गाजियाबाद के पार्षद पर हाईकोर्ट ने लगाया जुर्माना, खुद आरोपी लेकिन निगम अधिकारियों पर लगा दिया झूठा आरोप

उदय भूमि ब्यूरो
गाजियाबाद। उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की कहावत गाजियाबाद नगर निगम में चरितार्थ हो रही है। पार्षद ने झूठे मामले में नगर निगम अधिकारियों के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की। जिसे सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया और इस मामले में तथ्य छिपाने सहित अन्य आरोपों को देखते हुए पार्षद पर 10 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है। पार्षद के खिलाफ हाईकोर्ट की यह कार्रवाई ऐसे लोगों के लिए एक नसीहत है जो झूठी शिकायतें करते हैं और झूठे तथ्यों के आधार पर अधिकारियों पर दबाव बनाने की कोशिश करते हैं।
मामला गाजियाबाद नगर निगम के वार्ड 28 की पार्षद विभा देवी से जुड़ा है। पार्षद ने आरोप लगाया था कि नगर निगम के अधिकारी सरकारी जमीन पर कब्जा करवा रहे हैं। इसके विपरीत निगम अधिकारियों ने जांच में पाया कि अवैध कब्जा करवाने में पार्षद पति का ही हाथ है। निगम अधिकारियों पर दबाव बनाने के उद्देश्य पार्षद ने अतिक्रमण से संबंधित मुकदमा तथ्यों को छिपाकर कोर्ट में दायर किया। सुनवाई के दौरान जब हाईकोर्ट के समक्ष सच्चाई को रखा गया तो कोर्ट ने इस पर कड़ी नाराजगी जताई। हाईकोर्ट ने कहा कि जिस भूखंड के बारे में हाईकोर्ट का फैसला आ चुका था, उसी मामले में तथ्यों को छुपाते हुए दोबारा जनहित याचिका दायर किया जाना बेहद गलत है। ऐसे मामलों को लेकर कोर्ट सख्त है। पार्षद को जल्द जुर्माना जमा करना होगा, ऐसा नहीं करने पर रिकवरी के आदेश के तहत जुर्माने की रकम की वसूली की जाएगी।
वार्ड 28 की पार्षद विभा देवी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में गाजियाबाद नगर निगम के वार्ड 28 में एक जमीन पर अतिक्रमण के संबंध में जांच कराए जाने को लेकर याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट में पार्षद द्वारा दायर वाद के मुताबिक जो प्लॉट नगर निगम का है। उस पर विभिन्न व्यक्तियों द्वारा अवैध रूप से कब्जा कर लिया गया है। पार्षद ने कोर्ट में यह बात रखी कि मामला अधिकारियों के संज्ञान में लाए जाने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान नगर निगम के अधिवक्ता ने निगम का पक्ष रखते हुए कहा कि याचिकाकर्ता और एक अन्य व्यक्ति ने इसी शिकायत के साथ 2020 में जनहित याचिका दाखिल कर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। पार्षद ने जिन जमीनों पर अतिक्रमण का आरोप लगाया था। निगम के अधिवक्ता ने अदालत में बताया कि खसरा नंबर 1398 और 1314 के वही प्लॉट हैं, जिनके बारे में फैसला 7 दिसंबर 2020 को हुआ था। हाई कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को पुराने आदेश और धारा 67 के तहत कार्यवाही के लंबित होने के बारे में पूरी जानकारी थी, फिर भी याचिकाकर्ता ने इन तथ्यों का खुलासा नहीं किया। इसलिए याचिकाकर्ता पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए याचिका को खारिज किया जाता है।
याचिकाकर्ता नगर निगम पार्षद द्वारा दो सप्ताह के भीतर डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण के पक्ष में ड्राफ्ट को जमा करेंगे। अगर जुर्माने की राशि जमा नहीं की गई तो तो कोर्ट वसूली की कार्रवाई करेगा।