गाजियाबाद। जिन बच्चों को पालने के लिए माता-पिता खुद भूखे रहे हों। उनकी शिक्षा-दीक्षा के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देते हो, वही बच्चे जब बड़े होकर बुजुर्गो की उम्मीद पर पानी फेर दें तो बुढ़ापे में उनके सामने कुछ नहीं बचता। परिवार की इज्जत बचाने के के लिए कुछ बुजुर्ग तो सब कुछ सहन करते हुए घर में ही यह उत्पीड़न बर्दाश्त करते रहते हैं, लेकिन कुछ बुजुर्ग अपना अलग रास्ता भी चुन लेते हैं। अपने बच्चों से तिरस्कृत तथा बेसहारा बुजुर्गों के लिए दुहाई स्थित आवासीय वृद्धा आश्रम में श्री राम वेद सेवा संस्थान (एसआरवीएसएस) के पदाधिकारियों ने मंगलवार को निराश्रित बुजुर्गों को भोजन कराकर अपने संस्थान की शुरुआत की।
इस समय इस वृद्धाश्रम में करीब 95 बुजुर्ग रह रहे हैं, जिनमें से अधिकतर ऐसे हैं, जिनको उनके बच्चों ने तिरस्कृत किया तो वे सह नहीं पाए और यहां चले आए या फिर कोई अपनी स्वेच्छा से इन लोगों के बीच अपना जीवन जी जा रहा है। संस्था के सदस्य आशीष गौतम ने कहा लोग धर्म के नाम पर कई प्रकार के कर्म कांडों और संस्कारों का पालन करते हैं। जैसे लंबी-लंबी तीर्थ यात्राएं करना, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों और गिरजाघरों के नाम पर दान करना या यज्ञ आदि का आयोजन करना। परंतु ऐसे लोग यह नहीं सोचते कि वास्तव में धर्म क्या है? क्या उनके वही कार्य ईश्वर को प्रसन्न करते हैं? हम प्राय: दूसरों का ध्यान आकर्षित करने के लिए अपने धार्मिक कार्यों का प्रदर्शन करते हैं, जबकि सच यह है कि मानव की सेवा ही पुण्य का काम है।
सभी धर्म हमें यही शिक्षा देते हैं। पुण्य तभी प्राप्त होंगे, जब हम जरूरतमंदों की सहायता करेंगे। इसी तरह आगे भी संस्था द्वारा सामाजिक कार्यों में आगे बढ़कर योगदान किया जाता रहेगा। वहीं संस्था की सदस्य तनूजा ने कहा व्यापार में जो महत्व पूंजी का होता है, परिवार में वही महत्व बुजुर्ग का होता है, लेकिन संयुक्त परिवार की जगह एकल परिवार का चलन बच्चों को बुजुर्गों से दूर करता जा रहा है। जीवन का विशद अनुभव होने के बावजूद कोई उनकी राह न तो लेना चाह रहा है और न ही उनकी राय को महत्व देता है। समाज में अपनी अहमियत न समझे जाने के कारण बुजुर्ग दु:खी, उपेक्षित जीवन जीने को मजबूर हैं।
आज की युवा तथा उच्च शिक्षा प्राप्त पीढ़ी उन्हें बूढ़ा कहकर वृद्धाश्रम में छोड़ देती है। वे भूल जाते हैं कि अनुभव का कोई दूसरा विकल्प दुनिया में है ही नहीं। समझना होगा कि बुजुर्ग बोझ नहीं, आशीर्वाद हैं। अपनी संस्था की शुरुआत के लिए इस पुनित कार्य से कोई और दूसरा विकल्प नहीं है। भविष्य में भी संस्था द्वारा इसी तरह के कार्य किए जाते रहेंगे। हमारा प्रयास है कि इस तरह के कार्य अगर होते रहें तो समाज में कोई भी व्यक्ति भूखा नहीं रहेगा और इससे अच्छी सेवा कोई और नहीं हो सकती है।