यूपी विधान सभा चुनाव : कांटे की टक्कर, हर दिन बदल रहा चुनावी परिदृश्य

उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव की सरगर्मी जोरों पर है। सभी राजनीतिक दल सत्ता में आने के लिए खूब जोर-आजमाइश कर रहे हैं। यूपी की सियासत में दिन-प्रतिदिन नए बदलाव देखने को मिल रहे हैं। सत्तासीन भाजपा के अलावा समाजवादी पार्टी (सपा), कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी (बसपा), आम आदमी पार्टी (आप), राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) इत्यादि सभी दल पूरी ताकत के साथ चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। वैसे देखा जाए तो मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा के बीच देखने को मिल रहा है, मगर जनता के मूड का कुछ पता नहीं है। भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर रावण ने विभिन्न राजनीतिक दलों की चिंता बढ़ा रखी है।

कभी सपा, कभी बसपा तो कभी कांग्रेस से गठबंधन की चर्चाओं के बीच चंद्रशेखर रावण ने अब अपने पत्ते खोल दिए हैं। रावण ने अपने दम पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। चंद्रशेखर के विधान सभा चुनाव में सक्रिय होने से खासकर सपा-बसपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है। उन्होंने बसपा से तालमेल करने करने की भरपूर कोशिश की, मगर बसपा में बात नहीं बन पाई। सपा मुखिया एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने चंद्रशेखर की मांगों को गंभीरता से नहीं लिया। इसके बाद उन्होंने सपा पर गंभीर आरोप भी मढ़ दिए थे। रावण ने सपा पर दलित विरोध मानसिकता अपनाने का आरोप लगाया। कांग्रेस के साथ भी वह तालमेल बैठाने में कामयाब नहीं हो पाए।

भाजपा के धुर विरोधी चंद्रशेखर रावण अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ गोरखपुर से चुनाव लड़ने के संकेत दे रहे हैं। चंद्रशेखर का कहना है कि पार्टी उन्हें जो जिम्मेदारी सौंपेगी उसे वह बखूवी निभाएंगे। चंद्रशेखर रावण द्वारा अकेले चुनाव मैदान में उतने की घोषणा करने से सपा मुखिया एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले को जोरदार झटका लगा है। भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर रावण ने पहले ही साफ कर दिया था कि वह भाजपा को हराने के लिए किसी भी दल के साथ गठबंधन कर सकते हैं। इसके चलते उन्होंने सपा मुखिया एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात की थी। उत्तर प्रदेश में करीब 22 प्रतिशत दलित आबादी रहती है।

ये समुदाय पश्चिमी यूपी की कई सीटों पर सीधा अपना प्रभाव रखता है। चंद्रशेखर भी पश्चिमी यूपी के सहारनपुर से आते हैं। चंद्रशेखर रावण का उभार पिछले दो-तीन साल में दलित नेता के तौर पर हुआ है। उनके साथ दलित युवाओं की अच्छी खासी भीड़ भी देखी जा सकती है। भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर रावण ने एक कार्यक्रम में खुद को दलित नेता कहे जाने पर भी आपत्ति जाहिर की थी। उन्होंने कहा था कि वह दलितों के नहीं बल्कि हर गरीब के नेता हैं। उन्होंने कहा था कि हमें नेता नहीं कहें, क्योंकि नेता तो धोखा देते हैं। बकौल चंद्रशेखर चुनावों से पहले बड़े-बड़े ऐलान किए जाते हैं, मगर चुनाव के बाद बताते हैं कि वह तो एक जुमला था।

अलबत्ता चंद्रशेखर रावण की सपा के साथ दूरियां बढ़ने और अकेले चुनाव लड़ने से भाजपा को फायदा मिलने मिलने की उम्मीद है। यूपी विधान सभा चुनाव में बसपा की सक्रियता बेहद कम हैं। ऐसे में दलित वोट बैंक को साधने की सपा की रणनीति पर प्रतिकूल असर पड़ना तय है। सपा मुखिया अखिलेश यादव आत्मविश्वास से लवरेज नजर आ रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि अति आत्मविश्वास हमेशा नुकसान देता। सपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए भाजपा भी कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ निरंतर दौरे पर हैं। गाजियाबाद के बाद वह नोएडा जाने की तैयारी में हैं। एक समय ऐसा था जब कोई मुख्यमंत्री गौतमबुद्ध नगर की जमीन पर कदम तक रखने से परहेज करता था, मगर सीएम योगी ने इस मिथक को न सिर्फ तोड़ा बल्कि कई कई बार गौतमबुद्ध नगर का भ्रमण कर चुके हैं। भाजपा में भी असंतुष्टों की कोई कमी नहीं है, मगर उन्हें मनाने के लिए हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं।

यूपी में हैदराबाद के सांसद ओवैसी भी अपनी पकड़ बनाने को उतावले हैं। ओवैसी निरंतर यूपी के अलग-अलग क्षेत्रों में दौरान कर खासकर मुस्लिम मतदाताओं को अपने समर्थन में एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं। ओवैसी का टारगेट मुस्लिम मतों के जरिए विरोधियों को नुकसान पहुंचाने का है। इन्हीं सबके बीच चुनावी एग्जिट पोल भी आ गए हैं। कमोबेश सभी एग्जिट पोल ने भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार आने का दावा किया है, मगर एग्जिट पोल धरातल को हूबहू बयां नहीं करते हैं। सच्चाई कई बार एक्जिट पोल के नतीजों के विपरित भी आई है। सपा मुखिया एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की ताकत को नकारा नहीं जा सकता है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के विराट आभामंडल और भाजपा का चुनावी गणित हर प्रतिद्वंदी का खेल बिगाड़ने का मादा रखता है। यूपी में अगले 5 साल तक कौन राज करेगा, इसका फैसला 10 मार्च को हो जाएगा। फिलहाल चुनावी माहौल बेहद गरम है।