Congress को बसपा और आप का झटका ये कैसी घेराबंदी ?

विजय मिश्रा (उदय भूमि ब्यूरो)

नई दिल्ली।
मानसून के मौसम में दिल्ली का सियासी तापमान निरंतर बढ़ रहा है। मोदी सरकार को घेरने के लिए विपक्ष कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहा। मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष को लामबंद करने के मकसद से Congress के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी सक्रिय भूमिका में हैं। वह अति उत्साह और उतावलापन दिखा रहे हैं। इस बीच राहुल गांधी को जोर का झटका लगा है। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और आम आदमी पार्टी (आप) ने उन्हें निराश कर दिया है। राहुल के बुलावे के बावजूद बसपा और आप नेताओं ने विपक्ष की महत्वपूर्ण मीटिंग से किनारा कर लिया। इन दोनों दलों का Congress को एकाएक झटका देना सियासी गलियारों में चर्चाओं के केंद्र में है।

कांग्रेस की कमजोर स्थिति और गिरती साख किसी से छुपी नहीं है। गलत नीतियों एवं मुद्दों के कारण यह दल अक्सर उपहास का कारण बनता है। Congress के पूर्व अध्यक्ष एवं वायनाड सांसद राहुल गांधी की लोकप्रियता और साख में भी गिरावट आई है। इसके चलते विपक्ष उन्हें ज्यादा गंभीरता से नहीं लेता। पेगासस जासूसी प्रकरण पर संसद में चर्चा कराने और सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग पर विपक्ष अड़ा है। इसके चलते संसद की कार्रवाई को बार-बार बाधित किया जा रहा है। संसद के मानसून सत्र का अधिकांश वक्त बगैर चर्चा के गुजर चुका है।

संसद के दोनों सदनों में सरकार और विपक्ष के बीच तनातनी चल रही है। ऐसे में मोदी सरकार की घेराबंदी के लिए विपक्ष नए-नए कदम उठा रहा है। इस सिलसिले में राहुल गांधी ने 17 विपक्षी दलों को न्यौता भेजकर नाश्ते पर बुलाया था। इस दौरान तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), राष्ट्रवादी कांग्रेस (एनसीपी), शिवसेना, डीएमके, सीपीआई (एम), सीपीआई, आरजेडी, समाजवादी पार्टी (सपा), झारखंड मुक्ति मोर्चा, जम्मू कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस, आईयूएमएल, आरएसपी, केसीएम और लोकतांत्रिक जनता दल के नेता पहुंचे। हालाकि बसपा और आप नेताओं ने बैठक में जाने से परहेज किया। इससे खासकर राहुल गांधी की टेंशन बढ़ी है।

बसपा और आप नेता राहुल के आमंत्रण पर बैठक में क्यूं शामिल नहीं हुए, इसे लेकर अभी कोई सटीक जानकारी सामने नहीं आई है। वैसे राहुल गांधी के साथ-साथ सोनिया गांधी की चिंता भी बढ़ना स्वभाविक है। देश में भाजपा के उभार के बाद से Congress की हालत पतली होती चली गई है। पहले 2014 और फिर 2019 के आम चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था। आम चुनाव में 2 बार शिकस्त मिलने के बावजूद Congress ने अपनी खामियों पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा है।

Congress अध्यक्ष सोनिया गांधी पहले की भांति सक्रिय राजनीति में नहीं हैं। सोनिया ने राहुल गांधी को आगे बढ़ाने की भरपूर कोशिश की, मगर कोई सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया है। कांग्रेस की दुदर्शा के लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी को ज्यादा जिम्मेदार माना जा रहा है। वर्तमान में Congress को मजबूत नेतृत्व की जरूरत है। कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान किसी पुराने, कर्मठ एवं वरिष्ठ नेता को सौंपने की मांग लगातार उठ रही है। काफी समय पहले असंतुष्ट नेताओं ने मोर्चा भी खोला था। गांधी परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को Congress की कमान दिए जाने की जरूरत महसूस की गई थी। ऐसा नहीं कि पार्टी में कर्मठ एवं योग्य नेताओं की कमी है बल्कि उन्हें आगे आने का मौका नहीं दिया जा रहा।

Congress अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी सफल नहीं हो पाए। इसके बाद भी पार्टी किसी वरिष्ठ नेता को यह दायित्व सौंपने से बचती रही है। नतीजन आम चुनाव के बाद विभिन्न राज्यों के विधान सभा चुनाव में भी कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा है। पंजाब और राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है, मगर वहां आंतरिक कलह दूर नहीं हो पा रही है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी की तरफ से ठोस निर्णय न लिए जाने की वजह से कांग्रेस की डूबती नाव को बचाने के सभी प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। इसके अलावा पार्टी के कुछ नेता भी अपने विवादित बयानों के कारण आए दिन कांग्रेस को मुश्किल में डाल रहे हैं। खासकर पूर्व मुख्यमंत्री एवं वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह समय-समय पर संवेदनशील मुद्दों पर गलत बयानी कर पार्टी को और गर्त में ले जाने का काम कर रहे हैं।

मोदी सरकार को घेरने के चक्कर में Congress अक्सर यह भूल जाती है कि वह जिन मुद्दों को जोर-शोर से उठा रही है, जनता पर उसका कैसा पड़ रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का पाकिस्तान के पत्रकारों के ग्रुप के साथ ऑनलाइन चर्चा करने का मामला प्रकाश में आया था। पाकिस्तानी पत्रकारों से चर्चा के दरम्यान Congress नेता ने यह तक कहा दिया था कि भविष्य में यदि वह सत्ता में आते हैं तो जम्मू-कश्मीर को पुन: विशेष राज्य का दर्जा दिलाया जाएगा। इस मुद्दे पर विवाद गहराने के बाद दिग्विजय सिंह ने अपनी बात को सही करार देने की कोशिश की थी। फिलहाल पैगासस जासूसी प्रकरण के बहाने विपक्ष खासकर Congress जिस प्रकार से संसद की कार्रवाई को बाधित कर रही है, उससे पार्टी को लाभ मिलने की बजाए भविष्य में नुकसान होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा रहा। चूंकि संसद में फिलवक्त जिन अह्म मुद्दों पर चर्चा की जरूरत है, उससे विपक्ष भागता नजर आ रहा है।

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में अगले साल विधान सभा चुनाव होने हैं। पंजाब में बेशक कांग्रेस सत्ता में है, मगर वहां आंतरिक कलह चरम पर है। नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपे जाने से मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह कतई संतुष्ट नहीं हैं। दोनों के बीच की लड़ाई का असर आगामी विधान सभा चुनाव पर देखने को मिलना तय है। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी Congress की हालत अच्छी नहीं है।