किसानों की आवाज न दबाए सरकार

लेखक : श्याम कुमार मित्तल
रिटायर्ड राजस्व अधिकारी
उद्यमी एवं समाजसेवी
(लेखक रिटायर्ड राजस्व अधिकारी हैं। सामाजिक एवं धार्मिक कार्यों से जुड़े रहते हैं। यह लेख उदय भूमि में प्रकाशन के लिए लिखा है।)
नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलनरत किसानों की आवाज को दबाया नहीं जाना चाहिए। कृषि कानूनों के खिलाफ किसान काफी समय से आंदोलनरत हैं, मगर सरकार उनकी मांगों की अनदेखी कर ठीक नहीं कर रही है। जिस चीज से किसानों का फायदा नहीं होगा, उसे जबरन थोपना गलत है। देश के अन्नदाता के प्रति सरकार का रवैया अच्छा नहीं है। भारत को अमेरिका बनाने की गलती सरकार को भारी पड़ सकती है। एक बार किसानों के मसीहा चौ. चरण सिंह ने पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू को भारतीय खेती-किसानी और कृषकों की हालत के विषय में जमीनी जानकारी से अवगत कराया था। चरण सिंह ने कहा था कि भारत को अमेरिका बनाने की कोशिश न की जाए। चूंकि भारत में यदि किसी किसान की जरा सी भूमि कब्जा ली जाती है तो मर्डर तक हो जाता हैं। आज केंद्र सरकार गलत फैसले कर किसानों को प्रताडि़त कर रही है। गन्ना किसानों की हालत आज भी अच्छी नहीं है। चीनी मिल मालिकों को सरकार 14 हजार करोड़ रुपए का भुगतान कर देती है। जबकि यह राशि सीधे किसानों के बैंक खातों में भेजी जानी चाहिए। चूंकि मिल मालिक पहले अपने खर्चंे पूरा करेंगे। बाद में वह किसानों को बकाया राशि का भुगतान करेंगे। जो कानून किसानों के हित में नहीं हैं, उन्हें जबरन लागू नहीं करना चाहिए। 7-8 साल पहले तक अडानी सिर्फ ऑयल का छोटा-मोटा कारोबार करते थे। आज वह अंबानी के बाद देश के दूसरे सफल कारोबारी बन गए हैं। किसानों के धरने-प्रदर्शन के दौरान देश की तरक्की दिखाई देती है। पिछले सत्तर साल में देश का काफी विकास हुआ है। सिर्फ कुछ वर्षों में विकास की गंगा नहीं बही है। आंदोलनकारी किसानों को आज देशद्रोही और आतंकवादी कहा जा रहा है। यह सरासर गलत है। इससे किसानों का अपमान हो रहा है। सरकार को किसानों की बात को ध्यान से सुनकर समस्या का समाधान करना चाहिए। सत्ता का दुरूपयोग कर अन्नदाता की आवाज को दबाना ठीक नहीं है। इसके घातक परिणाम सामने आ सकते हैं।