Jammu and Kashmir : देशद्रोही और पत्थरबाजों की टूटेगी कमर

Jammu and Kashmir की खुशहाली के लिए केंद्र सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है। वहां अमन-चैन को कायम रखना सबसे बड़ी चुनौती रहती है। सुरक्षा बलों को बेहद विषम परिस्थितियों में काम करना पड़ता है। सुरक्षा जवानों पर हमेशा खतरा मंडराता रहता है। आतंकवादी जब-तब अपनी नापाक मंशा को अंजाम देने की फिराक में रहते हैं। पिछले कुछ साल में माहौल सुधारने में काफी कामयाबी मिली है।

इसी कड़ी में Jammu and Kashmir में देशद्रोहियों और पत्थरबाजों से निपटने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। इसके तहत देशविरोधी गतिविधियों और पत्थरबाजी में लिप्त नागरिकों को भविष्य में सरकारी नौकरी नहीं मिल पाएगी। ना उन्हें पासपोर्ट नसीब हो सकेगा। यानी अराजक तत्वों का विदेश जाने का सपना कभी पूरा नहीं होगा। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस संबंध में सरकारी सर्कुलर जारी कर दिया गया है। वर्तमान में Jammu and Kashmir केंद्र शासित राज्य हैं। वहां सभी जरूरी कार्य सरकार की निगरानी में कराए जा रहे हैं। मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा-370 के ज्यादातर प्राविधान समाप्त कर दिए थे। इसके बाद जम्मू-कश्मीर के अलावा लद्दाख को भी केंद्र शासित राज्य घोषित कर दिया गया था। दरअसल कश्मीर के चक्कर में लद्दाख का समुचित विकास नहीं हो पा रहा था। लंबे समय तक इस पहाड़ी क्षेत्र की राजनीतिक उपेक्षा होती रही थी।

केंद्र शासित राज्य बनने के बाद लद्दाख में भी बदलाव की बयार देखने को मिल रही है। कुछ साल पहले तक Jammu and Kashmir की तस्वीर आज से अलहदा थी। खासकर घाटी में आतंकवाद चरम पर था। आए दिन पत्थरबाजी होने से शांति एवं कानून व्यवस्था प्रभावित होती थी। विभिन्न अलगाववादी संगठनों के आह्वान पर भ्रमित युवाओं का दल समय-समय पर सड़कों पर उतर कर उत्पात मचाता फिरता था। उपद्रव मचाकर सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया जाता था। इससे कश्मीर में विकास कार्यों, कारोबार और पर्यटन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा था। कुछ अलगाववादी संगठनों के कलेंडर के हिसाब से घाटी में काम-धंधे होते थे। केंद्र सरकार और सुरक्षा बलों के खिलाफ यह संगठन भोले-भाले युवाओं को उकसा कर माहौल खराब कराते थे।

धारा-370 हटने के बाद से Jammu and Kashmir के हालात में तेजी से सुधार आया है। पत्थरबाजी की परंपरा पूरी तरह समाप्त हो चुकी है। पत्थरबाजी के पीछे की साजिश को नेस्तनाबूद कर दिया गया है। युवाओं को सुरक्षा बलों पर पथराव करने की एवज में निर्धारित राशि का भुगतान किया जाता है। पत्थरबाजों के कई हुक्मरान लंबे समय से अलग-अलग जेल में बंद पड़े हैं। Jammu and Kashmir में माहौल खराब कराने के लिए अब पहले की तरह बाहर से धन का इंतजाम होने की परिपाटी भी रूक गई है। अलगाववादी संगठनों को विदेशों तक से पैसा मिलने की जानकारी सामने आई थी। इसके अतिरिक्त सुरक्षा बलों को कार्रवाई के लिए पहले से ज्यादा छूट मिल चुकी है। उपद्रवियों और आतंकियों को मुंहतोड़ जबाव देने के लिए सुरक्षा बल अब ठोस कार्रवाई कर सकते हैं।

Jammu and Kashmir में हाल-फिलहाल में कुछ सरकारी कर्मचारियों पर भी सख्त कार्रवाई की गई है। युवाओं को गलत रास्ते पर ले जाने के लिए प्रेरित करने पर इन कर्मचारियों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। जांच एजेंसियों ने इन कर्मचारियों के खिलाफ अह्म साक्ष्य जुटाए थे। ऐसे में देशद्रोहियों और पत्थरबाजों की अक्ल दुरूस्त करने को उठाए गए ताजा कदम भविष्य में असरदार साबित होंगे। घाटी में देशविरोधी गतिविधि में संलिप्त होने से पहले युवाओं को सौ बार सोचना पड़ेगा। यदि कोई सड़कों पर पत्थरबाजी करता है तो उसकी तस्दीक आसानी से कर ली जाएगी। बाद में उस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए जाएंगे।

अफगानिस्तान में बदले हालात को ध्यान में रखकर केंद्र सरकार अब Jammu and Kashmir की तरफ ज्यादा ध्यान दे रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ समय पहले वहां के 8 राजनीतिक दलों के 14 प्रतिनिधियों को नई दिल्ली आमंत्रित किया था। इन प्रतिनिधियों के साथ ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा की गई थी। केंद्र शासित इस राज्य में अगले साल विधान सभा चुनाव कराने की तैयारी चल रही है। जम्मू-कश्मीर में अमन-चैन को बहाल करने में काफी हद तक सफलता मिल चुकी है। हालाकि अफगानिस्तान में तालिबान राज लौटने की बढ़ती संभावनाओं ने भारत सरकार की चिंता बढ़ा दी है। दरअसल अफगानिस्तान में चीन और पाकिस्तान ने तालिबान के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने में दिलचस्पी दिखाई है।

आशंका है कि भविष्य में चीन-पाकिस्तान के इशारे पर तालिबान के लड़ाके Jammu and Kashmir का रूख कर सकते हैं। इससे वहां शांति व्यवस्था को पुन: बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा। ऐसे में भारत ने अभी से जरूरी तैयारियों को तेज कर दिया है। लद्दाख क्षेत्र में चीन के साथ सीमा विवाद अभी बरकरार है। इन आशंकाओं से इंकार नहीं किया जा रहा है कि निकट भविष्य में Jammu and Kashmir में पाकिस्तान और लद्दाख क्षेत्र में चीन कोई न कोई गड़बड़ी कर सकता है। अलबत्ता आने वाली चुनौतियों से निपटने को तैयार रहने की जरूरत है। वहां के राजनीतिक दलों से किसी प्रकार का सहयोग मिलने की कोई उम्मीद नहीं है। चूंकि घाटी के कई नेता समय-समय पर पाकिस्तान की भाषा बोलते नजर आते हैं।

Jammu and Kashmir के आम नागरिकों को यह जानना चाहिए कि उनका हित भारत में सबसे ज्यादा सुरक्षित है। राजनेताओं और अलगावादी संगठनों की बातों में आकर वह खुद का नुकसान न करें। नागरिकों को सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में सहयोग करना चाहिए। वह ऐसा कोई काम न करें, जिससे इस राज्य की छवि को नुकसान पहुंचे। जम्मू-कश्मीर के विकास और अमन-चैन को बरकरार रखने में नागरिकों को मददगार की भूमिका निभानी चाहिए ताकि उनका भविष्य भी सुनहरा बन सके। इस राज्य की प्रगति एवं माहौल में सुधार लाने को केंद्र सरकार को अपनी मुहिम जारी रखनी चाहिए।