जम्मू-कश्मीर के बाहर पांव पसारता आतंकवाद

जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों की मुस्तैदी और बहादुरी के कारण आतंवादियों की दाल नहीं गल पा रही है। मंसूबों पर बार-बार पानी फिरने से वह बौखलाहट में हैं। सरहद पार बैठे आकाओं के हुक्म की तामिली के चक्कर के आतंकियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ रहा है। केंद्र सरकार ने आतंकवाद पर मजबूत तरीके से प्रहार करने को सुरक्षा बलों को फ्री हैंड दे रखा है। इससे आतंकियों की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ गई हैं। ऐसे में आतंक के आकाओं ने संभवत: रणनीति में बदलाव किया है। अब जम्मू-कश्मीर के बाहर देश के विभिन्न हिस्सों में आतंकियों की पौध को तैयार करने की खतरनाक साजिश रची जा रहा है। इसका प्रमाण उत्तर प्रदेश में मिल चुका है। यूपी की राजधानी लखनऊ से अलकायदा के 2 सदस्यों की गिरफ्तारी बेहद अह्म कार्रवाई है। इससे मालूम पड़ता है कि आतंक संगठन भारत के अलग-अलग राज्यों में अपनी जड़ें फैलाने की कोशिश में जुटे हैं। जम्मू-कश्मीर में मुख्य रूप से लश्कर, जैश-ए-मोहम्मद और अलकायदा जैसे कुख्यात आतंकी संगठनों का जाल फैला है। लंबे समय से इन संगठनों के सदस्य अशांति फैला रहे हैं। घाटी में सक्रिय आतंकियों को खासकर पाकिस्तान में बैठे आकाओं से दिशा-निर्देश मिलते हैं। पिछले 7 साल से घाटी में आतंकियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई चल रही है। आतंकवाद के खिलाफ मोदी सरकार का रूख साफ है। सुरक्षा बलों के आक्रामक रूख ने आतंकियों की कमर तोड़कर रख दी है। स्थानीय स्तर पर उन्हें पूर्व की भांति मदद नहीं मिल पा रही है। सुरक्षा बलों को निशाना बनाने के लिए आतंकी हमेशा मौके की तलाश में रहते हैं। काफी समय से उद्देश्य में नाकाम होने की वजह से आतंकी संगठनों ने अपने टारगेट की दिशा को बदलना शुरू कर दिया है। उत्तर प्रदेश में एटीएस द्वारा गिरफ्तार 2 आतंकियों से सघन पूछताछ के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने जांच का दायरा बढ़ाया है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब और पश्चिम बंगाल में ताबड़-तोड़ छापेमारी चल रही है। आतंकियों के हैंडलर पाकिस्तान और बांग्लादेश में होने की बात भी सामने आई है। अलकायदा सबसे खतरनाक आतंकी संगठनों में से एक है। कुख्यात आतंकी ओसामा बिन लादेन कभी इस संगठन का मुखिया था। लादेन के इशारे पर 2001 में अमेरिका पर भीषण आतंकी हमला किया गया था। उस हमले में 3 हजार से अधिक निर्दोष नागरिकों को जान गंवानी पड़ी थी। बाद में अलकायदा और ओसामा बिन लादेन का खात्मा करने को अमेरिका ने अफगानिस्तान का रूख किया था। जहां वह करीब 20 साल तक संघर्ष करता रहा। ओसामा को मौत के घाट उतराने के कई साल बाद अमेरिका अब अफगानिस्तान को छोड़ रहा है। बेशक लादेन का अंत हो चुका है, मगर अलकायदा का नेटवर्क अभी भी कई देशों में फैला है। अलबत्ता भारत में अलकायदा के सदस्यों की गिरफ्तारी कोई छोटा मामला नहीं है। दिल्ली, यूपी, पंजाब और पश्चिम बंगाल में पहले भी आतंकियों की गिरफ्तारी हो चुकी है। काबिलेगौर बात यह भी है कि यूपी एटीएस ने हाल-फिलहाल में 2 बड़ी कार्रवाई की है। इसके पहले इस जांच एजेंसी ने धर्म परिवर्तन से जुड़े गिरोह का खुलासा किया था। इस गिरोह के कुछ सदस्यों को गिरफ्तार कर कई चौकाने वाले खुलासे किए गए थे। देश की राजधानी दिल्ली से धर्म परिवर्तन का खेल रहा था। पकड़े गए आरोपियों से पूछताछ में पता चला था कि वह एक हजार से ज्यादा नागरिकों का धर्म परिवर्तन करा चुके हैं। जिनमें ज्यादातार हिंदू समाज के नागरिक थे। जिन्हें पैसों का लालच देकर अथवा बरगला कर हिंदू से मुस्लिम धर्म में लाया गया था। इस खेल के तार भी पाकिस्तान से जुड़े मिले थे। पाकिस्तान की बदनाम सुरक्षा एजेंसी आईएसआई द्वारा इस गिरोह को फंडिंग की जा रही थी। अमेरिका ने अफगानिस्तान में हस्तक्षेप कम करने के लिए जो शर्तें रखी थीं, उनमें एक शर्त अलकायदा से जुड़ी हुई है। तालिबान से अमेरिका को भरोसा दिलाया है कि वह अफगानिस्तान में अलकायदा को पनपने नहीं देगा। हालाकि वहां आज भी अलकायदा की मौजूदगी है। अमेरिकी सैनिकों की स्वदेश वापसी के बाद तालिबान जिस आक्रामकता के साथ अफगानिस्तान को अपने कब्जे में लेने की मुहिम में जुटा है, उसमें अलकायदा भी मददगार की भूमिका निभा रहा है। अलकायदा के कई टॉप कमांडर पाकिस्तान में भी पनाह लिए बैठे हैं। जम्मू-कश्मीर में बढ़ती शांति को देखकर पाकिस्तान भी परेशान हैं। ऐसे में वह भारत के अलग-अलग हिस्सों में आतंकियों को सक्रिय कर माहौल खराब कराने के प्रयास कर रहा है। अफगानिस्तान में तालिबान का प्रभुत्व बढ़ने से भारत की चिंताएं पहले से बढ़ी हुई हैं। मौजूदा परिस्थितियों को देखकर ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। सुरक्षा एजेंसियों को 24 घंटे सतर्क रहकर आतंकियों के नेटवर्क की गहनता से पड़ताल करनी होगी। अलकायदा के पकड़े गए सदस्यों से पूछताछ के आधार पर उनके सभी सहयोगियों को जल्द से जल्द सलाखों के पीछे डालने की आवश्यकता है। इस मुहिम में किसी प्रकार की चूक भविष्य में भारी पड़ सकती है। केंद्र एवं राज्य सरकारों को आतंकवाद से निपटने के लिए संयुक्त रणनीति बनानी चाहिए। समय-समय पर इस मुद्दे पर केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच विमर्श किया जाना चाहिए। सुरक्षा एजेंसियों के संसाधन एवं सुविधाओं में किसी प्रकार की कमी न आने दी जाए। यदि आतंकी संगठन जम्मू-कश्मीर के बाहर अपना नेटवर्क बढ़ाने में कामयाब हो गए तो यह बड़ी मुश्किलें पैदा करेगा। आतंकवाद को जड़ से समाप्त करने की रणनीति पर आगे बढ़ना होगा तभी सार्थक परिणाम मिल सकेंगे। सुरक्षा एजेंसियों में तालमेल बढ़ाना भी अति आवश्यक है। यूपी एटीएस यदि समय रहते यह कार्रवाई न करती तो आतंकी अपने मंसूबों में कामयाब हो सकते थे। आतंकियों की मंशा सीरियल बम ब्लास्ट कर देश को कमजोर करने की थी। देश के विभिन्न राज्य पहले भी आतंकवाद का भयावह स्वरूप देख चुके हैं। संसद परिसर में अटैक और मुंबई आतंकी हमलों को याद कर आज भी रूह कांप जाती है। आतंकवाद के खिलाफ नागरिकों को भी जागरूक करने की जरूरत है।