गांवों में बसता है असली जीवन, यकीन न हो तो घूम आएं

गौरव पांडेय
(लेखक सामाजिक, पर्यावरण एवं धार्मिक कार्यों से जुड़े रहते हैं। यह लेख उदय भूमि में प्रकाशन के लिए लिखा है।)

सुप्रसिद्ध शायर मेराज फैजाबादी के प्रसिद्ध शेर जि़ंदगी दी है तो जीने का हुनर भी देना, पांव बख्शें हैं तो तौफीक-ए-सफर भी देना, को हमने साइकिलिंग के एक यादगार ट्रिप में जिया। उसी तर्ज पर मेरी 2 लाइनें अर्ज हैं। प्रदूषण दिया है, तो खुली हवा में सांस लेने की जगह भी देना। हम शहर में रह रहे हैं तो क्या हुआ गौरव, शहर के पास एक गांव भी देना। जहां दरिया हो झीलें हों, चिडिय़ों की चहचहाहट हो, जो आए कोई गम में डूबा, उस पर बरसता खुशियों का समंदर हो। ले चलो मुझे उस जमीं पर ऐ गौरव, जहां खुशियों का बसेरा हो।क्या आपने कभी सोचा है कि आप शहर में रहकर चंद मिनट में ही ग्रामीण जीवन एवं प्रकृति का आनंद ले सकते हैं ? अधिकांश लोग सोचते हैं कि शहरी जीवन, गांव के जीवन की तुलना में अधिक शानदार हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। कई मायनों में गंवई जीवन ही अव्वल होता है। इंदिरापुरम रनर्स एवं साइकिलिंग ग्रुप द्वारा अमित सिलावट के नेतृत्व में इंदिरापुरम से मात्र 15 किलोमीटर दूर राजनगर एक्सटेंशन क्षेत्र गाजियाबाद के गावों में साइकिल पर सैर की गई। जैसे-जैसे हम गांव की तरफ बढ़े, हमें ताजी एवं स्वच्छ हवा का अनुभव हुआ और प्रदूषण तो जैसे मानो गायब ही हो गया हो। मन से बस यही निकला कि वाह तौफीक साहब आपने जिन बख्शे हुए पावों से सफर का जिक्र किया वो इससे बेहतर नहीं हो सकता। कहना न होगा कि जिला गाजियाबाद (दिल्ली-एनसीआर का एक एरिया), वैसे तो पॉल्यूशन लिस्ट में देश में सबसे ऊपर है, लेकिन गाजियाबाद क्षेत्र में ही अविश्वसनीय किंतु सत्य स्वरूप कुछ क्षेत्र ऐसे भी हैं, जिसे प्रकृति ने संजोकर रखा है। जनाब, बस आप एक बार साइकिल उठाइए तो सही, और निकल जाइए शहर से दूर गांव की ओर, जहां आपको आसानी से वह धरोहर नजर आ जाएगी। बस आपको जरूरत है एक सही गाइड की, जो हमें वहां तक पहुंचा सके और हमारा मार्गदर्शन राजनगर एक्सटेंशन निवासी अमित सिलावट और उनके दोस्तों वरुण त्यागी और संतोष कुशवाहा ने किया। ये तीनों दोस्त राजनगर एक्सटेंशन से लगते सभी गांवों को अपने कदमों से दौड़कर नाप चुके हैं और इनको यहां नेचर के साथ दौडऩा बहुत अच्छा लगता है। जिसके बाद हमने महसूस किया कि वाकई जीवन गांवों में ही बसता है। गांव के लोगों का हिंडन नदी के खूबसूरत नजारों और ऊबड़-खाबड़ कच्चे रास्तों पर चलती साइकिलों ने मन को मोह लिया। स्कूल जा रहे बच्चों ने तो यह सोचा कि कोई साइकिलिंग की रेस हो रही है और हमारा हाथ हिला कर अभिवादन किया। मोरटी गांव के ही एक मित्र दीपांशु ने ताजा मट्ठा (छाछ) और गुड़ का बेहतरीन इंतजाम किया था, वाकई जीभ को ऐसा स्वाद वर्षों बाद आया था, जिसके आगे बड़ी-बड़ी कंपनियों की छाछ तो दूर-दूर तक भी ना टिक पाएं। फिर जैसे ही हम गांव की तरफ बढ़े, हमारे हृदय को आनंदित कर देने वाले पीली-पीली सरसों के लहलहाते खेत और ताजी सब्जियों के खेत वहां दिखाई दिए। ऐसा ही मन में ख्याल आया कि क्यों ना किसी से पूछा जाए कि क्या हम सब्जी ले सकते हैं, तो उन्होंने कहा कि आप यहां से खेत से अपने सामने सब्जी तुड़वा कर ले सकते हैं और यह बहुत ही ताजी और बाजार से सस्ती भी मिलेगी। यह सुनकर मन में सुखद आनंद का अनुभव हुआ और एक विश्वास हुआ कि अभी भी हम शहर के इतने नजदीक रहकर गांव की ताजी सब्जी ले सकते हैं। यहां हमें सफर में नहर मिली, तालाब और छोटी झील भी देखने को मिली। गांव की सड़क के किनारे नहर की दीवार पर बगुलों और चिडिय़ों की कतार भी देखी, वैसे मानो वो हम सबसे कुछ कहना चाह रही थीं। चिडिय़ों की मधुर आवाज ने माहौल में एक मधुर संगीत घोल दिया था। शहरी शोरगुल, हॉर्न की कानफोडू आवाजों के आदी हो चुके कानों को ये संगीत बहुत ही प्यारा लगा। हम भी अपने शहरी अंदाज में उन्हें गुड मॉर्निंग कह कर मन ही मन खुश हो लिए। हम गांव में भोर में पहुंचे थे। ऐसे में झील के किनारे हमें उगता हुआ सूर्य दिखाई दिया, जो दृश्य बहुत ही मनोरम था। रास्ते में हमने ताजा बन रहे पेठा को कारखाने में जाकर खाया। पेठे को कैसे बनाया जाता है, उसका भी अनुभव पहली बार किया। हमने अनुभव किया कि गांव के लोग असली सुंदरता का आनंद ले सकते हैं। सुबह के उगते सूरज के साथ, शाम के समय ढलते सूरज का सूर्यास्त, उसकी अप्रितम सुंदरता व प्रकृति का आनंद ले सकते हैं। हमने उस इलाके में बड़े-बड़े 20 से अधिक क्रिकेट के ग्राउंड भी देखे। अमित सिलावट ने बताया कि वह इन ग्राउंड में अक्सर दौडऩे आते हैं और आसपास के क्षेत्र के अलावा दिल्ली से लोग क्रिकेट मैच खेलने इन ग्राउंड पर आते हैं। हमने देखा कि ग्रामीण जीवन में यहां एक बहुत ही सुंदर वातावरण है। इतने वाहन नहीं हैं। ग्रामीणों ने इतने सारे पौधे उगाए हुए हैं कि ये पर्यावरण के लिए वरदान हैं, उससे ही हवा इतना शुद्ध और ताजी है। हमारे साथ करीब 20 साइकिलिस्ट साथी थे, जिनमें ग्रुप को लीड करने वाले और व्हिसिल ब्लोअर शलभ गुप्ता ने सभी सदस्यों से गजब का सामंजस्य बनाये रखा। जिनमें 25 किलोमीटर दूर डिफेंस कॉलोनी से अकेले साइकिल चला कर पहुंची रूचि जोशी, शाहदरा से के.के. गर्ग, इंदिरापुरम रनर्स के अमित, तरुण, राकेश रैना, रचना, मुकुल यादव, अखिलेश, मनीष अग्रवाल, एल आर पंत, विक्रम, अनुज गुप्ता, मीनू अग्रवाल, दीप्ति चतुर्वेदी, राजेश गोस्वामी, मंजू वर्मा, ऋषि, श्रेय भी मेरे साथ शामिल थे। सभी ने इस यात्रा का भरपूर आनंद लिया। जिसके बाद सबको यह एहसास हुआ कि यदि हम अपने आसपास की जगह को साफ-सुथरा रख सकें और अगर हम सब मिलकर के यह प्रण ले लें कि हम कचरे का उचित निस्तारण करेंगे और अपनी प्रकृति और गांव को बचाने के लिए कतिपय ठोस कदम उठाएंगे तो हम मानव जीवन के लिए एक उचित वातावरण बना पाएंगे। एक अन्य गांव शाहपुर में चाय का आनंद आग सेंकते हुए लिया। बहुत ही मजेदार ग्रामीण राइड रही ये। हम लोग हजारों रुपए खर्च करके समय लगाकर इधर-उधर घूमने जाते हैं, लेकिन अगर गौर से देखा जाए तो जो खुशियां हमारे पास ही बिखरी पड़ी हैं उन्हें यदि समेटा जाए, सहेजा जाए तो क्या बात हो जाए। इसलिए आज की ये राइड समर्पित करता हूं उस ग्रामीण परिवेश को जो हमारी संस्कृति में रचता और बसता है। कहना न होगा कि साइकिलिस्ट ग्रुप के हर एक सदस्य ने इस राइड का हृदय से आनंद लिया और आयोजक को जी भर-भर कर आशीर्वाद और शुभकामनाएं दीं। सबका मानना था कि यह 3 घंटे की राइड जीवन की एक अमूल्य यादगार क्षण बन कर उनके हृदय में संजोए रहेगी। प्राकृतिक छंटाओं से परिपूर्ण जगहों पर ग्रुप के मेंबरों ने बढ़-चढ़ कर फोटोग्राफी की और अपने आनंद के पलों को मानों सदियों के लिए संजो लिया। वाकई साइकिल की घंटी की आवाज जब जब कानों में पड़ती हैं, मुड़कर देखता हूं तो बचपन की यादें दिल में सजती है।