Congress – कपिल सिब्बल की बर्थ-डे पार्टी के मायने

Congress में सब-कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। गांधी परिवार और कुछ वरिष्ठ नेताओं के बीच संबंध संभवत: सामान्य नहीं हो पाए हैं। दोनों के मध्य बढ़ती दूरी की चर्चाओं को एक बार फिर बल मिल है। ताजा मसला वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल की बर्थ-डे पार्टी से जुड़ा है। सिब्बल ने विपक्षी नेताओं को अपने बर्थ-डे की पार्टी दी है। इस पार्टी में गांधी परिवार का कोई सदस्य नजर नहीं आया। ऐसे में चर्चाओं को बल मिलना स्वभाविक बात है।

सांसद राहुल गांधी इन दिनों श्रीनगर के दौरे पर हैं। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटने के बाद राहुल का यह पहला दौरा है। जबकि प्रियंका गांधी विदेश यात्रा पर हैं। राहुल और प्रिंयका के दिल्ली से बाहर होने के दरम्यान वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल द्वारा विपक्षी नेताओं के साथ अपनी बर्थ-डे पार्टी मनाना थोड़ा अजीब जरूर लगता है। सोनिया गांधी अस्वस्थ होने के कारण अधिक सक्रिय नहीं हैं। उन्होंने फिलहाल कार्यक्रमों से दूरी बना रखी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कपिल सिब्बल द्वारा आयोजित पार्टी में Congress की मौजूदा हालत पर चिंता जाहिर की गई।

Congress में बदलाव का मुद्दा फिर उठा है। कुछ नेताओं ने पार्टी की खराब हालत के लिए गांधी परिवार को कसूरवार माना है। इन नेताओं ने कहा कि गांधी परिवार द्वारा लीडरशिप छोड़े जाने के बाद Congress का कायाकल्प संभव है। कपिल सिब्बल की दावत में मेहमान के तौर पर विपक्षी दलों से राष्ट्रीय् जनता दल के मुखिया एवं पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव, शिवसेना सांसद संजय राउत, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन, नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्ला, डीएमके के त्रिरुचि शिवा, रालोद के जयंत चौधरी पहुंचे थे। कांग्रेस में लीडरशिप का मुद्दा लंबे समय से उठ रहा है।

लीडरशिप के लिए गांधी परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति का चयन करने की मांग तेजी से हो रही है, मगर गांधी परिवार इस बारे में खुलकर कुछ बोलने को तैयार नहीं है। 23 वरिष्ठ नेताओं ने पिछले साल सोनिया गांधी को पत्र लिखकर कांग्रेस में बड़े स्तर पर बदलाव की जरूरत पर जोर दिया था। इस पत्र से पार्टी में एकाएक भूचाल आ गया था। वायनाड सांसद राहुल गांधी ने कुछ वरिष्ठ नेताओं पर विवादित टिप्पणी तक कर दी थी। हालांकि बाद में डैमेज कंट्रोल कर लिया गया था, मगर लीडरशिप का मुद्दा हाशिए पर नहीं गया है। कई वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि Congress की बदहाली के लिए गांधी परिवार जिम्मेदार है। क्योंकि यह परिवार मनमाने तरीके से फैसले लेता है। संगठन को मजबूत करने की दिशा में प्रभावी कदम नहीं उठाए जा रहे।

गांधी परिवार की छत्र छाया से पार्टी को बाहर निकालने की जरूरत महसूस की जा रही है। राहुल गांधी के सहारे पार्टी को मजबूती नहीं मिल पा रही है। उलटा संगठन की हालत दिन-प्रतिदिन खराब हो रही है। गांधी परिवार के खिलाफ अब Congress के बाहर से भी आवाज उठने लगी हैं। सहयोगी दल भी कांग्रेस की बिगड़ती स्थिति से चिंतित हैं। तभी कपिल सिब्बल की पार्टी में अकाली दल के नेता नरेश गुजराल ने कहा कि गांधी परिवार के चंगुल से बाहर निकले बगैर Congress का मजबूत होना असंभव है। कृषि कानूनों के मुद्दे पर अकाली दल पिछले साल एनडीए से अलग हो गया था। कहने को कपिल सिब्बल ने अपने जन्मदिन के बहाने यह कार्यक्रम भाजपा सरकार के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने के मकसद से कराया था, मगर वहां माहौल गांधी परिवार के खिलाफ देखने को मिला।

विपक्षी दलों का भी मानना है कि भाजपा की रफ्तार पर ब्रेक लगाने को कांग्रेस का मजबूत होना जरूरी है। इसके लिए कांग्रेस को अच्छी लीडरशिप की आवश्यकता है। कुछ दिन पहले राहुल गांंधी ने अपने आवास पर विपक्षी दलों के नेताओं को आमंत्रित किया था। भाजपा के खिलाफ विपक्ष को संगठित करने की मंशा से राहुल ने यह कदम उठाया था, मगर उनकी दावत में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और आम आदमी पार्टी (आप) नहीं पहुंची थी। इसे लेकर भी तरह-तरह की चर्चाएं हुई थीं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में अगले साल विधान सभा चुनाव होने हैं। केंद्र सरकार की मंशा जम्मू-कश्मीर में भी विस चुनाव कराने की है। संबंधित राज्यों में विस चुनाव को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों ने तैयारियां तेज कर दी हैं, मगर कांग्रेस में आंतरिक जंग अभी तक जारी है।

पंजाब और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है। दोनों राज्यों में मुख्यमंत्रियों का पार्टी के कुछ नेताओं से मनमुटाव चल रहा है। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की हालत पतली है। Congress के कुछ नेताओं का मानना है कि संगठन में बड़े स्तर पर रद्दोबदल कर मायूस कार्यकर्ताओं को ऊर्जावान बनाया जा सकता है। लीडरशिप के मुद्दे पर फैसले का बार-बार टाला जाना उचित नहीं है। इससे संगठन की हालत में सुधार नहीं हो पा रहा। विभिन्न राज्यों में वरिष्ठ नेताओं से लेकर पुराने एवं कर्मठ कार्यकर्ताओं तक में मायूसी और असंतोष है। जब तक कार्यकर्ताओं में जोश पैदा नहीं किया जाएगा तब तक संगठन का उद्धार होना मुमकिन नहीं है।

भाजपा जहां बूथ स्तर पर संगठन की ताकत बढ़ाने का काम कर रही है, वहीं कांग्रेस में यह प्रक्रिया सिर्फ घोषणाओं तक सीमित नजर आती है। वक्त तेजी से गुजर रहा है। इसके बावजूद कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व सक्रिय नहीं है। इसके गंभीर परिणाम आगे भी भुगतने पड़ेंगे। अलबत्ता Congress को समय की नजाकत को देखकर संगठन में आमूल-चूल परिवर्तन कर लीडरशिप पर फाइनल निर्णय ले लेना चाहिए। कांग्रेस में लीडरशिप संभालने के लिए कई योग्य चेहरे हैं। जिन्हें नजरअंदाज और निराश कर पार्टी को आगे बढ़ाना कतई संभव नहीं है।