अपनों के निशाने पर कांग्रेस, हालत में सुधार नहीं

देश के कुछ राज्यों में अगले साल विधान सभा चुनाव होने हैं। इन राज्यों में विधान सभा चुनाव की सरगर्मी जोर पकड़ रही है, मगर सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की हालत में कोई सुधार देखने को नहीं मिल रहा है। ऊर्जाविहीन कांग्रेस को निरंतर घर के भीतर और बाहर से चुनौतियां मिल रही हैं। पार्टी को मजबूत करने के लिए दिग्गज नेता जरूरी राय भी दे रहे हैं, मगर आलाकमान पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा है। इससे पुराने एवं कर्मठ कांग्रेसियों में भी निराशा बढ़ रही है। हाल-फिलहाल में दो दिग्गज राजनीतिज्ञों ने कांग्रेस को लेकर बयान दिया है। इन बयानों से कांग्रेस की खराब स्थिति को जाना जा सकता है। सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के इर्द-गिर्द पार्टी सिमट कर रह गई है।

पुराने एवं दिग्गज नेताओं की राय को किसी प्रकार की तवज्जो नहीं मिल रही है। इससे इन नेताओं का गुस्सा भी जब-तब सामने आता रहता है। पुराने सहयोगी भी कांग्रेस से दूरी बनाते नजर आ रहे हैं। फिलहाल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख ममता बनर्जी ने कांग्रेस को निशाने पर ले रखा है। बनर्जी के तीखे बयानों से कांग्रेस और टीएमसी में बढ़ती दरार का पता चल जाता है। मुख्यमंत्री बनर्जी ने यूपीए के अस्तित्व पर सवाल उठाकर कांग्रेस को पेशानी पर बल डाल दिया है। उन्होंने कहा है कि अब यूपीए जैसी कोई चीज नहीं रही। बनर्जी ने यह भी कहा कि हमने कांग्रेस को सुझाव दिया था कि विपक्ष की रणनीति बनाने के लिए सलाहकार परिषद का गठन किया जाए।

इसमें सिविल सोसाइटी की प्रमुख हस्तियां शामिल हों, मगर अफसोस इस बात का है कि यह योजना नहीं बनी। इसे अमल में लाना जरूरी नहीं समझा गया। ममता बनर्जी का यह बयान निश्चित रूप से कांग्रेस के लिए चिंता का सबब है। टीएमसी प्रमुख के इस बयान पर कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने पलटवार करने में देरी नहीं की है। उन्होंने यह तक कह दिया कि ममता बनर्जी ने पागलपन शुरू कर दिया है। जानकारों का मानना है कि पश्चिम बंगाल विधान सभा चुनाव के बाद से कांग्रेस और टीएमसी में तनातनी बढ़ती चली गई है। कांग्रेस नेता अधीर रंजन अक्सर ममता बनर्जी पर तीखे हमले करते रहे हैं। इस कारण भी दोनों दल अब एक-दूसरे से दूर होते दिखाई दे रहे हैं।

ममता बनर्जी ने हाल ही में दिल्ली का दौरान किया है। इस दौरान उन्होंने कांग्रेस आलाकमान से मुलाकात करना उचित नहीं जाना। इसके अलावा सीधे राहुल गांधी के विदेश दौरों पर सवाल खड़े कर कांग्रेस को नाराज जरूर कर दिया है। भविष्य में कांग्रेस-टीएमसी की लड़ाई कहां तक जाएगी, कोई नहीं जानता, मगर इतना तय है कि ज्यादा नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ेगा। ममता बनर्जी से इतर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने संगठन की बदहाली पर अफसोस जाहिर किया है। यानी कांग्रेस को अब अपने भी निशाने पर ले रहे हैं। कांग्रेस नेता गुलाम नबी का बयान आया है कि अभी जैसे हालात हैं, उससे उन्हें नहीं लगता है कि अगले लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी को 300 सीटें मिल सकेंगी।

आजाद ने सार्वजनिक रूप से धारा 370 पर अपनी चुप्पी को भी जायज ठहराया है। आजाद ने कहा है कि सिर्फ सुप्रीम कोर्ट, जहां मामला लंबित है, और केंद्र ही इसे बहाल कर सकते हैं। उन्होंने कहा, और हमारे पास 300 सांसद (सरकार बनाने के लिए जरूरी) कब होंगे? इसलिए, मैं अनुच्छेद 370 को बहाल करने का वादा नहीं कर सकता, क्योंकि हमें 2024 में 300 सांसदों को लाना होगा। चाहे जो हो जाए, भगवान हमारे 300 सांसद बनाएं, तभी कुछ हो सकेगा, मगर वर्तमान में मुझे यह नहीं दिख रहा है कि ऐसा हो सकेगा। गुलाम नबी आजाद ने यह बयान जम्मू-कश्मीर दौर के दरम्यान दिया है।

उनके इस बयान से साफ है कि कांग्रेस की डूबती नाव को बचाने की हरसंभव कोशिश नाकाम हो रही है। चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने भी कांग्रेस पर ट्वीट के जरिए अटैक किया है। ट्वीट में उन्होंने कहा है कि कांग्रेस जिस विचार और जगह का प्रतिनिधित्व करती है वह एक मजबूत के लिए अहम है, मगर कांग्रेस का नेतृत्व एक दैवीय व्यक्ति का ही हक नहीं है। खासकर तब जब पार्टी पिछले 10 वर्ष में अपने 90 फीसद चुनाव हार चुकी है। विपक्ष के नेतृत्व का चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से होने दें। प्रशांत किशोर कभी कांग्रेस के करीबी रह चुके हैं, मगर पार्टी की स्थिति को देखकर उन्होंने किनारा कर लिया है।

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब इत्यादि राज्यों में 2022 में विधान चुनाव कराए जाएंगे। पंजाब में कांग्रेस सत्ता में है, मगर वहां पार्टी की आंतरिक कलह जगजाहिर है। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस से अलग हो चुके हैं। आगामी विधान सभा चुनाव में वह पार्टी की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं। यूपी में कांग्रेस की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है। देश के इस सबसे बड़े राज्य में पार्टी प्रियंका गांधी के भरोसे दिखाई दे रही है। उत्तराखंड में कांग्रेस को चांद नजर आ रहा है। किसान आंदोलन का मुद्दा कांग्रेस के हाथ से निकल चुका है।

केंद्र सरकार द्वारा तीनों कृषि कानून वापस लेने की प्रक्रिया तेज कर दी गई है। लोकसभा में कृषि कानून वापसी बिल को मंजूरी मिल चुकी है। भीतर और बाहर से कांग्रेस को लगातार विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इसके बावजूद संगठन को चुस्त-दुरूस्त करने की कवायद का अभाव है। विभिन्न राज्यों के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस कोई करिश्माई प्रदर्शन कर पाएगी, इसका संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आ रही है। जबकि भाजपा की चुनावी तैयारियां जोरों पर चल रही हैं।