वायु प्रदूषण : दुनिया के अस्तित्व पर बड़ा खतरा

लेखक- राकेश कुमार भट्ट

(लेखक सामाजिक विश्लेषक है। डेढ दशक से प्रकृति, पर्यावरण और मानव संसाधन प्रबंधन क्षेत्र से जुड़े हुए है और कई शोध पत्र तैयार किया है। इन विषयों पर अक्सर लिखते रहते है। यह लेख उदय भूमि के लिए लिखा है)

प्रदूषण सभ्य दुनिया के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है, जिसका मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। जीव मंडल का आधार वायु है और जीवन का एक आवश्यक तत्व है। वायु में उपस्थित ऑक्सीजन पर ही जीवन निर्भर है। इसी से प्राणियों एवं जीव-जंतुओं को ऑक्सीजन प्राप्त होती है। इसी से वनस्पति को कार्बन-डाई-ऑक्साइड भी मिलती है, जिससे उसका पोषण होता है। प्राणी वायु मंडल से ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं और कार्बन-डाई-ऑक्साइड निष्कासित करते हैं, जिसे हरे पौधे ग्रहण कर लेते हैं और एक संतुलित चक्र चलता रहता है, मगर इस संतुलन में उस समय रूकावट आ जाती है जब उद्योगों, वाहनों एवं अन्य घरेलू उपयोग से निकलता धुआं एवं अन्य सूक्ष्म कण, विभिन्न प्रकार के रसायनों से उत्पन्न विषैली गैस, धूल कण, रेडियोधर्मी पदार्थ आदि वायु में प्रवेश कर स्वास्थ्य के साथ-साथ समस्त जीव-जगत के लिए हानि पैदा कर देते हैं।

वायु प्रदूषण प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दों में से एक है। विश्व स्वास्थ संगठन (डब्ल्यूएओ) के आंकड़ों के अनुसार हर साल लगभग 7 मिलियन लोगों की मौत वायु प्रदूषण की वजह से हो जाती है। वास्तव में वायु में उपस्थित गैसों पर बाहरी प्रभाव ही वायु प्रदूषण के लिए उत्तरदायी है। वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा धीरे-धीरे कम होती जा रही है। एक रिसर्च के अनुसार वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा पहले के मुकाबले घट गई है। स्वच्छ हवा एवं ऑक्सीजन की कमी के कारण असमय जीव-जंतुओं की मृत्यु हो रही है। इससे ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि कुछ प्रजातियां तो विलुप्त भी हो गई हैं।

वैसे तो वायु प्रदूषण की समस्या कोई नई नहीं है, क्योंकि अनेक प्राकृतिक कारणों जैसे ज्वालामुखी का विस्फोट, तेज हवाओं से मिट्टी कणों का वायु में मिलना या जंगल की आग से प्राचीन काल से वायु प्रदूषण होता आ रहा है। जब से मानव ने आग का प्रयोग प्रारंभ किया, तभी से प्रदूषण का प्रारंभ हो गया, पशु चारण से उडऩे वाली रेत, खनन या गंदगी से सूक्ष्म जीवाणुओं का वायु में फैल जाना प्राचीन काल से होता रहा है, मगर तब तक यह समस्या नहीं थी, क्योंकि जनसंख्या सीमित थी, जरूरतें कम थीं, ईंधन का उपयोग बहुत कम किया जाता था, प्राकृतिक वनों का पर्याप्त विस्तार था, जिसके कारण प्रदूषित पदार्थ पर्यावरण से अपने-आप ही नष्ट हो जाते थे, उनसे किसी प्रकार की हानि नहीं होती थी, क्योंकि वायुमंडलीय प्रक्रिया में स्वत: ही शुद्ध एवं संतुलित होने की अपूर्व क्षमता होती है। किंतु आज की औद्योगिक, वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति ने इस गणित को गलत कर दिया है,

क्योंकि मानव तीव्र गति से वायु मंडल में अपशिष्ट पदार्थ विस्तारित करने लगा है, जो वायु प्रदूषण का मूल कारण है। किसी भी रूप में प्रदूषण, चाहे वह हवा हो या पानी, स्वास्थ्य के लिए एक पर्यावरणीय जोखिम है, डब्ल्यूएचओ के वैश्विक वायु प्रदूषण डेटाबेस के अनुसार दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित 15 में से 14 शहर भारत के हैं, जिसे हवा में रसायनिक, जैविक या भौतिक प्रदूषकों के मापन से पहचाना जा सकता है। कई प्रदूषक हैं जो मनुष्यों में बीमारी के प्रमुख कारक हैं, उनमें से पार्टिकुलेटमैटर (पीएम), सांस के माध्यम से श्वसन प्रणाली में प्रवेश करते हैं, जिससे श्वसन और हृदय रोग, प्रजनन और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की शिथिलता और कैंसर होता है। बीमारियों में मुख्य रूप से श्वसन संबंधी समस्याएं जैसे क्रॉनिकऑब्सट्रक्टिवपल्मोनरीडिजीज (सीओपीडी), अस्थमा, ब्रोंकियोलाइटिस और फेफड़ों का कैंसर, हृदय संबंधी घटनाएं, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की शिथिलता और त्वचा रोग शामिल हैं। सभी तरह के प्रदूषण पर्यावरण से जुड़े हुए हैं, जो ओज़ोन परत को हानि पहुंचा कर सूर्य की हानिकारक किरणों को पृथ्वी पर आमंत्रित करते हैं। वायु प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए दैनिक आधार पर क्रिया-कलापों में बड़े स्तर पर परिवर्तन लाने होंगे। प्रभावी प्रदूषण नियामक नीतियों के अभाव में भारत में 2015 में 1.1 मिलियन मौतें हो रही हैं। भारत के विभिन्न हिस्सों में वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार छह प्रमुख वायु प्रदूषकों में ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और लेड शामिल हैं। कई रिपोर्ट ने खराब वायु गुणवत्ता के संपर्क में आने और रुग्णता तथा मृत्यु दर की बढ़ती दर के बीच सीधा संबंध प्रकट किया है, जो ज्यादातर हृदय और श्वसन रोगों के कारण होता है। वायु प्रदूषण को अस्थमा, फेफड़े के कैंसर, वेंट्रिकुलरहाइपरट्रॉफी, अल्जाइमर और पार्किंसंस रोग, मनोवैज्ञानिक जटिलताओं, ऑटिज्म, रेटिनोपैथी, भ्रूण की वृद्धि और जन्म के समय कम वजन जैसी कुछ बीमारियों की घटनाओं और प्रगति में प्रमुख पर्यावरणीय जोखिम कारक माना जाता है।

वायु प्रदूषण की वजह से लोगों को मानसिक समस्याएं जैसे चक्कर आना, मेमोरी कमजोर होना, दिल की बीमारी, फेफड़ों की बीमारी, कैंसर, किडनी की बीमारी, प्रेग्नेंट महिला और उसके होने वाले बच्चे की जान को खतरा होना, अस्थमा, जीने की औसतन उम्र को कम करना, ब्लड कैंसर इत्यादि हो सकती हैं। वायु प्रदूषण कई कारणों से हो सकता है, जिनमे से प्रमुख कारण लकड़ी को जलाना, गाडिय़ों से निकलने वाला धुआं, उद्योगों से निकलने वाला धुआं, खराब फसलों को जलाना, प्लास्टिक या पत्तों इत्यादि को जलाना, जंगलों में लगी आग का धुंआ इत्यादि। विकसित देशों की तुलना में भारत में वाहनों की संख्या कम है, किंतु वायु प्रदूषण कम नहीं, क्योंकि यहां के वाहनों के इंजन का रख-रखाव ठीक नहीं होता और वाहन स्वामी उनसे होने वाले पर्यावरण प्रदूषण के प्रति उदासीन हैं। जहां कोयले को जला कर ताप ऊर्जा प्राप्त की जाती है, वहां वायु प्रदूषण का खतरा अधिक हो जाता है क्योंकि इस प्रक्रिया में अत्यधिक कोयला जलाया जाता है।

फलस्वरूप प्रदूषण फैलाने वाली गैसें जैसे सल्फर-डाई-ऑक्साइड, कार्बन के ऑक्साइड तो वायुमंडल में फैलती ही हैं, इसके अतिरिक्त कोयले की राख एवं कार्बन के सूक्ष्म कण इसके चारों ओर के वायु मंडल में फैल जाते हैं। वायु प्रदूषण के लिए जहां एक ओर परिवहन उत्तरदायी है तो दूसरी ओर उद्योग। वास्तविक रूप से वायु प्रदूषण औद्योगिक क्रांति की देन है। उद्योगों में एक ओर दहन क्रिया होती है तो दूसरी ओर विविध पदार्थों का धुआं जो औद्योगिक चिमनियों से निकल कर वायु मंडल में विलीन हो जाता है, जिसका परिणाम वायु प्रदूषण होता है। उद्योगों के कारण लॉस एंजिल्स शहर पर सदैव धुएं का बादल छाया रहता है। जापान में जब वायु प्रदूषण अधिक होता है तो बच्चों को स्कूल जाते समय मुंह पर जाली पहना दी जाती है।

भारत में यद्यपि उद्योगों द्वारा वायु प्रदूषण औद्योगिक देशों की तुलना में कम है, किंतु कुछ नगरों में जहां पर्याप्त उद्योग हैं, इसका स्तर स्वास्थ्य को खतरा पैदा कर रहा है। वर्तमान समय में कृषि की प्रक्रिया से भी वायु प्रदूषण होने लगा है। यह प्रदूषण कीटनाशक दवाओं के अत्यधिक प्रयोग से हो रहा है। कृषि में विभिन्न प्रकार की बीमारियों को रोकने के लिए विषैली दवाओं का छिड़काव किया जाता है, अनेक प्रकार के पेंट, स्प्रे, पॉलिश आदि करने के लिए जिन विलायकों का प्रयोग किया जाता है वे हवा में फैल जाते हैं क्योंकि इनमें हाइड्रो कार्बन पदार्थ होते हैं और वायु को प्रदूषित कर देते हैं।
परमाणु शक्ति का प्रयोग जहां एक ओर असीम शक्ति प्राप्त करने के लिए किया जा रहा है, वहीं तनिक-सी असावधानी न केवल वायु प्रदूषण अपितु मौत का कारण बन जाती है। हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए बमों से वहां का वायुमंडल इतना अधिक प्रदूषित हुआ कि उसके कतिपय अवशेष अभी भी देखे जा सकते हैं।

वायु प्रदूषण पर नियंत्रण पाना है, तो अधिक से अधिक मात्रा में पेड़-पौधे लगाने चाहिए। आज पूरी दुनिया जनसंख्या वृद्धि की समस्या से जूझ रही है। अगर हम जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण कर लेते हैं, तो वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की भी कमी होगी और कम उद्योग धंधे लगाने की आवश्यकता होगी। जिससे प्रदूषण की मात्रा में कमी आएगी। हमें उन कल-कारखानों को बंद कर देना चाहिए, जिनसे अधिक मात्रा में प्रदूषण होता है, जिससे वायुमंडल कम से कम प्रभावित हो। ऊर्जा के लिए नए स्रोत खोजने चाहिए। कोयले और परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल कम करना चाहिए। सौर ऊर्जा का इस्तेमाल अधिक मात्रा में करना चाहिए जिसके कारण वायु प्रदूषण भी नहीं होगा और ऊर्जा भी पूरी मिल जाएगी। भारत में जब भी कोई निर्माण होता है, तो वह खुले में होता है, जिसके कारण चारों तरफ धूल-मिट्टी उड़ती रहती है और पूरा वातावरण प्रदूषित हो जाता है।

जब भी निर्माण कार्य करें तो उसे किसी कपड़े से ढक कर करना चाहिए, जिससे वायु प्रदूषण नहीं हो। अगर वायु प्रदूषण को कम करना है तो अधिक मात्रा में सार्वजनिक वाहनों का उपयोग करना होगा। वायु प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए सरकार को नए नियम बनाने चाहिए और प्रदूषण नियंत्रण संबंधी प्रमाण पत्र की अनिवार्यता की जानी चाहिए। साथ ही वायु प्रदूषण कानून (1981) को लागू करने में सख्ती दिखानी चाहिए। किसी भी प्रकार के प्रदूषण पर यदि नियंत्रण पाना है तो लोगों को प्रदूषण के बारे में पता होना चाहिए।

प्रदूषण के बारे में लोगों को सचेत करना चाहिए और स्कूलों में प्रदूषण के बारे में पाठ्यक्रम होना चाहिए, जिससे बचपन से ही बच्चों को पता हो की किस काम को करने से प्रदूषण फैलता है। वास्तव में मानव ने उद्योग, परिवहन, ऊर्जा आदि के क्षेत्रों में जो प्रगति की है, उसका प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभाव वायु प्रदूषण के रूप में हो रहा है। यह संकट आज संपूर्ण विश्व पर गहराता जा रहा है। एक शोध के अनुसार अगर इसी तेजी से वायु प्रदूषण बढ़ता रहा तो सन 2050 तक पृथ्वी का वातावरण 4 से 5 डिग्री तक बढ़ जाएगा। जबकि अगर पृथ्वी का तापमान 2 से 3त्न भी बढ़ता है, तो पृथ्वी के हिम ग्लेशियर पिघल जाएंगे, जिससे भयंकर बाढ़ आ सकती है और पूरी पृथ्वी नष्ट हो सकती है।