देश की खुशहाली के लिए जनसंख्या नियंत्रण जरूरी

लेखक-केके शर्मा
(लेखक समाजसेवी है। सोशल चौकीदार संस्था के माध्यम से भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चला रहे हैं। विभिन्न सम सामायिक मुद्दो पर बेबाकी से राय रखते हैं।)

देश में बढ़ती आबादी आज बेहद चिंता का विषय है। जनसंख्या वृद्धि के कारण अनेक ज्चलंत समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। जनसंख्या के हिसाब से संसाधनों की कमी उत्पन्न होना स्वभाविक बात है। ऐसे में जनसंख्या नियंत्रण कानून की जरूरत महसूस की जा रही है। पिछले कुछ साल में देश के कोने-कोने से जनसंख्या नियंत्रण कानून के लिए आवाज उठी है। मोदी सरकार ने भी इस ज्वलंत मुद्दे को उठाया है। देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी जनसंख्या वृद्धि पर अपना मत पेश कर चुके हैं। दरअसल यह ऐसा मुद्दा है, जिस पर सभी को मिलकर काम करने की आवश्यकता है। जनसंख्या नियंत्रण के लिए सभी राजनीतिक दल, जाति, मजहब व संप्रदाय की राजनीति से आगे बढ़कर राष्ट्रहित तथा समाज हित में जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाने में मदद करें। कानून बनाकर जनसंख्या नियंत्रित करने से देश की जनता को प्रदूषण, खराब सेहत, बेरोजगारी, अशिक्षा के अलावा अन्य तमाम समस्याओं से छुटकारा मिल सकेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की कमी और अज्ञानता के कारण तथा शहरों में गंदी बस्तियों के नागरिकों में शिक्षा की अभाव में जनसंख्या नियंत्रण का कोई भी कार्यक्रम सफल नहीं हो पा रहा है। नागरिकों में शिक्षा का प्रसार कर जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण पाना संभव है। पर्यावरण की दृष्टि से भी जनसंख्या वृद्धि हानिकारक है। बढ़ती जरूरतों के कारण प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन हो रहा है। जिसके नतीजे विनाशकारी साबित हो रहे हैं।

जनसंख्या वृद्धि को जल-प्रदूषण, वायु प्रदूषण एवं मृदा प्रदूषण के लिए भी जिम्मेदार माना जा रहा है। भारत दुनिया का दूसरा ऐसा देश है, जहां पर सबसे ज्यादा आबादी रहती है। भारत के पास दुनिया की सिर्फ 2.30 प्रतिशत भूमि है, मगर यहां पर दुनिया की सत्रह प्रतिशत आबादी गुजर-बसर करती है। बढ़ती आबादी की वजह से संसाधन घटते जा रहे हैं। देश में जो भी विकास कार्य कराए जा रहे हैं, बढ़ती आबादी के कारण वह कम पड़ जाते है। ऐसे में देश के विकास के लिए जनसंख्या को नियंत्रित करना बेहद जरूरी हो गया है। उधर, एक वर्ग ऐसा भी है, जो बढ़ती आबादी को बोझ मानने की बजाए वरदान मानता है। इस वर्ग का तर्क है कि हमारे पास जो मानव संसाधन हैं, उसे कुशल संसाधन में बदलने की जरूरत है, न कि उन्हें नष्ट करने की जरूरत है।

जब हम परिवार नियोजन एवं जनसंख्या स्थिरीकरण की बात करते हैं तो हमें ध्यान में रखना होगा कि जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम सफलतापूर्वक आगे बढ़े, मगर जनसांख्यिकी असंतुलन की स्थिति भी उत्पन्न न होने पाए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि जनसंख्या वृद्धि की गति या किसी समुदाय का प्रतिशत अधिक हो और हम मूल नागरिकों की आबादी को स्थिर करने के लिए जागरूकता या प्रवर्तन के जरिए कार्य कर रहे हों।। इसका धार्मिक जनसांख्यिकी पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और वहां अराजकता और अव्यवस्था शुरू हो जाती है। इसलिए जब हम जनसंख्या स्थिरीकरण के बारे में बात करते हैं तो यह सभी के लिए और जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र के ऊपर एक समान होना चाहिए। उत्तर प्रदेश देश में सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य है। जहां वर्तमान आबादी 24 करोड़ से अधिक है। निकट भविष्य में यह 25 करोड़ का आंकड़ा पार कर सकती है। पिछले पांच साल से देशभर में जनसंख्या स्थिरीकरण को लेकर व्यापक जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।

एक निश्चित पैमाने पर जनसंख्या समाज की उपलब्धि भी है, मगर यह उपलब्धि तभी है, जब समाज स्वस्थ व आरोग्यता की स्थिति को प्राप्त कर सके। यदि हमारे पास कुशल श्रम शक्ति है तो यह समाज के लिए एक उपलब्धि है, मगर जहां बीमारी, अव्यवस्था, पर्याप्त संसाधनों का अभाव हो, वहां जनसंख्या विस्फोट अपने आप में एक चुनौती भी होता है। यूपी में आशा कर्मचारी, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत समिति सहित अन्य प्रतिनिधिग एवं शिक्षक स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम को और बेहतर तरीके से आगे बढ़ा सकते हैं। इस दिशा में सामूहिक प्रयास करने की जरूरत है। अलबत्ता देश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए प्रभावी कदम उठाए जाने की जरूरत है। यह समय की मांग है। जनसंख्या नियंत्रण कानून को यदि कोई समुदाय अपने खिलाफ देखता है तो यह सोच अच्छी नहीं है। देश के समुचित विकास एवं खुशहाली के लिए जनसंख्या को नियंत्रण करना होगा।