पाकिस्तान में सियासी संकट, भारत भी सतर्क

पाकिस्तान में गहराए सियासी संकट पर समूची दुनिया की नजरें टिकी हैं। पाक में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच शह-मात का खेल रोचक मोड़ पर आ चुका है। वर्तमान में इमरान खान सिर्फ नाम के पीएम रह गए हैं। तीन माह के भीतर आम चुनाव कराए जाने हैं। पड़ोसी देश में दिन-प्रतिदिन बदलते राजनीतिक घटनाक्रम को लेकर भारत भी पूरी तरह से सतर्क एवं चौंकन्ना है। वैसे इमरान खान का पुन: सत्ता में लौटना असंभव नजर आ रहा है। यदि इमरान दोबारा प्रधानमंत्री नहीं बन पाते हैं तो भविष्य में भारत के लिए काफी बेहतर होगा। चूंकि इमरान खान के पीएम बनने के बाद से भारत और पाकिस्तान के संबंध सबसे खराब दौर में पहुंच चुके हैं।

पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने अधिसूचना जारी है। इस अधिसूचना के तहत इमरान खान कार्यवाहक प्रधानमंत्री की नियुक्ति तक पाकिस्तान के पीएम बने रहेंगे। पाक राष्ट्रपति ने ट्विटर पर कहा कि इमरान अहमद खान नियाजी, इस्लामी गणराज्य पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 224 ए (4) के अंतर्गत कार्यवाहक प्रधानमंत्री की नियुक्ति तक पीएम के रूप में बने रहेंगे। इमरान खान की पार्टी पीटीआई ने कार्यवाहक पीएम पद के लिए राष्ट्रपति आरिफ अल्वी को दो नाम भेजे हैं। मंत्री फवाद चौधरी ने कहा है कि यदि संयुक्त विपक्ष ने सप्ताहभर के भीतर नामों को अंतिम रूप नहीं दिया, तो पीटीआई द्वारा सुझाए गए नामों में से शीर्ष उम्मीदवार कार्यवाहक पीएम बन जाएगा।

इसके पूर्व देश के प्रधान न्यायाधीश उमर अता बंदियाल ने पाकिस्तान की वर्तमान राजनीतिक स्थिति पर स्वत: संज्ञान लेकर कहा था कि नेशनल असेंबली को भंग करने के संबंध में प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति द्वारा आरंभ किए गए सभी आदेश और कदम अदालत के आदेश पर निर्भर होंगे। उधर, विश्लेषकों मानना है कि इमरान खान का जाना भारत के लिए सुखद खबर है। भारत और पाकिस्तान के बीच अब तक आजादी के बाद तीन बार युद्ध हो चुका है। दोनों के बीच कश्मीर को लेकर दशकों से विवाद चल रहा है। भारत के साथ संबंधों को लेकर पाकिस्तानी सेना हर चीज तय करती है।

पाक सेना के साथ समझौते के बाद साल 2021 से भारतीय सीमा पर तनाव अपने निचले स्तर पर पहुंच चुका है। इसके बाद भी पिछले कई साल से भारत-पाक के बीच बातचीत बंद पड़ी है। इसकी वजह यह है कि दोनों ही देशों के मध्य काफी अधिक अविश्वास है। अपने पूरे कार्यकाल के दौरान इमरान खान भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अनगर्ल बयानबाजी करते रहे। इमरान ने कश्मीर मुद्दे को दुनिया के मंचों पर उठाया। वह भाजपा की भी तीखी आलोचना करते रहते थे। इस बीच विश्लेषकों का कहना है कि इमरान के जाने से भारत को फायदा हो सकता है।

पाक की ताकतवर सेना अब इस्लामाबाद की नई नागरिक सरकार पर कार्रवाई के लिए दबाव डाल सकती है ताकि कश्मीर में सफल सीजफायर को अंजाम दिया जा सके। पाकिस्तानी सेना प्रमुख ने अपने ताजा बयान में कहा है कि यदि भारत सहमत हो तो उनका देश कश्मीर पर आगे बढ़ सकता है। इसके इतर पाकिस्तान में यह पहला मौका नहीं है, जब किसी पीएम ने संसद भंग करने की सिफारिश की है। इससे पहले 1993 में नवाज शरीफ ने संसद भंग की थी, मगर उसके बाद होने वाले चुनाव में उन्हें करारी हार का सामना करना पड़ा था। इसी क्रम में 2008 में मार्शल लॉ खत्म कर चुनावी समर में कूदे परवेज मुशर्रफ को भी जनता ने स्वीकार नहीं किया था।

पाक में आज तक कोई भी प्रधानमंत्री निरंतर दूसरी बार चुनाव जीतकर सत्ता में नहीं आ पाया है। इमरान खान के लिए भी सत्ता में वापसी करना आसान नहीं होगा। नवाज शरीफ 1990 में बेनजीर भुट्टो को परास्त कर सत्ता में लौटे, मगर 3 साल के भीतर ही तब के राष्ट्रपति गुलाम इशाक खान से शरीफ की तकरार हो गई थी। नतीजन शरीफ ने नेशनल असेंबली को भंग कर दिया था। इसके बाद कराए गए आम चुनाव में नवाज शरीफ की पार्टी हारी और बेनजीर भुट्टो दूसरी बार सत्ता में लौट आई थीं।

पाक के सैन्य प्रमुख रहे परवेज मुशर्रफ 1999 में सैन्य तख्तापलट कर सत्ता पर काबिज हो गए थे। 2008 में राष्ट्रपति रहते मुशर्रफ ने चुनाव कराए, मगर उनके सहयोगियों को इस चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था। मुशर्रफ इसके बाद देश छोड़कर भाग गए। बाद में आसिफ अली जरदारी के नेतृत्व वाली सरकार बनी और युसूफ रजा गिलानी प्रधानमंत्री बने।

वहीं, इमरान खान का प्रधानमंत्री पद का कार्यकाल अभी डेढ़ साल का शेष है। वर्तमान में असेंबली भंग कर चुनावी समर में उतरने की घोषणा करने वाले इमरान की राह भी आसान नहीं है। उनके विरोध में करीब दस पार्टियों का गठजोड़ है। वहीं, महंगाई, भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे पर इमरान सरकार निरंतर बैकफुट पर है।