बढ़ई फर्जी एनकाउंटर: बेगुनाह के खून से सनी खाकी 16 साल बाद मिला इंसाफ

-सीबीआई कोर्ट ने 5 पुलिसकर्मियों को उम्रकैद, 4 पुलिसकर्मियों को सुनाई 5-5 साल कैद की सजा, लगाया जुर्माना
-एक भी मुकदमा दर्ज नही फिर भी बना दिया डकैती

गाजियाबाद। बढ़ई फर्जी एनकाउंटर मामले में आखिरकार मृतक की पत्नी को 16 साल बाद इंसाफ मिल ही गया। बढ़ई फर्जी एनकाउंटर मामले में सीबीआई कोर्ट ने बुधवार को 5 पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा और चार पुलिसकर्मियों को 5-5 साल की सजा सुनाई है। साथ ही आरोपी पुलिसकर्मियों पर जुर्माना भी लगाया है। उम्रकैद वालों पर 33-33 और 5-5 साल की सजा काटने वालों पर 11-11 हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया। फैसला करीब 16 साल बाद आया है। इसके बाद सभी दोषियों को न्यायिक हिरासत में लेकर जेल भेज दिया गया। इन्होंने वर्ष 2006 में राजाराम बढ़ई की हत्या कर दी थी। जिसके बाद राजाराम की पत्नी ने इस मामले हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। जिसके बाद मामला सीबीआई कोर्ट में चला गया और सीबीआई कोर्ट के जज ने सभी को आरोपी करार देते हुए आजीवन कैद की सजा हुई है। इसके अलावा सभी पर 33-33 हजार रुपए का जुर्माना लगाया है।

सीबीआइ के विशेष लोक अभियोजक अनुराग मोदी ने बताया कि तत्कालीन एसओ सिढपुरा पवन सिंह, तत्कालीन उपनिरीक्षक श्रीपाल ठेनुआ, तीन कांस्टेबल सरनाम सिंह, राजेंद्र प्रसाद, मोहकम सिंह को विशेष न्यायाधीश परवेंद्र कुमार शर्मा की अदालत ने हत्या व साक्ष्य मिटाने के आरोप में दोषी करार दिया। कोर्ट ने इन पांचों को अपहरण के आरोप से दोष मुक्त किया, जबकि चार कांस्टेबल बलदेव प्रसाद, अवधेश रावत, अजय कुमार, सुमेर सिंह को साक्ष्य मिटाने का दोषी करार दिया। एक आरोपित तत्कालीन उपनिरीक्षक अजंट सिंह की मुकदमे के विचारण के दौरान मृत्यु हो गई थी। इसीलिए उसकी फाइल बंद कर दी गई थी। दोषी करार देने के साथ ही अदालत ने सभी की जमानत निरस्त करते हुए जेल भेजने के आदेश दिए।

वर्ष 2006 में एटा जिले के सिढपुरा गांव निवासी राजाराम बढ़ई की हत्या हो गई थी। पुलिसकर्मियों ने बताया था कि राजाराम ने एक डकैती डाली है। पुलिस जब राजाराम को पकडऩे गई तो उसने पुलिस पर जानलेवा हमला करना शुरू कर दिया। इसी दौरान एनकाउंटर में राजाराम की मौत हो गई। इस एनकाउंटर में 10 पुलिसकर्मी शामिल थे। सीबीआइ के लोक अभियोजक ने बताया कि एटा के सिढपुरा थानाक्षेत्र के सुनेहरा गांव का रहने वाला राजाराम बढ़ई का काम करता था। 18 अगस्त 2006 को सिढपुरा थानाक्षेत्र में पुलिस ने डकैत बताकर उसकी फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी थी। मुठभेड़ में उपरोक्त 10 पुलिसकर्मी शामिल थे। इनमें से तत्कालीन एसओ पवन सिंह सेवानिवृत्त हो चुके हैं जबकि बाकी अन्य उत्तर प्रदेश में अलग-अलग जनपद में तैनात हैं।

फर्जी मुठभेड़ में पति राजाराम की हत्या के बाद उनकी पत्नी संतोष कुमारी ने स्थानीय पुलिस-प्रशासन से लेकर शासन तक गुहार लगाई, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। इसके बाद उन्होंने फर्जी मुठभेड़ की सीबीआइ जांच की मांग करते हुए हाई कोर्ट में अर्जी दायर की। राजाराम के खिलाफ एक भी मुकदमा दर्ज नहीं था। इसी आधार पर एक जून 2007 को हाई कोर्ट ने सीबीआइ को मामला स्थानांतरित करने के आदेश दिए। टीम ने पता लगाया कि राजाराम किस किस्म का व्यक्ति था और उस पर कितने मुकदमे दर्ज थे। हाईकोर्ट की टीम को पता चला कि राजाराम पर एक भी मुकदमा दर्ज नहीं था। उसका स्वभाव अच्छा था। जिसके बाद आगे की जांच हाईकोर्ट ने सीबीआई कोर्ट को दे दी। हाई कोर्ट के आदेश पर एक जून 2007 को सीबीआइ ने एफआइआर दर्ज कर जांच शुरू की। करीब ढाई साल तक जांच के बाद सीबीआइ ने 22 दिसंबर 2009 को अदालत में आरोप पत्र पेश किया। इसमें सीबीआइ ने उपरोक्त सभी 10 पुलिसकर्मियों को अपहरण, हत्या व साक्ष्य मिटाने का आरोपित बनाया था।

पेशे फर्नीचर कारीगर था राजाराम
राजाराम पेशे से बढ़ई (फर्नीचर कारीगर) था। वो पुलिसवालों के घर भी काम करता था। एनकाउंटर में मारने के बाद पुलिसवालों ने उसकी लाश अज्ञात में दिखाई। अच्छे ढंग से जान-पहचान के बावजूद कागजातों में उसका नाम लिखना उचित नहीं समझा। राजाराम पर एक भी केस दर्ज नहीं था, लेकिन पुलिस ने उसको डकैत बताकर मार दिया था।

पूछताछ के बहाने रास्ते से उठाया
मृतक राजाराम की पत्नी संतोष कुमारी के अनुसार 18 अगस्त 2006 को बहन राजेश्वरी की तबीयत खराब हो गई थी। पूरा परिवार राजेश्वरी को लेकर गांव पहलोई में डॉक्टर के पास जा रहा था। दोपहर के तीन बजे पहलोई और ताईपुर गांव के बीच ईंट भ_े के पास सिढ़पुरा थाने के थानाध्यक्ष पवन सिंह, सब इंस्पेक्टर श्रीपाल ठेनुआ, अजंत सिंह, कॉन्स्टेबल सरनाम सिंह, राजेंद्र कुमार आदि अपनी जीप से पहुंचे। पूरे परिवार को रोक लिया। इसके बाद वे परिवार की आंखों के सामने राजाराम को अपनी जीप में डालकर ले गए। जब पूरा परिवार सिढ़पुरा थाने पर पहुंचे तो पुलिसकर्मियों ने कहा कि राजाराम से एक केस के सिलसिले में पूछताछ करनी है। अगली सुबह उसे छोड़ दिया जाएगा। अगली सुबह जब राजाराम की पत्नी संतोष कुमारी फिर से थाने पर गई तो पुलिस ने बताया कि उसको पहले ही यहां से घर भेजा जा चुका है। जबकि राजाराम घर नहीं पहुंचा था। 20 अगस्त 2006 को संतोष कुमारी को जानकारी हुई कि गांव सिढ़पुरा के पास पुलिस ने एक एनकाउंटर किया है। अखबारों में मृतक की जो तस्वीर छपी, वो राजाराम की थी।
23 अगस्त को संतोष कुमारी ने फर्जी एनकाउंटर का आरोप लगाते हुए 5 बार शिकायत पुलिस से की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। एटा के स्स्क्क को कोरियर से शिकायती पत्र भेजा, लेकिन उन्होंने भी अनसुना कर दिया। इसके बाद संतोष कुमारी ने हाईकोर्ट की शरण ली।

दोषी पुलिसकर्मियों के नाम
पवन सिंह, तत्कालीन एसओ थाना सिढ़पुरा। मूल निवासी गांव बदेहरी, थाना छपार (मुजफ्फरनगर)
श्रीपाल ठेनुआ तत्कालीन सब इंस्पेक्टर। मूल निवासी गांव बदेहरी, थाना छपार (मुजफ्फरनगर)
सरनाम सिंह, तत्कालीन कांस्टेबल। मूल निवासी करुणामयी नगरिया, थाना बेवर (मैनपुरी)
राजेंद्र प्रसाद, तत्कालीन कांस्टेबल। मूल निवासी गांव डिनौली, थाना टूंडला (फिरोजाबाद)
मोहकम सिंह, तत्कालीन जीप ड्राइवर। मूल निवासी गांव नंगला डला, करहल (मैनपुरी)
बलदेव प्रसाद, तत्कालीन कांस्टेबल। मूल निवासी गांव कस्बा हरपालपुर (हरदोई)
अवधेश रावत, तत्कालीन कांस्टेबल। मूल निवासी गांव नंगला तेजा, थाना रूवेन (आगरा)
अजय कुमार, तत्कालीन कांस्टेबल। मूल निवासी गांव धीप, थाना घिरौर (मैनपुरी)
सुमेर सिंह, तत्कालीन कांस्टेबल। मूल निवासी गांव नंगला तेजा, थाना रूवेन (आगरा)।