तालिबान के खिलाफ लड़ाई में बरगाम हवाई अड्डे ने अमेरिका का काफी साथ दिया था। बहरहाल अफगानिस्तान संकट जितने बढ़ेगा, आस-पास के देशों की चिंता भी उतनी अधिक बढ़नी तय हैं। प्रभावशाली देशों को अफगान में शांति बहाली की दिशा में ठोस रणनीति बनाकर काम करने की जरूरत है। चूंकि तालिबान को उभरने का मौका पुन: मिल गया तो यह कई देशों के लिए भविष्य में बड़ी मुसीबत लेकर आएगा। लिहाजा तालिबानी रूपी बीमारी का समय से इलाज करना लेना जरूरी है।