गीता जयंती पर ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री ने स्वामी वास आचार्य को भेंट किया स्मृति चिन्ह

-गीता पर शोध की आवश्यकता नहीं, यह तो अपने आप में शोधित है: स्वामी वास आचार्य

नई दिल्ली। गोल मार्किट गीता भवन बिरला मंदिर परिसर में गीता जयंती पर दिल्ली में सात्विकम वेलफेयर फाउंडेशन द्वारा व्याख्यान सत्संग का आयोजन किया गया। अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री तरुण मिश्रा ने सात्विकम वेलफेयर फाउंडेशन के अंतरराष्ट्रीय योगा महोत्सव में इस्कॉन मंदिर अमेरिका से जुड़े स्वामी वास आचार्य को वास्को फाउंडेशन की ओर से गीता जयंती पर बधाई देते हुए स्मृति चिन्ह भेंट किया। स्वामी वास आचार्य ने राष्ट्रीय महामंत्री तरुण मिश्रा को पटका पहनाकर उनका स्वागत किया।
स्वामी वास आचार्य ने गीता जयंती पर प्रकाश डालते हुए बताया कि गीता पर शोध की आवश्यकता नहीं, यह तो अपने आप में शोधित है। इसमें व्याप्त ज्ञान और विषयों के शोध करने ही आवश्यकता है। भगवान ने अर्जुन को माध्यम बनाकर उपदेशों के जरिये इसमेंं लोगों के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया है। व्यक्ति स्वार्थ व मोह से दूर रहे तो उसका कल्याण निश्चित है। स्वार्थ से युक्त होकर कार्य कर्ता है उसका कल्याण नहीं हो सकता।

पशुपतिनाथ एरिया विकास ट्रस्ट नेपाल के सदस्य अर्जुन प्रसाद बस्तोला ने बताया गीता को आमतौर एक ग्रंथ माना जाता है, लेकिन गीता एक मानव दर्शन है। प्रत्येक मनुष्य को गीता के उपदेशों का अनुपालन करना चाहिए। जिससे उसका जीवन सफल हो। गीता भगवान कृष्ण की प्राणियों पर कृपा है। गीता के मर्म को समझने की आवश्यकता है। गीता सत्य, असत्य का ज्ञान कराने वाली है। इंसान तो हमेशा नशे में सोया रहता है। गीता जगाने वाली है। हम संसार के कार्यों का संकल्प करते हैं, लेकिन अच्छा कार्य करने का संकल्प कम ही लेते हैं, जो ले लेते हैं वे ईश्वर के कृपा पात्र बन जाते हैं। जीवन को श्रेष्ठ कार्यों में लगाओ। युवा पीढ़ी अपनी शिक्षा-दीक्षा से लाभान्वित होकर समाज के प्रति ऋणी है और अपने जीवन में श्रीमद् भगवद्गीता के उपदेशों को आत्मसात करने के लिए संकल्पित है। श्रीमद् भगवद् गीता से ही प्रेरणा लेकर भारत के युवा विश्व के अनेक देशों में अपनी प्रतिभा का परचम लहरा रहे हैं।

अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री तरुण मिश्रा ने कहा भारतीय संस्कृति का अनुपम ग्रन्थ है श्रीमद्भगवत्गीता। जीवन जीने की शैली व धार्मिक प्रेरणा का स्रोत है। गीता का उपदेश मात्र अर्जुन के लिए नहीं था बल्कि यह समस्त जगत के लिए था, अगर कोई व्यक्ति गीता में दिए गए उपदेश को अपने जीवन में अपनाता है तो वह कभी किसी से परास्त नहीं हो सकता है। गीता माहात्म्य में उपनिषदों को गाय और गीता को उसका दूध कहा गया है। इसका अर्थ है कि उपनिषदों की जो अध्यात्म विद्या है, उसको गीता सर्वांश में स्वीकार करती है। उन्होंने कहा भारतीय संस्कृति की आध्यात्मिकता का आधार ईश्वरीय विश्वास होता है। हमारी दृष्टि में भगवान ही इस संसार के रचयिता एवं निर्माता हैं। वही संसार का कारण, पालक और संहारकर्ता हैं। त्याग और तपस्या भारतीय संस्कृति के प्राण हैं। कार्यक्रम में हाथरस से गोपेश्वर चैतन्य महाराज, कुरुक्षेत्र से स्वामी ऋषिपाल महाराज एवं हरिद्वार से आचार्य रामानुजदास महाराज, राष्ट्रीय महामंत्री (संगठन) बिशन कुमार कौशिक, सात्विकम वेलफेयर फाउंडेशन अध्यक्ष अजय कुमार मिश्रा एवं अन्य गणमान्य अतिथि मौजूद रहे।